भारत में वैवाहिक बलात्कार को मान्यता नहीं: हाईकोर्ट ने अप्राकृतिक यौन संबंध के आरोप में बरी करने का फैसला बरकरार रखा
Amir Ahmad
21 April 2025 5:37 AM

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर पीठ ने अप्राकृतिक यौन संबंध के आरोप में एक व्यक्ति को बरी करने के आदेश को बरकरार रखा।
नवजीत सिंह जौहर बनाम भारत संघ विधि मंत्रालय में सुप्रीम कोर्ट के फैसले और उमंग सिंघार बनाम मध्य प्रदेश राज्य में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए जस्टिस बिनोद कुमार द्विवेदी की एकल पीठ ने कहा कि आज तक भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत वैवाहिक बलात्कार को मान्यता नहीं दी गई है।
याचिकाकर्ता-पत्नी ने आरोप लगाया कि उसके साथ क्रूरता की गई दहेज की मांग की गई और अप्राकृतिक यौन संबंध बनाए गए। इस प्रकार IPC की धारा 498-ए (क्रूरता), 377 (अप्राकृतिक अपराध), 323 (स्वेच्छा से चोट पहुंचाने के लिए दंड), 294 (अश्लील कृत्य और गीत) और 506 (आपराधिक धमकी के लिए दंड) के साथ धारा 34 (सामान्य इरादे को आगे बढ़ाने में कई व्यक्तियों द्वारा किए गए कार्य) और दहेज निषेध अधिनियम की धारा 3 (दहेज देने या लेने के लिए दंड) के साथ धारा 4 (दहेज मांगने के लिए दंड) के तहत दंडनीय अपराध करने के लिए एक FIR दर्ज की गई।
याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि भारी सबूतों के बावजूद प्रतिवादी नंबर 2 - पति को IPC की धारा 377 के तहत अपराध से मुक्त कर दिया गया।
इसके विपरीत प्रतिवादी नंबर 2 के वकील ने इस आधार पर विवादित आदेश का समर्थन किया कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा IPC की धारा 377 के तहत अपराध को असंवैधानिक घोषित किया गया। IPC की धारा 375 के तहत बलात्कार की संशोधित परिभाषा के अनुसार विवाह के दौरान पत्नी के साथ यौन संबंध बनाना IPC की धारा 377 के तहत अपराध नहीं माना जाता।
पक्षकारों को सुनने के बाद न्यायालय ने पति और पत्नी के बीच अप्राकृतिक यौन संबंध के पहलू पर विचार-विमर्श करने वाले कुछ निर्णयों का उल्लेख किया और IPC की धारा 375 के तहत बलात्कार की संशोधित परिभाषा का उल्लेख किया। न्यायालय ने यह भी कहा कि आज तक आईपीसी के तहत वैवाहिक बलात्कार को मान्यता नहीं दी गई।
न्यायालय ने मनीष साहू पुत्र ओंकार प्रसाद साहू बनाम मध्य प्रदेश राज्य के फैसले का भी हवाला दिया, जिसमें यह देखा गया। हालांकि, यह न्यायालय IPC की धारा 375 के तहत परिभाषित बलात्कार की संशोधित परिभाषा पर विचार करने के बाद पहले ही इस निष्कर्ष पर पहुंच चुका है कि यदि एक पत्नी वैध विवाह के दौरान अपने पति के साथ रह रही है तो किसी पुरुष द्वारा पंद्रह वर्ष से कम उम्र की अपनी पत्नी के साथ कोई भी संभोग या यौन क्रिया बलात्कार नहीं होगी। इसलिए IPC की धारा 375 के तहत बलात्कार की संशोधित परिभाषा के मद्देनजर, जिसके द्वारा एक महिला के गुदा में लिंग का प्रवेश भी बलात्कार की परिभाषा में शामिल किया गया। पति द्वारा पंद्रह वर्ष से कम उम्र की अपनी पत्नी के साथ कोई भी संभोग या यौन क्रिया बलात्कार नहीं है तो इन परिस्थितियों में अप्राकृतिक कृत्य के लिए पत्नी की सहमति का अभाव अपना महत्व खो देता है। वैवाहिक बलात्कार को अब तक मान्यता नहीं दी गई। IPC की धारा 377 के तहत मामला दर्ज किया गया।
इस प्रकार उपरोक्त निर्णयों के आलोक में न्यायालय ने पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी।
केस टाइटल: जे.के. बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य, आपराधिक पुनर्विचार संख्या 1937/2024