मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने अनाथ बच्चों को सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण देने की मांग वाली जनहित याचिका पर नोटिस जारी किया
Amir Ahmad
1 May 2025 12:11 PM IST

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने अनाथ बच्चों के कल्याण और उत्थान के लिए उचित नीति बनाने की मांग वाली जनहित याचिका पर राज्य सरकार को नोटिस जारी किया, जिसमें सरकारी, गैर-सरकारी सेवा और शैक्षणिक संस्थानों में अनाथ स्टूडेंट्स के लिए आरक्षण शामिल है।
चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस विवेक जैन की खंडपीठ दिशा एजुकेशन एंड वेलफेयर फाउंडेशन द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जो रजिस्टर्ड सोसायटी है, जिसका उद्देश्य देश में रहने वाले अनाथ बच्चों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करना है।
याचिका में कहा गया कि मध्य प्रदेश सरकार अनाथ बच्चों के कल्याण और उत्थान के लिए उचित नीति बनाने में विफल रही है। इसमें आरोप लगाया गया कि मध्य प्रदेश राज्य सरकार द्वारा अनाथ बच्चों का कोई डेटा नहीं रखा गया या उसका खुलासा नहीं किया गया। हालांकि राज्य सरकार ने मुख्यमंत्री बाल आशीर्वाद योजना-2022 नामक एक नीति बनाई, जो केवल उन्हें 15 लाख रुपये की वित्तीय मदद (2,000 प्रति माह) देकर कागजी औपचारिकता पूरी करने के लिए है। लेकिन शिक्षा में अनाथ बच्चों के लिए आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं है।
याचिका में कहा गया कि छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, महाराष्ट्र और दिल्ली जैसे राज्यों ने नीति बनाई और सरकारी/अर्ध-सरकारी/गैर-सरकारी और साथ ही शैक्षणिक संस्थानों में विभिन्न क्षेत्रों में अनाथ बच्चों को ऊर्ध्वाधर आरक्षण प्रदान किया।
याचिकाकर्ता ने इस याचिका के माध्यम से अनाथों को एक अलग वर्ग के रूप में वर्गीकृत करने और सरकारी/अर्ध-सरकारी/गैर-सरकारी सेवा/कोचिंग सेंटरों के साथ-साथ शैक्षणिक संस्थानों में अनाथ स्टूडेंट्स के लिए 10% आरक्षण बढ़ाने के निर्देश देने की प्रार्थना की।
28 अप्रैल को सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने कहा,
“यह अनाथों के अधिकारों के बारे में है माई लॉर्ड, सरकार के पास कोई डेटा नहीं है। आरक्षण और शैक्षणिक रोजगार के लिए कोई प्रावधान नहीं है।
कोर्ट ने पूछा,
“यह अनाथ बच्चों के बारे में है मध्य प्रदेश में कितने अनाथ बाल गृह हैं?”
वकील ने जवाब दिया,
“ऐसा कोई डेटा नहीं है। मेरे मुवक्किल ने 10-12 अनाथ आश्रमों के बारे में बताया है।”
कोर्ट ने कहा,
“और उनकी शिक्षा और बाकी चीजों के बारे में क्या? कोई प्रावधान नहीं है?”
वकील ने कहा,
“माई लॉर्ड, सरकार ने कुछ पारिश्रमिक देने की नीति बनाई है।”
कोर्ट ने पूछा,
“वे उस राशि का क्या करते हैं?”
वकील ने कहा,
“यह 2000 रुपये प्रति माह है। सभी को नहीं दिया जाता।”
कोर्ट ने पूछा,
“क्या उन्होंने पहचान की? अनाथ कौन हैं या नहीं?”
वकील ने कहा,
“इस बारे में कोई डेटा नहीं है। शैक्षणिक संस्थानों में कोई आरक्षण नहीं है और न ही सरकारी नौकरियों में। दिल्ली यूनिवर्सिटी हर विभाग में अनाथों को आरक्षण देता है। उत्तराखंड में भी इस बारे में नीति है। केंद्र सरकार ने एक विधेयक भी तैयार किया। हालांकि यह अभी तक पारित नहीं हुआ।”
इसके बाद राज्य के वकील ने न्यायालय को सूचित किया कि इसी तरह का एक मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, इसलिए अगली सुनवाई की तारीख पर न्यायालय को अवगत कराने के लिए निर्देश प्राप्त करने के लिए समय मांगा।
न्यायालय ने मामले के महत्व को देखते हुए राज्य के साथ-साथ याचिकाकर्ता के वकील को भी इस पर निर्देश प्राप्त करने के लिए समय दिया।
मामला अगले सप्ताह सूचीबद्ध है।
केस टाइटल: दिशा एजुकेशन एंड वेलफेयर फाउंडेशन बनाम मध्य प्रदेश राज्य, रिट याचिका संख्या 11451/2025

