[POSH एक्ट] केवल ICC कार्यवाही लंबित होने के कारण, जब कि कोई सिफारिश भी न हो, आरोपी का स्थानांतरण अनुचित: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

5 Sep 2024 7:04 AM GMT

  • [POSH एक्ट] केवल ICC कार्यवाही लंबित होने के कारण, जब कि कोई सिफारिश भी न हो, आरोपी का स्थानांतरण अनुचित: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में एक उपनिरीक्षक के तबादले के आदेश को रद्द कर दिया, जिसके खिलाफ कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम (POSH) के तहत आरोप लगाए गए थे। न्यायालय ने कहा कि आंतरिक शिकायत समिति की कार्यवाही लंबित है, केवल इसलिए तबादला किया जाना अनुच‌ित है।

    जस्टिस विवेक जैन की एकल पीठ ने आदेश में कहा, "याचिकाकर्ता का तबादला किसी प्रशासनिक आवश्यकता के आधार पर नहीं किया गया है...स्थानांतरण केवल आंतरिक शिकायत समिति के समक्ष शिकायत के लंबित रहने के कारण किया गया है। याचिकाकर्ता की दलील में दम है कि उसे लगभग 150 किलोमीटर दूर स्थानांतरित करना, उसे दंडित करने के बराबर है। वह भी केवल जांच लंबित रहने के कारण, और अनिश्चितकालीन गतिरोध की स्थिति में"।

    कोर्ट ने आगे कहा कि उन्हें यह मानने में कोई हिचकिचाहट नहीं है कि याचिकाकर्ता का स्थानांतरण "केवल आंतरिक समिति की कार्यवाही के लंबित रहने के कारण, जबकि समिति की ओर से एक भी सिफारिश नहीं है, उचित नहीं है", यह देखते हुए कि समिति की कार्यवाही को "हस्तक्षेपकर्ता (महिला) की ओर से स्वयं अनिश्चितकालीन गतिरोध" में लाया गया था।

    हाईकोर्ट ने कहा, "स्थानांतरण याचिकाकर्ता को अनुचित रूप से प्रताड़ित करने और परेशान करने के अलावा और कुछ नहीं है।"

    निष्कर्ष

    POSH अधिनियम की धारा 12 का संज्ञान लेते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि यद्यपि स्थानांतरण को इन प्रावधानों के तहत उचित ठहराया गया था, लेकिन "POSH अधिनियम की धारा 12 के अनुसार स्थानांतरण को वैधानिक स्थानांतरण होने के लिए, इसे आंतरिक शिकायत समिति की सिफारिश पर होना चाहिए"।

    इसके बाद कोर्ट ने कहा कि वर्तमान मामले में आंतरिक शिकायत समिति का कोई प्रस्ताव नहीं था।

    हाईकोर्ट ने आगे कहा कि रिकॉर्ड में मौजूद दस्तावेजों के अनुसार, 18 अक्टूबर, 2023 को एक पूर्व आंतरिक समिति गठित की गई थी, जिसे इस वर्ष 13 मई और 4 जून को "बार-बार पुनर्गठित" किया गया था।

    आदेश में कहा गया है,

    "हालांकि, हस्तक्षेपकर्ता ने 01.07.2024 के पत्र में कहा है कि उसे आंतरिक शिकायत समिति और किसी स्थानीय समिति पर कोई भरोसा नहीं है और मामले की जांच किसी उच्च स्तर पर गठित किसी राज्य स्तरीय समिति द्वारा की जानी चाहिए। उसने आवेदन में यह भी व्यक्त किया है...कि उसे आंतरिक समिति या स्थानीय समिति पर कोई भरोसा नहीं है। उसने उक्त आवेदन में स्पष्ट रूप से दावा किया है...कि उसे आंतरिक समिति या किसी स्थानीय समिति पर कोई भरोसा नहीं है।"

    तथ्यों पर ध्यान देते हुए, हाईकोर्ट ने कहा कि यह स्पष्ट है कि याचिकाकर्ता के खिलाफ POSH अधिनियम की कार्यवाही एक वर्ष से अधिक समय से लंबित थी और यह भी स्पष्ट था कि "आंतरिक समिति ने दर्ज किया था कि हस्तक्षेपकर्ता समिति की कार्यवाही में सहयोग नहीं कर रहा है"

    रिकॉर्ड पर रखे गए 18 जुलाई के पत्र का हवाला देते हुए, हाईकोर्ट ने कहा कि यह स्पष्ट है कि समिति की कार्यवाही "स्थिर और गतिरोध पर आ गई है, क्योंकि हस्तक्षेपकर्ता ने उक्त समिति द्वारा मामले की जांच करवाने से इनकार कर दिया है, और उक्त समिति में अविश्वास का एक भी आधार नहीं बताया है"।

    अदालत ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि हस्तक्षेपकर्ता ने POSH अधिनियम की कार्यवाही के लंबित रहने का अनुचित लाभ उठाने की कोशिश की है, ताकि "याचिकाकर्ता का तबादला हो जाए और फिर कार्यवाही अनिश्चित काल के लिए रोक दी जाए"।

    स्थानांतरण आदेश को रद्द करते हुए, अदालत ने याचिकाकर्ता के खिलाफ शिकायत में लगाए गए आरोपों और मामले में जवाबी आरोपों पर भी ध्यान दिया और कहा कि नियंत्रण अधिकारी और सक्षम प्राधिकारी कार्यालय में सौहार्दपूर्ण माहौल बनाए रखने के लिए उपयुक्त व्यवस्था करने के लिए हमेशा स्वतंत्र हैं।

    अदालत ने कहा, "इस प्रकार, यह न्यायालय प्रतिवादियों को याचिकाकर्ता को केवल पॉश अधिनियम के तहत कार्यवाही के लंबित रहने के दौरान जबलपुर शहर के भीतर किसी अन्य कार्यालय या प्रतिष्ठान में स्थानांतरित करने, पदस्थापित करने या संलग्न करने की स्वतंत्रता प्रदान करता है, ताकि कार्यालय में सौहार्दपूर्ण वातावरण बनाए रखा जा सके और इससे याचिकाकर्ता के जीवन में कोई अनावश्यक व्यवधान भी न आए, क्योंकि पॉश अधिनियम के तहत कार्यवाही लंबित है, जो शिकायत समिति के समक्ष शिकायतकर्ता/हस्तक्षेपकर्ता द्वारा अपनाए गए रुख के कारण अनिश्चित काल के लिए रुक गई है।"

    केस टाइटल: शंकरलाल नामदेव बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य।

    केस नंबरः रिट पीटिशन नंबर 17827/2024।

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