वैधानिक प्राधिकरण के समक्ष प्रस्तुत किए गए अभ्यावेदन पर विचार न करना कर्तव्य की उपेक्षा के समान: मद्रास हाइकोर्ट
Amir Ahmad
7 May 2024 12:30 PM IST
मद्रास हाइकोर्ट की जज जस्टिस आर.एन. मंजुला की एकल पीठ ने सी. चंद्रन बनाम तमिलनाडु राज्य परिवहन निगम (तिरुनेलवेली) लिमिटेड एवं अन्य के मामले में रिट याचिका पर निर्णय लेते हुए कहा कि वैधानिक प्राधिकरण के समक्ष प्रस्तुत किए गए अभ्यावेदन पर विचार न करना कर्तव्य की उपेक्षा के समान है।
मामले की पृष्ठभूमि
सी. चंद्रन (याचिकाकर्ता) को 1989 में तमिलनाडु राज्य परिवहन निगम (तिरुनेलवेली) लिमिटेड एवं अन्य (प्रतिवादी) में ट्रेड्समैन के रूप में नियुक्त किया गया और वे 30.06.2022 को विशेष ग्रेड ट्रेड्समैन के रूप में सेवा से रिटायर हुए।
वहीं औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 (Industrial Disputes Act, 1947) की धारा 12(3) के तहत प्रतिवादी के प्रबंधन और ट्रेड यूनियनों के बीच 24.08.2022 को त्रिपक्षीय वेतन समझौता हुआ था। वेतन समझौते के तहत प्रतिवादी के प्रबंधन ने वेतन को पहले के वेतन का 5% संशोधित करके कर्मचारियों के वेतन को संशोधित करने पर सहमति व्यक्त की जो 01.09.2019 को सेवा में थे ।
इस प्रकार याचिकाकर्ता समझौते की शर्तों के तहत कवर किया गया, क्योंकि वह 2022 में रिटायर हुआ था। परिणामस्वरूप उसका वेतन भी 01.09.2019 से वेतन समझौता समझौते के आधार पर संशोधित किया जाना चाहिए।
हालांकि प्रतिवादी ने याचिकाकर्ता को उसके पूर्व-संशोधित वेतन के आधार पर ग्रेच्युटी, पेंशन और छुट्टी वेतन का भुगतान किया। इस प्रकार, याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि प्रतिवादी उसे 01.09.2019 से 30.06.2022 तक पेंशन, वेतन, ग्रेच्युटी और अवकाश वेतन के अंतर का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी थे।
याचिकाकर्ता ने 2019 से 2022 तक रिटायरमेंट लाभों के अंतर का भुगतान करने के लिए प्रतिवादी के समक्ष अभ्यावेदन प्रस्तुत किया। याचिकाकर्ता के अभ्यावेदन पर कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई।
इस प्रकार याचिकाकर्ता ने रिट याचिका दायर की।
न्यायालय के निष्कर्ष
न्यायालय ने देखा कि जब भी किसी वैधानिक प्राधिकरण को कोई अभ्यावेदन दिया जाता है तो उस पर गुण-दोष के आधार पर विचार करने और उसे अनिश्चित काल तक लंबित रखने के बजाय उचित आदेश पारित करने का कर्तव्य होता है। न्यायालय ने आगे कहा कि वैधानिक प्राधिकरण को दिए गए अभ्यावेदन पर विचार न करना कर्तव्य की उपेक्षा के बराबर होगा।
उपरोक्त टिप्पणियों के साथ रिट याचिका को अनुमति दी गई और न्यायालय ने प्रतिवादियों को याचिकाकर्ता द्वारा दायर अभ्यावेदन पर 12 सप्ताह के भीतर विचार करने का आदेश दिया।
केस टाइटल- सी. चंद्रन बनाम तमिलनाडु राज्य परिवहन निगम (तिरुनेलवेली) लिमिटेड एवं अन्य।