अनुकंपा नियुक्ति का उद्देश्य कर्मचारियों की मृत्यु पर उनके परिवार के सामने आने वाली तत्काल वित्तीय कठिनाई को कम करना है: मद्रास हाइकोर्ट

Amir Ahmad

18 May 2024 6:44 AM GMT

  • अनुकंपा नियुक्ति का उद्देश्य कर्मचारियों की मृत्यु पर उनके परिवार के सामने आने वाली तत्काल वित्तीय कठिनाई को कम करना है: मद्रास हाइकोर्ट

    मद्रास हाइकोर्ट की जस्टिस आर. सुरेश कुमार और के. कुमारेश बाबू की खंडपीठ ने यूनियन ऑफ इंडिया बनाम एस. राधाकन्नन के मामले में रिट याचिका पर निर्णय लेते हुए कहा कि कर्मचारी की मृत्यु पर अनुकंपा नियुक्ति का उद्देश्य उनके परिवार के सामने आने वाली तत्काल वित्तीय कठिनाई को कम करना है।

    मामले की पृष्ठभूमि

    एस. राधाकन्नन (द्वितीय प्रतिवादी) के पिता को मूल रूप से स्टेट फॉरेस्ट सर्विस कॉलेज कोयंबटूर में दैनिक वेतन पर एक आकस्मिक दैनिक मजदूर के रूप में नियुक्त किया गया था। उनकी सेवा को नियमित करने के प्रयासों के बावजूद नियमितीकरण प्रक्रिया पूरी होने से पहले ही 1996 में उनका निधन हो गया। उनकी मृत्यु के बाद उनकी पत्नी ने अपने परिवार के लिए अनुकंपा नियुक्ति की मांग की।

    मृतक कर्मचारी की पत्नी ने अनुकंपा नियुक्ति के लिए प्रिंसिपल स्टेट फॉरेस्ट सर्विस कॉलेज, कोयंबटूर को एक अभ्यावेदन दिया, जिसकी संस्तुति उक्त प्राधिकारी द्वारा की गई। लेकिन सरकार (याचिकाकर्ता) ने यह कहते हुए अभ्यावेदन को खारिज कर दिया कि मृतक इस आधार पर नियमित होने के योग्य नहीं था कि वह नियमित कर्मचारी नहीं था और उसके पास निर्धारित योग्यता नहीं थी।

    इस आदेश को मृतक की पत्नी ने चुनौती दी जहां केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (प्रथम प्रतिवादी) ने आदेश को खारिज कर दिया और याचिकाकर्ता को मृतक कर्मचारी के मामले पर पुनर्विचार करने का निर्देश दिया।

    इससे व्यथित होकर याचिकाकर्ता ने रिट याचिका दायर की।

    याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि मृतक कर्मचारी की मृत्यु 1996 में हुई थी और 22 साल बाद भी यह नहीं कहा जा सकता कि परिवार अत्यंत खराब परिस्थितियों में था, जो अनुकंपा नियुक्ति का प्राथमिक उद्देश्य है।

    याचिकाकर्ताओं ने इस बात पर जोर दिया कि मृतक कर्मचारी नियमित सरकारी कर्मचारी नहीं था, बल्कि आकस्मिक दैनिक मजदूर के रूप में काम कर रहा था। उन्होंने तर्क दिया कि अनुकंपा नियुक्ति की योजना मुख्य रूप से नियमित सरकारी कर्मचारियों के परिवारों को लाभान्वित करती है।

    दूसरी ओर, प्रतिवादियों ने तर्क दिया कि मृतक कर्मचारी के नियमित सरकारी कर्मचारी न होने के बावजूद, उसकी मृत्यु से पहले उसे अस्थायी दर्जा दिया गया था। इसलिए, उन्होंने तर्क दिया कि इस दर्जे और कर्मचारी की सेवा से जुड़ी परिस्थितियों के आधार पर परिवार अनुकंपा नियुक्ति के लिए पात्र था।

    प्रतिवादियों ने आगे तर्क दिया कि मृतक कर्मचारी की विधवा ने अपने पति की मृत्यु के तुरंत बाद अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन किया था। इससे उस समय परिवार को वित्तीय सहायता की तत्काल आवश्यकता का पता चलता है।

    न्यायालय के निष्कर्ष

    न्यायालय ने पाया कि मृतक कर्मचारी को उसकी मृत्यु से पहले अस्थायी दर्जा दिया गया, जो अधिकारियों द्वारा कुछ हद तक मान्यता का संकेत देता है। इस तथ्य को अनुकंपा नियुक्ति के लिए परिवार की पात्रता के लिए प्रासंगिक माना गया।

    न्यायालय ने नोट किया कि याचिकाकर्ता अनुकंपा नियुक्ति के दावे पर पुनर्विचार करने के निर्देश देने वाले पिछले न्यायाधिकरण के आदेशों का पालन करने में विफल रहे हैं। न्यायालय ने इस गैर-अनुपालन को अवमाननापूर्ण माना और संकेत दिया कि याचिकाकर्ताओं को मृतक कर्मचारी को नियमित करने के लिए अस्वीकार करने का अधिकार नहीं है।

    न्यायालय याचिकाकर्ता के इस तर्क से असहमत था कि 22 साल बाद परिवार की परिस्थितियाँ अब खराब परिस्थितियों में नहीं थीं। इसने इस बात पर जोर दिया कि अनुकंपा नियुक्ति का उद्देश्य कर्मचारी की मृत्यु के बाद परिवार द्वारा सामना की जाने वाली तत्काल वित्तीय कठिनाई को कम करना है। न्यायालय ने आगे कहा कि मृतक कर्मचारी की विधवा ने उसकी मृत्यु के बाद तुरंत अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन किया था, जो उस समय उनकी वास्तविक आवश्यकता को दर्शाता है।

    उपर्युक्त टिप्पणियों के साथ रिट याचिका खारिज कर दी गई।

    केस टाइटल- यूनियन ऑफ इंडिया बनाम एस. राधाकन्नन

    Next Story