एक ठोस योजना दिखाइए: एमपी हाईकोर्ट ने प्रतिपूरक वृक्षारोपण पर राज्य से विस्तृत जानकारी मांगी
Amir Ahmad
18 Dec 2025 4:08 PM IST

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए निर्देश दिया कि वह प्रतिपूरक वृक्षारोपण को लेकर एक बेहतर और स्पष्ट हलफनामा दाखिल करे, जिसमें यह साफ-साफ बताया जाए कि काटे गए पेड़ों के बदले किस प्रकार के पेड़ लगाए जाएंगे, उनकी उम्र, मोटाई (गिर्थ), संख्या और सटीक स्थान क्या होगा।
यह निर्देश बुधवार को चीफ जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस विनय सराफ की खंडपीठ ने दिया।
अदालत ने स्पष्ट किया कि मध्य प्रदेश में आगे किसी भी प्रकार की पेड़ों की कटाई या छंटाई केवल उसी स्थिति में की जा सकती है, जब उसके लिए राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) उसके द्वारा गठित समिति और संबंधित ट्री ऑफिसर से पूर्व अनुमति प्राप्त हो।
अदालत ने कहा कि बिना सक्षम अनुमति के किसी भी परियोजना के तहत पेड़ों की कटाई स्वीकार्य नहीं होगी।
यह टिप्पणी एक स्वतः संज्ञान याचिका में की गई, जो टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के आधार पर शुरू की गई।
रिपोर्ट में आरोप लगाया गया कि लोक निर्माण विभाग ने बिना आवश्यक अनुमति के 488 पेड़ काट दिए। रिपोर्ट में यह भी उल्लेख था कि भोपाल के नीलबड़ क्षेत्र में स्टेडियम निर्माण और सड़क चौड़ीकरण के लिए पेड़ काटने के मामले में NGT की केंद्रीय पीठ ने सरकार को एक समिति गठित करने का निर्देश दिया था।
सुनवाई के दौरान रेलवे विभाग द्वारा कथित रूप से 8,000 पेड़ काटे जाने और विधानसभा भवन नियंत्रक की ओर से आवासीय परिसर निर्माण में बाधा बन रहे पेड़ों को “हटाने” से संबंधित पत्राचार पर भी चर्चा हुई, जिसमें बड़ी मात्रा में लकड़ी जमा होने और उसके उपयोग की अनुमति मांगे जाने की बात सामने आई।
इस बीच एक अंतरिम आवेदन के जरिए राज्य सरकार द्वारा चार चरणों में लगभग छह लाख पेड़ों की कटाई को लेकर भी चिंता जताई गई। भास्कर इंग्लिश की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा गया कि सिंगरौली जिले में घिरौली कोयला ब्लॉक के पास खनन कार्यों के लिए बड़े पैमाने पर पेड़ काटे जा रहे हैं।
हालांकि हाईकोर्ट ने इन आपत्तियों पर विचार करने से इनकार करते हुए कहा कि ऐसे सभी मुद्दे NGT के समक्ष उठाए जाने चाहिए, क्योंकि वही इस विषय पर सक्षम वैधानिक प्राधिकरण है।
अदालत ने मौखिक टिप्पणी में कहा कि उसने पेड़ों की कटाई पर पूर्ण प्रतिबंध नहीं लगाया बल्कि यह स्पष्ट किया कि प्रत्येक परियोजना को सक्षम प्राधिकरण द्वारा परखा जाना चाहिए और पर्यावरण संरक्षण को ध्यान में रखते हुए निर्देश जारी किए जाने चाहिए।
अदालत ने कहा कि यदि हर मामले में हाईकोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़े तो यह व्यावहारिक नहीं होगा।
राज्य सरकार ने पिछली सुनवाई के अनुपालन में विधानसभा आवासीय परियोजना से जुड़ी एक रिपोर्ट पेश की, जिसमें काटे जाने वाले प्रत्येक पेड़ का जियो-टैग विवरण दिया गया था। हालांकि अदालत ने सरकार द्वारा बार-बार ट्रांसप्लांटेशन शब्द के प्रयोग पर कड़ी आपत्ति जताई।
चीफ जस्टिस ने मौखिक रूप से कहा कि पेड़ की शाखाएं काटकर उसे कहीं और ले जाने को ट्रांसप्लांटेशन नहीं कहा जा सकता और इस शब्द का गलत इस्तेमाल किया जा रहा है।
राज्य की ओर से यह भी बताया गया कि 242 पेड़ काटे जाने प्रस्तावित हैं और इसके बदले 2,440 पेड़ लगाए जाएंगे। अदालत ने इस प्रयास को सराहनीय तो बताया, लेकिन स्पष्ट और सत्यापन योग्य योजना की कमी पर सवाल उठाए।
अदालत ने कहा कि यह बताया जाना चाहिए कि पेड़ कहां लगाए जाएंगे किस प्रजाति के होंगे और क्या उस क्षेत्र में वास्तव में इतनी संख्या में पेड़ लगाने की क्षमता है।
जब राज्य ने ग्राम चंदनपुरा में लगभग 9.781 हेक्टेयर भूमि को वृक्षारोपण के लिए चिह्नित बताया तो अदालत ने ध्यान दिलाया कि यह क्षेत्र पहले से ही एक सिटी फॉरेस्ट के निकट है और वहां हरियाली मौजूद है। ऐसे में यह स्पष्ट करना जरूरी है कि वहां अतिरिक्त वृक्षारोपण से वास्तव में हरित आवरण में क्या वृद्धि होगी।
अंततः अदालत ने आदेश में कहा कि राज्य सरकार एक नया और बेहतर हलफनामा दाखिल करे जिसमें प्रतिपूरक वृक्षारोपण की पूरी योजना लगाए जाने वाले पेड़ों की प्रजाति, उम्र, मोटाई और सटीक स्थान का स्पष्ट विवरण हो।
मामले की अगली सुनवाई 14 जनवरी, 2026 को होने की संभावना है।

