आधार कार्ड आयु का प्रमाण नहीं, पहचान का दस्तावेज: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने दोहराया

Amir Ahmad

13 Nov 2024 12:17 PM IST

  • आधार कार्ड आयु का प्रमाण नहीं, पहचान का दस्तावेज: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने दोहराया

    यह दोहराते हुए कि आधार कार्ड को धारक की आयु के प्रमाण के रूप में नहीं माना जा सकता, मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में राज्य सरकार को सभी संबंधित अधिकारियों को यह स्पष्ट करने का निर्देश दिया कि आधार कार्ड केवल एक पहचान दस्तावेज है।

    ऐसा करते हुए हाईकोर्ट ने सरोज एवं अन्य बनाम इफ्कोटोकियो जनरल इंश्योरेंस कंपनी एवं अन्य (2024) में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का हवाला दिया, जिसमें कहा गया कि आधार कार्ड आयु का दस्तावेज नहीं है। हाईकोर्ट के समक्ष मामला मुख्यमंत्री जन कल्याण (संबल) योजना के तहत लाभ का दावा करने के लिए आयु के निश्चित प्रमाण के रूप में आधार कार्ड के उपयोग से संबंधित था।

    जस्टिस जीएस अहलूवालिया की एकल पीठ ने कहा कि न केवल सुप्रीम कोर्ट बल्कि हाईकोर्ट और यहां तक ​​कि विभिन्न सरकारी विभागों द्वारा जारी परिपत्रों में भी स्पष्ट किया गया कि आधार कार्ड आयु का प्रमाण नहीं है।

    उन्होंने कहा,

    “मध्य प्रदेश हाईकोर्ट सहित विभिन्न हाईकोर्ट ने विभिन्न मामलों में माना कि आधार कार्ड आयु का दस्तावेज नहीं है।”

    इसके बाद उन्होंने कहा,

    "इस आदेश की कॉपी मुख्य सचिव, मध्य प्रदेश राज्य को भेजी जाए, जिससे आधार कार्ड की कानूनी पवित्रता के संबंध में सभी संबंधित अधिकारियों को नोटिस जारी किया जा सके, जिससे यह स्पष्ट हो सके कि आधार कार्ड आयु का दस्तावेज नहीं है, बल्कि यह केवल पहचान का दस्तावेज है।”

    इस मामले में याचिकाकर्ता सुनीता साहू ने अपने पति की बिजली के झटके से मृत्यु के बाद मुख्यमंत्री जन कल्याण (संबल) योजना 2018 के लिए आवेदन किया था। उनके दावे को अस्वीकार कर दिया गया, क्योंकि उनके पति की आयु योजना की आयु सीमा से अधिक थी, जो आधिकारिक रिकॉर्ड के अनुसार 64 वर्ष है। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि उसके पति की आयु उसके आधार कार्ड पर उल्लिखित जन्म तिथि के आधार पर निर्धारित की जानी चाहिए, जिसे स्वीकार किए जाने पर वह योजना से लाभ उठाने के लिए पात्र होगी।

    अदालत ने पाया कि नरसिंहपुर जिले की पंचायत ने मृतक की आयु को आधार कार्ड पर अंकित जन्म तिथि मानकर कोई गलती नहीं की। याचिकाकर्ता के पति की उम्र 64 वर्ष से अधिक थी। इसलिए वह लाभ के लिए पात्र नहीं थे। याचिकाकर्ता ने 22 फरवरी के आदेश के खिलाफ एसडीओ, गाडरवारा, जिला नरसिंहपुर के समक्ष अपील भी दायर की थी। यह लंबित है, इसलिए अदालत ने पूछा कि अपीलीय प्राधिकारी को भी इसके संबंध में निर्देश दिया जाए।

    अदालत ने याचिकाकर्ता के वकील से यह बताने को कहा कि क्या राज्य सरकार ने आधार कार्ड को आयु का दस्तावेज मानकर कोई योजना बनाई। क्या उस योजना को सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर वरीयता दी जा सकती है।

    न्यायालय ने कहा,

    यह उचित रूप से स्वीकार किया गया कि यह योजना, जो कार्यकारी निर्देश है, सुप्रीम कोर्ट के साथ-साथ हाईकोर्ट द्वारा पारित निर्णयों पर हावी नहीं हो सकती। UIDAI ने अपने परिपत्र संख्या 08/2023 द्वारा स्पष्ट किया कि आधार कार्ड का उपयोग पहचान स्थापित करने के लिए किया जा सकता है। यह जन्मतिथि का प्रमाण नहीं है।”

    न्यायालय ने आगे कहा कि योजना के प्रावधानों में यह स्पष्ट किया गया कि मृतक मजदूर की आयु आधार कार्ड में दर्ज जन्मतिथि के आधार पर मानी जाएगी, जो कि आधार कार्ड के मूल उद्देश्य के विपरीत है। इसलिए इसे मंजूरी नहीं दी जा सकती। चाहे जो भी हो। लेकिन एक बात स्पष्ट है कि चूंकि आधार कार्ड, आधार कार्ड धारक की आयु का प्रमाण नहीं है, इसलिए जनपद पंचायत बाबई चिचली, जिला नरसिंहपुर ने यह मानकर कोई गलती नहीं की कि अन्य सभी प्रासंगिक दस्तावेजों के आधार पर याचिकाकर्ता के मृतक पति की आयु 64 वर्ष से अधिक थी। मृतक के आधार कार्ड में उल्लिखित जन्म तिथि को नजरअंदाज करना सही है।

    न्यायालय ने याचिकाकर्ता की इस दलील को भी खारिज कर दिया कि चूंकि उसने फरवरी के आदेश के खिलाफ एसडीओ, गाडरवारा, जिला नरसिंहपुर के समक्ष अपील दायर की है। वह लंबित है, इसलिए अपीलीय प्राधिकारी को उस पर निर्णय लेने का निर्देश दिया जा सकता है।

    याचिका खारिज करते हुए उन्होंने कहा,

    "यह न्यायालय पहले ही मान चुका है कि आधार कार्ड आयु का दस्तावेज नहीं है। यह पहचान (बायोमेट्रिक, IRIS) का दस्तावेज है तो अपीलीय प्राधिकारी को अपील पर निर्णय लेने का निर्देश देने से कोई उपयोगी उद्देश्य पूरा नहीं होगा, जिससे विशेष रूप से तब अलग दृष्टिकोण अपनाने का अवसर मिल जाएगा, जब इस न्यायालय द्वारा पारित निर्णय मध्य प्रदेश राज्य के भीतर कार्यरत सभी न्यायाधिकरणों पर बाध्यकारी है।”

    विदा लेने से पहले हाईकोर्ट ने राज्य के सभी कलेक्टरों को अपने आदेश को प्रसारित करने के लिए कहा, जिससे वे अपने अधीन कार्यरत सभी अधिकारियों को प्रसारित कर सकें।

    केस टाइटल: सुनीता बाई साहू बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य

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