मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हत्या की जांच पूरी करने के लिए झूठे गवाह थोपने पर पुलिस की कड़ी आलोचना की, डीजीपी को उचित जांच के लिए दिशानिर्देश जारी करने का निर्देश दिया
Amir Ahmad
4 Aug 2025 4:48 PM IST

2021 के एक हत्या के मामले में दो लोगों की दोषसिद्धि रद्द करते हुए मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने टिप्पणी की कि पुलिस अधिकारियों ने जांच की निष्पक्षता बनाए रखे बिना जांच पूरी करने के अपने उत्साह में एक झूठे गवाह को थोप दिया।
राज्य में जांच की बेईमानी स्थिति पर टिप्पणी करते हुए न्यायालय ने मध्य प्रदेश के पुलिस डायरेक्टर जनरल (DGP) को उचित जांच के लिए उचित दिशानिर्देश जारी करने का निर्देश दिया। साथ ही DGP को संबंधित जांच अधिकारी और वर्तमान मामले में शामिल अन्य पुलिसकर्मियों के खिलाफ विभागीय जाँच दर्ज करने का निर्देश दिया।
जांच के संबंध में पुलिस अधिकारियों के आचरण की आलोचना करते हुए जस्टिस विवेक अग्रवाल और जस्टिस अवनींद्र कुमार सिंह की खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा कि मृतक का पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर ने कहा था कि उन्होंने 25.9.2021 को पोस्टमार्टम किया था> पोस्टमार्टम के 4-6 दिनों के भीतर ही मृत्यु हो गई थी।
अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष के दो गवाहों का यह साक्ष्य कि मृतक 19.9.2021 से 25.9.2021 तक आरोपी व्यक्ति की बेटी के लगातार संपर्क में था, पोस्टमार्टम रिपोर्ट के मद्देनजर झूठा है, क्योंकि जैसा कि हम आम बोलचाल में समझते हैं> विज्ञान अभी इतना विकसित नहीं हुआ है कि एक मृतक मोबाइल फोन के माध्यम से आरोपी व्यक्ति की बेटी से बात कर सके।
इसके बाद पीठ ने टिप्पणी की,
"यह एक और कमी है, जो दर्शाती है कि मध्य प्रदेश राज्य में जांच की स्थिति कितनी बेईमान है। पुलिस अधिकारियों सहित अभियोजन पक्ष के सभी गवाह ईमानदार पारदर्शी और स्वतंत्र जांच करने के बजाय केवल जांच पूरी करने और आरोप पत्र दाखिल करने के लिए झूठ का सहारा लेते हैं।"
न्यायालय ने निर्देश दिया,
"मध्य प्रदेश राज्य के पुलिस महानिदेशक को उचित जांच के लिए उचित दिशा-निर्देश जारी करने और मामले में शामिल जांच अधिकारी और अन्य पुलिसकर्मियों के विरुद्ध उचित विभागीय जांच शुरू करने का निर्देश दिया जाता है, जिसकी सूची DGP के शासकीय एडवोकेट अजय ताम्रकार द्वारा इस निर्णय की प्रमाणित प्रति के साथ प्रस्तुत की जाएगी। इस बात की जांच की जाए कि निर्दोष नागरिकों के जीवन और स्वतंत्रता को छीनने के लिए झूठे गवाहों को क्यों आरोपित किया जा रहा है और उसके बाद तीस दिनों के भीतर रिपोर्ट प्रस्तुत की जाए।"
यह मामला लखन पंढरे द्वारा 22 सितंबर, 2021 को दर्ज कराई गई गुमशुदगी की रिपोर्ट से उत्पन्न हुआ था, जब उनका बेटा राजेंद्र घर नहीं लौटा था। बाद में उसका क्षत-विक्षत शव एक जंगली इलाके में मिला। इस संबंध में भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 302 और 201 के तहत FIR दर्ज की गई। पुलिस ने कथित तौर पर राजेंद्र के कपड़े उनके घर से बरामद करने के बाद नैन सिंह और उनके बेटे संदीप को गिरफ्तार कर लिया।
अभियोजन पक्ष ने सुझाव दिया कि हत्या राजेंद्र के नैन सिंह की बेटी के साथ प्रेम संबंधों के कारण हुई थी।
निचली अदालत ने दोनों को दोषी ठहराते हुए तीन साल के कठोर कारावास सहित आजीवन कारावास की सजा सुनाई। दोनों ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और तर्क दिया कि निचली अदालत ने मुख्य गवाह की अविश्वसनीय गवाही पर भरोसा किया।
खंडपीठ को अभियोजन पक्ष के मामले में कई विसंगतियां मिलीं। यह पाया गया कि नैन के घर से बरामद कपड़े मृतक के पिता द्वारा शुरू में दिए गए विवरण से मेल नहीं खाते थे। महत्वपूर्ण बात यह है कि आरोपी के घर से न तो मृतक का फोन और न ही उसका गमछा बरामद हुआ।
अदालत ने अभियोजन पक्ष के गवाह चैन सिंह (पीडब्लू 6) जिसे एक मुख्य गवाह के रूप में पेश किया गया। गवाही की भी जांच की, जिसने अंततः स्वीकार किया कि उसे पूरी घटना के बारे में पुलिस द्वारा केरल से वापस लाए जाने के बाद ही पता चला।
खंडपीठ ने आगे कहा,
"अभियोजन पक्ष ने इस गवाह से उसके पिछले बयान में कोई विरोधाभास निकालने के लिए दोबारा पूछताछ नहीं की कि उसे घटना के बारे में तब पता चला जब पुलिस उसे केरल से लेकर आई। इस प्रकार, यह मुकदमे का संचालन करने वाले संबंधित लोक अभियोजक की घोर विफलता है।"
यह निष्कर्ष निकालते हुए कि जांच में समझौता किया गया और साक्ष्य अविश्वसनीय हैं, अदालत ने फैसला सुनाया कि कथित प्रेम संबंध का इस्तेमाल अभियुक्तों को फंसाने के लिए केवल एक बहाने के तौर पर किया गया। अदालत ने माना कि चैन सिंह के साक्ष्य पुलिस द्वारा जाँच पूरी करने के लिए गढ़े गए।
अदालत ने दोषसिद्धि आदेश रद्द करते हुए और अपीलकर्ताओं को रिहा करने का निर्देश देते हुए कहा,
"अभियोजन पक्ष परिस्थितियों की श्रृंखला पूरी करने में विफल रहा है। उन्होंने गवाहों को आरोपित करने का ऐसा प्रयास किया, जिससे पुलिस द्वारा सद्भावनापूर्वक जांच करने की धारणा नष्ट हो जाती है, परिस्थितियों की श्रृंखला पूरी नहीं हुई है। इसलिए फर्स्ट अपर सेशन जज, मंडला जिला मंडला द्वारा एस.टी. नंबर 37/2022 में पारित दिनांक 11.12.2023 का दोषसिद्धि संबंधी आक्षेपित निर्णय रद्द किया जाता है।"
केस टाइटल: नैन सिंह धुर्वे बनाम मध्य प्रदेश राज्य

