मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने शिक्षक के बारे में अपमानजनक पोस्ट डालने पर स्टूडेंट के निष्कासन को सही ठहराया
Amir Ahmad
10 Oct 2025 12:52 PM IST

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने गुरुवार (9 अक्टूबर) को स्कूल स्टूडेंट को निष्कासित करने के स्कूल के फ़ैसले को चुनौती देने वाली उसके पिता की याचिका खारिज की। यह कार्रवाई स्टूडेंट द्वारा शिक्षक के बारे में अपशब्दों और अपमानजनक सामग्री वाला मीम बनाकर उसे इंस्टाग्राम पर पोस्ट करने के कारण की गई।
जस्टिस प्रणय वर्मा की पीठ ने स्कूल की कार्रवाई को न्यायसंगत मानते हुए पाया कि स्टूडेंट का आचरण घोर अनुशासनहीनता का था।
कोर्ट की सख्त टिप्पणी: 'प्रतिशोधी, अश्लील और विद्रोही रवैया
कोर्ट ने रिकॉर्ड में मौजूद सामग्री का अवलोकन करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता के बेटे का आचरण अत्यधिक अनुशासनहीनता दर्शाता है। उसने अपने ही एक शिक्षक के ख़िलाफ़ धार्मिक आधार पर मीम बनाया और उनकी तस्वीर के साथ आपत्तिजनक कैप्शन पोस्ट किया, जो उनके धार्मिक भावनाओं और संवेगों को ठेस पहुंचाता है। न्यायालय ने सामग्री की प्रकृति पर कड़ा रुख अपनाते हुए कहा कि पोस्ट की टोन और सामग्री प्रतिशोधी, अश्लील और विद्रोही रवैये को दर्शाती है।
कोर्ट ने यह भी पाया कि यह कोई अकेली घटना नहीं थी बल्कि मीमों और पोस्टों की एक शृंखला थी, जिससे यह स्पष्ट होता है कि यह व्यवहार का एक पैटर्न था। सामग्री में स्कूल के ख़िलाफ़ भी अपशब्दों का इस्तेमाल किया गया और चैट में कुछ फीमेल स्टूडेंट्स भी शामिल थीं, जिनके बारे में बदनामी फैलाने के सुझाव दिए गए।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि उपलब्ध सामग्री से यह नहीं कहा जा सकता कि याचिकाकर्ता के बेटे के कार्य किसी गुमराह बच्चे के हैं। इसके विपरीत, वह अपने कृत्यों की गंभीरता को समझने के लिए पर्याप्त मानसिक विकास दिखाता है। इसी आधार पर न्यायालय ने कहा कि स्टूडेंट द्वारा मांगी गई माफ़ी उसके बचाव में नहीं आ सकती, क्योंकि माफ़ी भी बिना शर्त नहीं थी। कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि स्टूडेंट की घोर अनुशासनहीनता को देखते हुए स्कूल द्वारा की गई कार्रवाई को अवैध या मनमाना नहीं कहा जा सकता।
पिता ने निष्कासन के ख़िलाफ़ MP बाल अधिकार संरक्षण आयोग का भी दरवाज़ा खटखटाया, जिसने स्कूल को स्टूडेंट का निष्कासन न करने का निर्देश दिया। हालांकि कोर्ट ने इस हस्तक्षेप को अस्वीकार कर दिया। मनीषा शर्मा बनाम कर्नाटक राज्य आयोग (2023) मामले पर भरोसा करते हुए कोर्ट ने दोहराया कि राज्य आयोग केवल एक सलाहकार निकाय है और दो विरोधी पक्षों के बीच विवादों का निर्णयन करने का अधिकार उसके पास नहीं है। इसलिए स्कूल आयोग के आदेश को मानने के लिए बाध्य नहीं था।
कोर्ट ने यह भी नोट किया कि स्कूल ने पहले जारी किए गए खराब चरित्र वाले ट्रांसफर प्रमाणपत्र को हटाकर एक नया अच्छा चरित्र प्रमाणपत्र जारी किया।
अंत में हाईकोर्ट ने स्कूल के कक्षा 10 में स्टूडेंट का एडमिशन जारी न रखने के फ़ैसले में कोई अवैधता नहीं पाई और पिता की याचिका को खारिज कर दिया।

