GPF योजना के तहत की गई कटौती से कर्मचारी स्वतः ही पेंशन लाभ के हकदार नहीं हो जाते : मद्रास हाइकोर्ट

Amir Ahmad

13 May 2024 7:49 AM GMT

  • GPF योजना के तहत की गई कटौती से कर्मचारी स्वतः ही पेंशन लाभ के हकदार नहीं हो जाते : मद्रास हाइकोर्ट

    मद्रास हाइकोर्ट के जस्टिस मुम्मिननी सुधीर कुमार की सिंगल बेंच ने पिपमेट इंटीग्रेटेड स्टाफ वेलफेयर एसोसिएशन बनाम मुख्य सचिव पुडुचेरी सरकार के मामले में रिट याचिका पर निर्णय लेते हुए कहा कि जी.पी.एफ. योजना के तहत की गई कटौती के आधार पर कर्मचारी स्वतः ही पेंशन लाभ के हकदार नहीं हो जाते।

    पृष्ठभूमि तथ्य

    प्रतिवादी ने वर्ष 1992 में अपने कर्मचारियों के कल्याण के लिए सामान्य भविष्य निधि (GPF) योजना शुरू की थी और एक वर्ष की निरंतर सेवा के बाद सभी कर्मचारियों के लिए उक्त योजना की सदस्यता अनिवार्य कर दी गई।

    पिपमेट इंटीग्रेटेड स्टाफ वेलफेयर एसोसिएशन के महासचिव गांधीमोहन ने रिटायर कर्मचारियों (याचिकाकर्ताओं) के साथ मिलकर एक याचिका दायर की जिसमें प्रतिवादियों से सीसीएस (पेंशन) नियम 1972 के अनुसार रिटायर्ड और मृतक कर्मचारियों को क्रमशः उचित पेंशन और पारिवारिक पेंशन निर्धारित करने तय करने और वितरित करने की मांग की गई।

    याचिका का निपटारा किया गया, जिससे याचिकाकर्ताओं को प्रतिवादियों के समक्ष नया अभ्यावेदन प्रस्तुत करने की अनुमति मिल गई। नया अभ्यावेदन प्रस्तुत करने के बावजूद, प्रतिवादियों ने याचिकाकर्ताओं द्वारा किए गए दावों को खारिज करते हुए दिनांक 05.07.2017 को एक आदेश जारी किया।

    इससे व्यथित होकर याचिकाकर्ताओं ने रिट याचिका दायर की।

    याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि वे प्रतिवादी द्वारा शुरू की गई जीपीएफ योजना के आधार पर पेंशन लाभ के हकदार थे।

    याचिकाकर्ताओं के अनुसार प्रतिवादी द्वारा जारी पत्र के अनुसार एक वर्ष की निरंतर सेवा के बाद जीपीएफ योजना सभी कर्मचारियों के लिए अनिवार्य कर दी गई। उन्होंने तर्क दिया कि इस योजना के अनुसार उनके वेतन से अंशदान काटा जाता है। याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि प्रतिवादी संगठन द्वारा ग्रेच्युटी, पेंशन और पारिवारिक पेंशन जैसे लाभों के बारे में आश्वासन दिया गया था।

    याचिकाकर्ताओं ने आगे तर्क दिया कि उन्हें सरकार की निष्क्रियता के लिए दंडित नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि पेंशन योजना की स्वीकृति और वित्त पोषण के लिए सरकार से संपर्क करने के लिए प्रतिवादी संगठन के शासी निकाय द्वारा पारित प्रस्तावों के बावजूद सरकार द्वारा कोई ठोस कार्रवाई नहीं की।

    दूसरी ओर, प्रतिवादियों द्वारा यह तर्क दिया गया कि प्रतिवादी संगठन के कर्मचारियों के लिए कोई औपचारिक पेंशन योजना नहीं थी। उन्होंने तर्क दिया कि जीपीएफ योजना शुरू की गई, लेकिन इसमें पेंशन लाभों के लिए प्रावधान शामिल नहीं थे। प्रतिवादियों ने तर्क दिया कि प्रतिवादी संगठन के कर्मचारियों को पेंशन लाभों के विस्तार के संबंध में किसी भी निर्णय के लिए सरकार से अनुमोदन की आवश्यकता होती है।

    न्यायालय के निष्कर्ष

    न्यायालय ने देखा कि जीपीएफ योजना लागू होने के बावजूद इसमें पेंशन लाभों के लिए प्रावधान शामिल नहीं थे। न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि जीपीएफ योजना के तहत की गई कटौती स्वचालित रूप से कर्मचारियों को पेंशन लाभों का हकदार नहीं बनाती है। न्यायालय ने स्वीकार किया कि प्रतिवादी संगठन के कर्मचारियों को पेंशन लाभों के विस्तार के संबंध में किसी भी निर्णय के लिए सरकार से अनुमोदन की आवश्यकता होती है।

    न्यायालय ने 2019 के डब्ल्यू.पी.सं.1264 पर भरोसा किया जिसमें मद्रास हाइकोर्ट की खंडपीठ ने माना कि स्वायत्त निकायों के कर्मचारी तब तक पेंशन का दावा नहीं कर सकते, जब तक कि कोई विशिष्ट पेंशन योजना लागू न हो। सरकार की तरह पेंशन योजना के लिए अनुरोध उन्हें सरकारी कर्मचारियों के समान अधिकार प्रदान नहीं करता।

    न्यायालय ने आगे कहा कि पेंशन योजना की मंजूरी के लिए सरकार से संपर्क करने के लिए प्रतिवादी संगठन के शासी निकाय द्वारा प्रस्ताव पारित किए गए। हालांकि सरकार द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की गई। न्यायालय ने माना कि याचिकाकर्ता पेंशन लाभ के लिए अपने दावे के लिए कानूनी आधार स्थापित करने में विफल रहे।

    उपरोक्त टिप्पणियों के साथ रिट याचिका खारिज कर दी गई।

    केस टाइटल- पिपमेट इंटीग्रेटेड स्टाफ वेलफेयर एसोसिएशन बनाम मुख्य सचिव, पुडुचेरी सरकार

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