बलात्कार के लिए निर्धारित न्यूनतम सजा से कम सजा देने पर हाईकोर्ट ने सेशन जज से जवाब मांगा
Amir Ahmad
24 July 2024 2:58 PM IST
बलात्कार के मामले में दोषी ठहराए जाने और सजा के निलंबन के खिलाफ दायर आपराधिक अपील में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने सेशन जज, डिंडोरी से स्पष्टीकरण मांगा कि धारा 376(1) आईपीसी के तहत बलात्कार के अपराध के लिए दोषी को निर्धारित न्यूनतम वैधानिक सजा से कम सजा क्यों दी गई।
जस्टिस दिनेश कुमार पालीवाल की एकल पीठ ने कहा कि दंड विधि (संशोधन) अधिनियम, 2018 (अधिनियम संख्या 22, 2018) की धारा 4-ए में भारतीय दंड संहिता की धारा 376(1) के तहत अपराध के लिए न्यूनतम सजा 10 वर्ष सश्रम कारावास निर्धारित की गई है, जिसे आजीवन कारावास और जुर्माने तक बढ़ाया जा सकता है। न्यायालय ने कहा कि उक्त संशोधन ने धारा 376(1) में पहले पाए गए 7 वर्ष सश्रम कारावास' को प्रतिस्थापित किया।
जबलपुर में बैठी पीठ ने आदेश में उल्लेख किया,
“29.08.2020 को सेशन जज, डिंडोरी द्वारा भारतीय दंड संहिता की धारा 376(1) के तहत अपराध के लिए 07 वर्ष की सजा सुनाना प्रथम दृष्टया निर्धारित न्यूनतम वैधानिक सजा के विरुद्ध है। इसलिए रजिस्ट्री को संबंधित सेशन जज, डिंडोरी से स्पष्टीकरण मांगने का निर्देश दिया जाता है।”
ट्रायल कोर्ट के रिकॉर्ड और प्रवेश पर सुनवाई का विश्लेषण करने के बाद अदालत ने अपील को प्रथम दृष्टया बहस योग्य पाया।
अगस्त 2020 मे IPC की धारा 376 और 506 (II) के तहत अपराधों के लिए डिंडोरी जिले के मेहंदवानी पी.एस में आरोपी के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई। बाद में ट्रायल कोर्ट ने धारा 376 (1) के तहत अपराध के लिए अपीलकर्ता को दोषी ठहराया और उसे 2023 में 7 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई।
अभियोजन पक्ष के अनुसार, घटना की कथित तारीख पर पीड़िता अपने घर में अकेली थी, जब आरोपी वहां पहुंचा और उससे शादी का प्रस्ताव रखा। एफआईआर में आगे कहा गया कि आरोपी ने पीड़िता को धमकाया और उसके साथ बलात्कार किया। बाद में पीड़िता ने अपने माता-पिता को इस दर्दनाक घटना के बारे में जानकारी दी। इसके बाद उसकी गर्भावस्था की भी पुष्टि हुई; शिकायतकर्ता ने एफआईआर दर्ज होने से पहले की घटनाओं के बारे में बताया।
तदनुसार, अभियुक्त को 20.07.2021 को गिरफ्तार किया गया और 2023 में ट्रायल कोर्ट द्वारा दोषी ठहराया गया। हाईकोर्ट के समक्ष दायर आपराधिक अपील में अपीलकर्ता ने कहा कि पिछली सजा अनुमानों पर आधारित थी। अपीलकर्ता ने आगे तर्क दिया कि अभियोजन पक्ष द्वारा भरोसा किए गए मेडिकल साक्ष्य अपर्याप्त हैं और गवाहों के बयानों में भौतिक विरोधाभास हैं।
अपीलकर्ता की ओर से एडवोकेट काजी परवेज पेश हुए। प्रतिवादी राज्य की ओर से उप एडवोकेट जनरल ए.आर. बेन पेश हुए।
मामले को ट्रायल कोर्ट के न्यायाधीश द्वारा दिए जाने वाले स्पष्टीकरण की प्राप्ति के तीन सप्ताह बाद आगे की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया।
केस टाइटल- हरवंश बनाम मध्य प्रदेश राज्य