कानूनी सेवाओं के विज्ञापनों पर PIL दाखिल, हाईकोर्ट ने रोका, जनहित कहां है दिखाइए
Amir Ahmad
3 Sept 2025 11:59 AM IST

मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने मंगलवार (2 सितंबर) को कानूनी सेवाएं उपलब्ध कराने वाले ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के खिलाफ दायर जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान महत्वपूर्ण सवाल खड़ा किया। अदालत ने मौखिक टिप्पणी करते हुए याचिकाकर्ताओं से पूछा कि इस मामले को जनहित याचिका (PIL) के दायरे में कैसे लाया जा सकता है।
जस्टिस विजय कुमार शुक्ला और जस्टिस बिनोद कुमार द्विवेदी की खंडपीठ ने याचिकाकर्ताओं के वकील से सवाल किया कि जब मामला निजी या विशेष शिकायत जैसा प्रतीत होता है तो यह जनहित कैसे है।
याचिका में कहा गया कि संबंधित ऑनलाइन प्लेटफॉर्म फिक्स्ड प्राइस पैकेज के जरिए सेवाएं बेच रहा है। मशहूर फिल्म हस्तियों के जरिये सोशल मीडिया पर प्रायोजित विज्ञापनों से उन्हें प्रचारित कर रहा है। इन वीडियो और विज्ञापनों में ऐसा आभास कराया जा रहा है कि कंपनी अदालत में मामलों की पैरवी करने और कानूनी निवारण उपलब्ध कराने के लिए विशेषज्ञ नियुक्त करेगी।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि यह वकीलों के पेशे का सरासर व्यावसायीकरण है और अधिवक्ता अधिनियम का उल्लंघन है।
अदालत ने कहा,
"हम टिप्पणियों (YouTube/Instagram पर) से नहीं चलते...ये केवल प्लेटफॉर्म हैं। वीडियो में तो सिर्फ ट्रेडमार्क रजिस्ट्रेशन कराने की बात कही गई। इसमें वकीलों या लॉ फर्म का कोई उल्लेख नहीं है।"
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया,
"पीआईएल कोई ऐसा मंच नहीं है जहां हर प्रकार की शिकायत लाई जाए। पहले हमें संतुष्ट करना होगा कि इसमें वास्तव में जनहित का प्रश्न है।"
याचिकाकर्ता ने कहा कि उन्होंने राज्य बार काउंसिल और बार काउंसिल ऑफ इंडिया से भी शिकायत की थी लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। इस पर अदालत ने पूछा कि क्या इन्हें पक्षकार बनाया गया। जवाब में बताया गया कि दोनों को प्रतिवादी बनाया गया।
सुनवाई के बाद पीठ ने आदेश में कहा,
"याचिकाकर्ता ने राज्य एडवोकेट परिषद, इंदौर कार्यालय को याचिका की कॉपी उपलब्ध कराई है। मामले को अगले सप्ताह सूचीबद्ध किया जाए।"
अदालत ने इस चरण में न तो नोटिस जारी किया और न ही याचिका की मेरिट पर कोई राय व्यक्त की।
केस टाइटल: प्रशांत उपाध्याय बनाम बार काउंसिल ऑफ इंडिया

