मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने वैवाहिक विवाद, पति और उसके परिवार द्वारा कथित घरेलू हिंसा के कारण पत्नी को प्रेग्नेंसी टर्मिनेट करने की अनुमति दी
Amir Ahmad
19 Dec 2024 3:28 PM IST
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर पीठ ने हाल ही में दिए गए अपने फैसले में वैवाहिक विवाद और पति तथा उसके परिवार द्वारा कथित घरेलू हिंसा के कारण महिला की प्रेग्नेंसी को टर्मिनेट करने की अनुमति दी।
प्रस्तुतियों और साथ ही सुप्रीम कोर्ट के एक्स बनाम प्रमुख सचिव स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग दिल्ली सरकार के फैसले को ध्यान में रखते हुए जस्टिस सुबोध अभ्यंकर ने कहा,
"यह न्यायालय इस बात पर विचार कर रहा है कि याचिकाकर्ता के अपने पति के साथ विवाद के कारण जिसके कारण उसने घरेलू हिंसा का आरोप लगाते हुए अपराध संख्या 875/24 पर FIR दर्ज कराई, यदि उसे प्रेग्नेंसी जारी रखने के लिए मजबूर किया जाता है, जो वह नहीं चाहती है, तो यह उचित नहीं होगा, क्योंकि यह निश्चित रूप से उसके भविष्य के जीवन और उसके बच्चे के जीवन को गंभीर रूप से प्रभावित करेगा।"
वर्तमान याचिका भारतीय संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत दायर की गई, जिसमें याचिकाकर्ता के पति के साथ उत्पन्न वैवाहिक विवाद के कारण मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी करने की मांग की गई थी।
पत्नी ने धारा 85, 296, 115(2), 3(5) और बीएनएस की 351(3) के तहत अपने पति और उसके परिवार के सदस्यों द्वारा क्रूरता का आरोप लगाते हुए FIR भी दर्ज कराई।
इससे पहले अदालत ने मुख्य मेडिकल एवं स्वास्थ्य अधिकारी जिला अस्पताल देवास को यह पता लगाने का निर्देश दिया कि क्या याचिकाकर्ता की गर्भावस्था को समाप्त किया जा सकता है और प्रतिवादी राज्य के वकील द्वारा सूचित किया गया कि मेडिकल बोर्ड के अनुसार याचिकाकर्ता प्रेग्नेंसी को टर्मिनेट करने के लिए फिट है। उक्त तिथि पर प्रतिवादी संख्या 4/पति भी अदालत के समक्ष उपस्थित थे। इस प्रकार अदालत ने मामले को सुनवाई के लिए भेज दिया।
पक्षों के बीच समझौते की संभावना तलाशने के लिए मध्यस्थता की गई। हालांकि मध्यस्थ द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट के अनुसार यह पाया गया कि मध्यस्थता की कार्यवाही विफल रही है।
इसके बाद अदालत ने याचिकाकर्ता और प्रतिवादी नंबर 4 को चैंबर में व्यक्तिगत रूप से सुना, जिससे यह पता लगाया जा सके कि क्या पक्षों के बीच समझौते की कोई संभावना है, क्योंकि याचिकाकर्ता केवल वैवाहिक विवाद के कारण अपनी प्रेगनेंसी को टर्मिनेट करने की मांग कर रही थी। हालांकि याचिकाकर्ता ने स्पष्ट रूप से कहा कि वह अपनी प्रेग्नेंसी को जारी नहीं रखना चाहती थी, क्योंकि उसके पति के साथ उसके गंभीर मतभेद थे। इसलिए उसने FIR भी दर्ज कराई।
याचिकाकर्ता ने यह भी दावा किया कि यदि गर्भावस्था को केवल इस चरण में समाप्त नहीं किया जाता है तो वह अपने जीवन के बाकी हिस्सों के लिए अपूरणीय पीड़ा झेलेगी, क्योंकि उसके और उसके पति के बीच विवाद के कारण उसके बच्चे का भविष्य भी खतरे में पड़ जाएगा।
इसके विपरीत प्रतिवादी संख्या 4/पति ने प्रस्तुत किया कि ऐसा कोई विवाद नहीं है, जिसे उनके बीच सुलझाया न जा सके और अपनी पत्नी प्रेग्नेंसी को जारी रखने की अपनी इच्छा व्यक्त की।
एक्स बनाम प्रिंसिपल सेक्रेटरी स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग सरकार एनसीटी दिल्ली में पारित निर्णय पर भरोसा करते हुए न्यायालय ने कहा कि यह उचित नहीं होगा यदि याचिकाकर्ता को प्रेग्नेंसी जारी रखने के लिए मजबूर किया जाता है, जो वह नहीं चाहती है। न्यायालय ने रिट याचिका को अनुमति दी और मुख्य मेडिकल एवं स्वास्थ्य अधिकारी को याचिकाकर्ता की गर्भावस्था को जल्द से जल्द समाप्त करने के लिए आगे बढ़ने का निर्देश दिया।
केस टाइटल: एक्स बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य