पत्नी का गुस्सा पति की प्रतिष्ठा धूमिल करने का हक नहीं देता: MP हाईकोर्ट ने बेवफाई के झूठे आरोपों पर दी तलाक की मंजूरी
Amir Ahmad
14 Oct 2025 12:16 PM IST

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसले में माना कि अपने जीवनसाथी के खिलाफ चरित्रहीनता (Moral Turpitude) के निराधार और झूठे आरोप लगाना क्रूरता (Cruelty) की श्रेणी में आता है और यह तलाक का आधार बन सकता है।
हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि पत्नी का गुस्सा उसे निराधार आरोप लगाकर पति की छवि को धूमिल करने का अधिकार नहीं देता है। इन टिप्पणियों के साथ कोर्ट ने फैमिली कोर्ट के उस आदेश को रद्द करते हुए पति को तलाक दिया, जिसमें केवल न्यायिक पृथक्करण मंजूर किया गया था लेकिन तलाक नहीं दिया गया था।
जस्टिस विशाल धगट और जस्टिस अनुराधा शुक्ला की खंडपीठ ने अवलोकन किया,
"यह स्थापित हो चुका है कि प्रतिवादी/पत्नी पति के अवैध संबंधों के बारे में बहुत गंभीर आरोप लगा रही थी और वह उन आरोपों में सत्य का एक भी अंश साबित करने में बुरी तरह विफल रही। इस तरह के चरित्रहीनता के निराधार और झूठे आरोप लगाना न केवल विवाह के दूसरे पक्ष को मानसिक पीड़ा देते हैं, बल्कि यह वैवाहिक संबंध को भी पूरी तरह से समाप्त कर देते हैं।"
कोर्ट ने आगे कहा कि अगर आरोप सत्य होते तो पत्नी को उन्हें साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़नी चाहिए। इन गंभीर आरोपों को साबित करने का बोझ उसी पर है। चूंकि वह विश्वसनीयता के लायक कुछ भी साबित नहीं कर पाई, इसलिए कोर्ट ने यह मानने में कोई अतिशयोक्ति नहीं पाई कि पति को इन आरोपों के कारण अत्यधिक पीड़ा हुई और वह क्रूरता का शिकार हुआ।
हाईकोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट यह मानने में सही है कि पत्नी का व्यवहार पति के प्रति क्रूर था। खासकर जब वह आरोप लगाने के बावजूद पति के कथित 'अनैतिक चरित्र' को साबित नहीं कर पाई।
कोर्ट ने स्पष्ट किया,
"हम जानते हैं कि पक्षों के बीच संबंध इतने कड़वे हो गए कि दोनों में से किसी के मन में भी दूसरे के लिए कोई सहानुभूति नहीं थी, लेकिन इस तरह के संबंध भी दूसरे पक्ष के नैतिक चरित्र के बारे में झूठे आरोप लगाने का बहाना नहीं हो सकते।"
कोर्ट ने कहा कि जब फैमिली कोर्ट ने खुद यह माना था कि पति क्रूरता का शिकार हो रहा है तो तलाक की डिक्री न देना अकारण और अन्यायपूर्ण था।
दंपति ने 2002 में शादी की थी लेकिन 2019 से अलग रह रहे थे। पति द्वारा दायर तलाक याचिका के अनुसार पत्नी बच्चे की उपेक्षा करती थी और ससुराल वालों के प्रति विरोध रखती थी। पत्नी ने पति के खिलाफ घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 की धारा 12 के तहत कार्यवाही भी शुरू की थी।
वहीं पत्नी ने दावा किया कि उसे वैवाहिक घर में प्रवेश नहीं दिया गया और पति के अन्य महिलाओं के साथ अवैध संबंध हैं।
हाईकोर्ट ने नोट किया कि पत्नी द्वारा गुस्से में डीवी एक्ट के तहत कार्यवाही शुरू करने की दलील उसे पति के नैतिक चरित्र पर निराधार आरोप लगाकर उसकी छवि धूमिल करने के दायित्व से मुक्त नहीं करती है।
कोर्ट ने यह भी पाया कि पति के अवैध संबंध के संबंध में पत्नी द्वारा प्रस्तुत तस्वीरें और चैट साबित नहीं हो सके, क्योंकि प्रस्तुत साक्ष्य फोटोकॉपी थे और उनके स्रोतों के बारे में कोई प्रमाण पत्र संलग्न नहीं था।
अतः कोर्ट ने माना कि पति तलाक की डिक्री का हकदार है। खंडपीठ ने परित्याग (Desertion) का आधार खारिज करने के ट्रायल कोर्ट के फैसले का समर्थन किया, क्योंकि उनका व्यवहार एक-दूसरे से स्थायी रूप से अलग होने के इरादे को साबित नहीं करता था।
खंडपीठ ने निर्देश दिया,
"परिणामस्वरूप अपीलकर्ता/पति द्वारा दायर अपील क्रूरता के आधार पर स्वीकार की जाती है और प्रतिवादी/पत्नी द्वारा दायर क्रॉस-ऑब्जेक्शन खारिज किया जाता है। फलस्वरूप 08.12.2002 को संपन्न विवाह को क्रूरता के आधार पर भंग घोषित किया जाता है।"

