आपसी विश्वास सुनहरा धागा: एमपी हाईकोर्ट ने झूठे आरोपों को क्रूरता मानते हुए पति को दी तलाक की अनुमति
Amir Ahmad
4 Nov 2025 6:50 PM IST

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने वैवाहिक संबंध में आपसी विश्वास (Mutual Trust) को सुनहरा धागा (Golden Thread) बताते हुए टिप्पणी की कि जब एक जीवनसाथी दूसरे पर बेबुनियाद और मानहानिकारक आरोप लगाता है तो यह विश्वास टूट जाता है। कोर्ट ने पत्नी द्वारा लगाए गए झूठे आरोपों को क्रूरता मानते हुए और लंबे समय तक परित्याग (Desertion) के आधार पर पति को तलाक की मंजूरी दी।
कोर्ट ने कहा,
"वैवाहिक संबंध में आपसी विश्वास वह सुनहरा धागा है, जो विवाहित जोड़ों के जीवन में स्नेह और प्रशंसा बुनता है। जब एक पक्ष दूसरे पर बेबुनियाद और मानहानिकारक आरोप लगाता है तो यह क्षतिग्रस्त हो जाता है।"
पति का दावा था कि शादी के सिर्फ एक महीने बाद ही पत्नी मायके चली गई। पत्नी ने आरोप लगाया कि उसके मायके जाने के बाद जब उसने बेटी को जन्म दिया तो पति उससे मिलने नहीं गया। पति ने यह भी दावा किया कि पत्नी के अशिष्ट व्यवहार और उसके नियोक्ता को वैवाहिक विवादों की झूठी जानकारी देने के कारण उसे अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा।
पत्नी के वकील ने दावा किया कि उसे इतनी प्रताड़ित किया गया कि उसके पास घर छोड़ना ही एकमात्र विकल्प है। उसने यह भी आरोप लगाया कि उसके ससुराल वालों ने कम दहेज पर असंतोष व्यक्त किया और और अधिक दहेज की मांग की। उसने यह भी कहा कि पति ने इस बीच ऑस्ट्रेलिया जाकर दूसरी शादी कर ली।
हाईकोर्ट ने पाया कि पत्नी द्वारा दहेज की मांग, इस मांग के लिए उत्पीड़न और उसे जबरन घर से बाहर निकालने के संबंध में कोई पुलिस रिपोर्ट या शिकायत दर्ज नहीं की गई।
कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि झूठे आरोप लगाने से दूसरे जीवनसाथी को शर्मिंदगी, उपहास, उत्पीड़न और यहां तक कि दंडात्मक दायित्व का सामना करना पड़ सकता है। इसलिए ऐसे आरोप लगाते समय जीवनसाथी पर संवेदनशील और सावधान रहने का भारी बोझ होता है। कोर्ट ने पाया कि ट्रायल कोर्ट में दर्ज बयानों से यह पता चलता है कि पत्नी ये आरोप बहुत लापरवाही से लगा रही थी और वह दहेज उत्पीड़न के हालात का विवरण देने में विफल रही।
पत्नी ने यह तर्क दिया कि उसने पुलिस रिपोर्ट इसलिए दर्ज नहीं कराई ताकि वह अपने वैवाहिक रिश्ते को और नुकसान से बचा सके। हालांकि, कोर्ट ने इस स्पष्टीकरण को मामले की परिस्थितियों के अनुकूल नहीं पाया। कोर्ट ने टिप्पणी की कि पत्नी का भरण-पोषण के लिए याचिका दायर करना जबकि दहेज उत्पीड़न के लिए पुलिस रिपोर्ट दर्ज न करना, यह नहीं समझाता कि इन कार्यों ने वैवाहिक संबंधों को मजबूत करने में कैसे मदद की।
कोर्ट ने यह भी पाया कि पत्नी ने स्वयं ससुराल छोड़ा था, फिर भी वह पति से यह उम्मीद कर रही थी कि वह उसके मायके आए और उसे वैवाहिक संबंध बहाल करने के लिए मनाए।
कोर्ट ने इस पर कड़ी टिप्पणी की,
"उसका अत्यधिक आग्रह यह आभास देता है कि उसका अहंकार उसे वैवाहिक संबंध बहाल करने से रोक रहा था, जबकि वह खुद ही ससुराल छोड़ चुकी थी। इस अहंकारी दृष्टिकोण को हिंदू विवाह अधिनियम के प्रावधानों के तहत समायोजित नहीं किया जा सकता है।"
कोर्ट ने इन निष्कर्षों के आधार पर माना कि पत्नी ने बिना किसी उचित कारण के पति का परित्याग किया। पत्नी दहेज उत्पीड़न के आरोपों या पति द्वारा दूसरी शादी करने के आरोपों को भी साबित करने में विफल रही। इसलिए कोर्ट ने पति को क्रूरता और परित्याग के आधार पर तलाक दे दिया।
कोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने सबूतों की सराहना करने में गलती की उसने इस बात पर अधिक ध्यान दिया कि किस पक्ष ने संबंध बहाल करने की कम पहल की, बजाय इसके कि वास्तव में परित्याग के कृत्य के लिए कौन ज़िम्मेदार था।

