हाथ पर हाथ धरे बैठी है पुलिस: एमपी हाईकोर्ट ने बजाज फाइनेंस की कथित जबरन वसूली पर प्रारंभिक जांच के आदेश दिए
Amir Ahmad
23 Sept 2025 11:49 AM IST

मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने बजाज फाइनेंस लिमिटेड के खिलाफ लगाए गए आरोपों पर पुलिस की निष्क्रियता को गंभीरता से लेते हुए संबंधित अधिकारियों को 90 दिनों के भीतर प्रारंभिक जांच करने का निर्देश दिया। कंपनी पर आरोप है कि उसने 25.69 लाख के व्यवसायिक ऋण की वसूली के लिए धमकाने, दुर्व्यवहार करने और जबरन तरीकों का सहारा लिया।
जस्टिस प्रणय वर्मा की सिंगल बेंच ने कहा कि पुलिस अधिकारी मामले पर हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं और शिकायत पर कोई कार्रवाई नहीं कर रहे।
अदालत ने कहा,
“अधिकारियों को निर्देशित किया जाता है कि वे शिकायत की जांच करें और तय करें कि कोई संज्ञेय अपराध बनता है या नहीं। यदि अपराध बनता है तो प्राथमिकी दर्ज की जाए, अन्यथा याची को सूचित किया जाए। यह प्रक्रिया आदेश की प्रमाणित प्रति प्राप्त होने के 90 दिनों के भीतर पूरी की जाए।"
याचिका में क्या कहा गया
आरात्रिका ट्रेडर्स नामक फर्म ने याचिका दायर कर आरोप लगाया कि बजाज फाइनेंस ने दिसंबर, 2023 में 25.69 लाख का व्यवसायिक ऋण स्वीकृत किया था लेकिन विभिन्न कटौतियों के बाद केवल 24.93 लाख ही वितरित किए गए। याची ने लगभग 6.62 लाख की अदायगी भी की बावजूद इसके जुलाई 2025 में कंपनी ने लगभग 26.90 लाख की बकाया राशि दिखाते हुए नोटिस भेज दिया।
व्यवसाय में घाटा और स्टॉक नष्ट होने के कारण याची ने सितंबर, 2025 में एकमुश्त निपटान का अनुरोध किया, किंतु कंपनी ने कथित रूप से अनधिकृत एजेंटों को भेजकर धमकी और गाली-गलौज के जरिए जबरन वसूली शुरू कर दी।
याचिकाकर्ता ने 6 सितंबर, 2025 को विस्तृत शिकायत दर्ज कराई, जिसमें कहा गया कि कंपनी की कार्यप्रणाली भारतीय रिज़र्व बैंक के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन करती है। हालांकि, पुलिस ने शिकायत पर कोई कार्रवाई नहीं की। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि यह निष्क्रियता संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के तहत प्रदत्त मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।
राज्य की ओर से दलील दी गई कि याची के पास वैकल्पिक उपाय उपलब्ध हैं। हालांकि अदालत ने कहा कि वैकल्पिक उपाय की उपलब्धता अनुच्छेद 226 के तहत याचिका दाखिल करने में बाधा नहीं है, विशेषकर तब जब मौलिक अधिकार प्रभावित हो रहे हों।
अदालत ने ललिता कुमारी बनाम उत्तर प्रदेश सरकार (2014) मामले का हवाला देते हुए दोहराया कि यदि संज्ञेय अपराध बनता है तो FIR दर्ज करना अनिवार्य है।
न्यायालय ने कहा,
“वर्तमान मामले में पुलिस हाथ पर हाथ धरे बैठी है और FIR दर्ज करने या न करने का कोई निर्णय नहीं लिया गया। इस कारण याची आगे कोई कदम नहीं उठा पा रहा।”
निष्कर्ष
हाईकोर्ट ने याचिका का निस्तारण करते हुए संबंधित पुलिस अधिकारियों को आदेश दिया कि वे 90 दिनों के भीतर प्रारंभिक जांच पूरी कर तय करें कि मामला संज्ञेय अपराध का है या नहीं।

