न्यायालय मूकदर्शक नहीं रह सकता, जब अभियुक्त उचित अवसर की आड़ में मुकदमे में देरी करने की कोशिश करता है: मद्रास हाइकोर्ट
Amir Ahmad
30 May 2024 3:34 PM IST
मद्रास हाइकोर्ट ने कहा कि न्यायालय मूकदर्शक नहीं रह सकता जब अभियुक्त उचित अवसर की आड़ में मुकदमे में देरी करने की कोशिश करता है।
जस्टिस जी जयचंद्रन ने गवाहों को वापस बुलाने की याचिका पर विचार करने से इनकार किया। न्यायालय ने कहा कि मामला वर्ष 2009 में दर्ज किया गया और 15 साल बाद भी अंतिम निर्णय तक नहीं पहुंचा। इस प्रकार न्यायालय ने कहा कि गवाहों को वापस बुलाने की याचिका केवल प्रक्रिया में देरी करने के लिए थी और यह न्याय के हित में नहीं होगा।
अदालत ने कहा,
“इस न्यायालय को लगता है कि उक्त आदेश माननीय सुप्रीम कोर्ट के निर्देश और कानून के प्रावधानों के बिल्कुल अनुरूप है। वर्ष 2009 में अपराध नंबर 260/2009 में दर्ज किया गया मामला 15 वर्ष बीत जाने के बाद भी अंतिम निर्णय पर नहीं पहुंचा। गवाहों को वापस बुलाने के लिए वर्तमान आवेदन, केवल प्रक्रिया में और देरी करेगा और न्याय के हित में नहीं होगा। इसलिए इस आपराधिक मूल याचिका को खारिज किया जाता है।”
याचिकाकर्ताओं ने न्यायिक मजिस्ट्रेट चतुर्थ कोयंबटूर के उस आदेश के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाया, जिसमें गवाहों को वापस बुलाने के लिए धारा 311 सीआरपीसी के तहत आवेदन खारिज कर दिया गया था। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि जिन तीन गवाहों को वापस बुलाने की मांग की गई, वे महत्वपूर्ण हैं और यदि क्रॉस एग्जामिनेशन की अनुमति नहीं दी गई तो इससे बहुत अधिक पूर्वाग्रह पैदा होगा।
राज्य ने प्रस्तुत किया कि वापस बुलाने की याचिका मुकदमे के अंतिम चरण में दायर की गई। यह प्रस्तुत किया गया कि पहले गवाह की जांच पांच वर्ष पहले की गई और मुख्य परीक्षा के दिन पीडब्लू 6 और पीडब्लू 7 की जांच न करने का कोई कारण नहीं था। यह प्रस्तुत किया गया कि अब याचिकाकर्ताओं ने यह कहते हुए याचिका दायर की है कि उन्हें इन दो गवाहों की जांच करने से पहले पीडब्लू 1 की जांच करनी होगी।
न्यायालय ने कहा कि जब गवाह मौजूद हों तो अभियुक्त बिना गवाह से क्रॉस एग्जामिनेशन किए अनावश्यक रूप से स्थगन की मांग नहीं कर सकता। न्यायालय ने कहा कि अभियुक्त अपनी सुविधानुसार तथा अपनी इच्छा के अनुसार गवाहों से पूछताछ नहीं कर सकता।
अदालत ने इस प्रकार कहा कि निचली अदालत ने याचिकाओं को सही तरीके से खारिज किया है। इस प्रकार अस्वीकृति में हस्तक्षेप करने का कोई कारण न पाते हुए न्यायालय ने याचिकाओं को खारिज कर दिया।
केस टाइटल- इमरानकान और अन्य बनाम पुलिस उपनिरीक्षक