अपराध की आय को छिपाना PMLA के तहत अपराध, ED को यह स्थापित करने की आवश्यकता नहीं कि पैसा आखिरकार कहां गया: मद्रास हाईकोर्ट
Amir Ahmad
17 Dec 2024 1:02 PM IST
मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि चूंकि अपराध की आय को छिपाना स्वयं धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) के तहत अपराध है। इसलिए प्रवर्तन निदेशालय को यह स्थापित करने की आवश्यकता नहीं है कि पैसा आखिरकार कहां गया।
जस्टिस जीआर स्वामीनाथन और जस्टिस आर पूर्णिमा की खंडपीठ ने कहा कि आरोपी, जिसने पैसे को गायब करने की साजिश रची होगी, को केवल इसलिए आरोपों से मुक्त नहीं किया जा सकता, क्योंकि अपराध की आय की पहचान नहीं की गई। इस प्रकार न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि यदि अभियोजन पक्ष अपराध की आय के स्रोत और इस प्रक्रिया में आरोपी की संलिप्तता को स्थापित कर देता है तो यह पर्याप्त है।
अदालत ने कहा कि "चूंकि अपराध की आय को छिपाना अपराध है, इसलिए आरोपी को इसके लिए दोषी ठहराया जा सकता है। प्रवर्तन निदेशालय को यह प्रदर्शित करने की आवश्यकता नहीं है कि पैसा आखिरकार कहां गया। गायब होने की साजिश रचने के बाद आरोपी यह दलील नहीं दे सकते कि उन्हें दोषमुक्त किया जाना चाहिए, क्योंकि अपराध की आय की पहचान नहीं की गई। अगर कोई चूहा किसी छेद में भाग गया तो कोई केवल छेद की ओर इशारा कर सकता है। चूहा दूसरे छोर से भी निकल सकता है। बचाव पक्ष यह तर्क नहीं दे सकता कि जब तक चूहा नहीं मिल जाता, तब तक मुकदमा नहीं चलाया जा सकता।”
अदालत केसी चंद्रन, उनकी पत्नी और उनकी कंपनी द्वारा स्पेशल कोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उन्हें मनी लॉन्ड्रिंग के मामले से मुक्त करने से इनकार कर दिया गया। याचिकाकर्ताओं के खिलाफ अभियोजन का मामला यह था कि वर्ष 1989 में मेलूर में खनिजों के उत्खनन के लिए पट्टा मिलने के बाद उन्होंने एक आपराधिक साजिश रची और आसपास की जमीनों और गैर-पट्टा पट्टा भूमि से अवैध रूप से ग्रेनाइट पत्थरों का उत्खनन किया।
भूविज्ञान और खनन विभाग ने इस अवैध उत्खनन का मूल्य 436.88 करोड़ रुपये आंका था। इस प्रकार, उनके खिलाफ धारा 447 (आपराधिक अतिचार), 379 (चोरी), 120 (बी) (आपराधिक षड्यंत्र), 114 (अपराध किए जाने के समय दुष्प्रेरक की उपस्थिति), 109 (यदि दुष्प्रेरित कार्य परिणामस्वरूप किया जाता है और जहां सजा के लिए कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं किया गया है तो दुष्प्रेरण की सजा), 420 (धोखाधड़ी), 434 (शरारत), 465 (जालसाजी), 467 (मूल्यवान सुरक्षा, वसीयत आदि की जालसाजी), 468 (धोखाधड़ी के उद्देश्य से जालसाजी), 471 (जाली दस्तावेज या इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड को वास्तविक के रूप में उपयोग करना), 304 (ii) (हत्या की श्रेणी में न आने वाली गैर इरादतन हत्या के लिए सजा) आईपीसी और टीएनपीपीडीएल अधिनियम, 1992 की धारा 4 (संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वाली शरारत) विस्फोटक पदार्थ अधिनियम की धारा 3(ए) और 4(ए)।
आईपीसी की धारा 420, 467 और 471 तथा विस्फोटक पदार्थ अधिनियम की धारा 3(ए) और 4(ए) के तहत अपराध धन शोधन निवारण अधिनियम के तहत अनुसूचित अपराध हैं। इसलिए ED ने ECIR दर्ज की। कथित तौर पर अवैध मुनाफे से अर्जित संपत्ति को भी ED ने जब्त कर लिया।
याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि हालांकि उन्हें 1989 में पट्टा दिया गया, लेकिन उन्होंने खदान को 1999 में 60 लाख रुपये में पलानीचामी नामक व्यक्ति को सौंप दिया। उसके बाद से उनका खनन गतिविधि से कोई संबंध नहीं रहा। संपत्ति के संबंध में यह प्रस्तुत किया गया कि इसे बेदाग धन से खरीदा गया था।
आगे तर्क दिया गया कि PMLA कार्यवाही में अपराध की आय की पहचान अनिवार्य थी। चूंकि वर्तमान मामले में आरोपित धन की पहचान नहीं की गई इसलिए कोई शिकायत नहीं की जा सकती। यह तर्क देते हुए कि कोई अपराध नहीं किया गया। उन्होंने मामले से मुक्त होने की मांग की।
दूसरी ओर ED ने तर्क दिया कि पट्टाधारक के रूप में याचिकाकर्ता खदान को सौंपने के लिए किसी भी लेनदेन में प्रवेश नहीं कर सकते थे। यह भी प्रस्तुत किया गया कि संपत्ति का विक्रय विलेख संपत्ति के वास्तविक बाजार मूल्य को नहीं दर्शाता है। यह तर्क देते हुए कि याचिकाकर्ता के बचाव को निर्वहन के चरण में नहीं देखा जा सकता है। ED ने याचिका खारिज करने की मांग की। अदालत ने कहा कि चूंकि अपराध की आय को छिपाना अपने आप में मनी लॉन्ड्रिंग का अपराध होगा, इसलिए याचिकाकर्ता यह बचाव नहीं कर सकते कि जब तक अपराध की आय की पहचान नहीं हो जाती, तब तक शिकायत झूठ नहीं होगी। अदालत इस बात से भी संतुष्ट थी कि प्रथम दृष्टया अवैध खनन हुआ था और अनुसूचित अपराध में अभियोजन अभी भी लंबित है।
अदालत ने यह भी नोट किया कि अधिनियम की धारा 24 (बी) के तहत अनुमान वर्तमान मामले में लागू होगा और इसका खंडन करना याचिकाकर्ताओं पर निर्भर है। न्यायालय ने कहा कि स्पेशल कोर्ट ने इस मुद्दे पर सही तरीके से विचार किया है और डिस्चार्ज याचिका को खारिज कर दिया है।यह देखते हुए कि आदेश में किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है न्यायालय ने पुनर्विचार अपील को खारिज कर दिया।
केस टाइटल: के.सी. चंद्रन और अन्य बनाम प्रवर्तन निदेशालय