मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने जिला कोर्ट क्लर्क के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्रवाई को सही ठहराया, जानकारी देने में देरी पर हुई थी कार्यवाही

Amir Ahmad

21 Jun 2025 11:39 AM IST

  • मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने जिला कोर्ट क्लर्क के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्रवाई को सही ठहराया, जानकारी देने में देरी पर हुई थी कार्यवाही

    मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने गुरुवार (19 जून) को न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी की अदालत में कार्यरत एग्यीक्यूटेंट क्लर्क के खिलाफ की गई अनुशासनात्मक कार्रवाई बरकरार रखी। यह कार्रवाई हाईकोर्ट द्वारा मांगी गई महत्वपूर्ण जानकारी को समय पर न भेजने के कारण की गई थी।

    मामला जून 2016 का है, जब याचिकाकर्ता को महिलाओं, बच्चों, दिव्यांगजनों और अन्य संवेदनशील वर्गों से संबंधित अपराधों के मामलों का त्रैमासिक विवरण (1 अप्रैल से 30 जून 2016 तक) हाईकोर्ट को भेजना था। याचिकाकर्ता ने 2 जुलाई 2016 को जानकारी भेज दी थी लेकिन 5 जुलाई को उन्हें पता चला कि जानकारी विशेष प्रारूप (फॉर्मेट-बी) में मांगी गई, जिसका उन्होंने उपयोग नहीं किया। इसके बाद उन्होंने सहयोगियों से परामर्श कर न्यायिक अधिकारी से स्वीकृति ली और 6 जुलाई को संशोधित जानकारी ईमेल, व्हाट्सएप और व्यक्तिगत रूप से प्रस्तुत की।

    इस देरी के कारण याचिकाकर्ता को निलंबित कर दिया गया, क्योंकि यह जानकारी चीफ जस्टिस की अध्यक्षता में होने वाले सम्मेलन में प्रस्तुत की जानी थी। बाद में विभागीय जांच की गई, जिसमें उन्हें निर्धारित समय पर जानकारी न देने के लिए दोषी पाया गया।

    जांच अधिकारी की रिपोर्ट के आधार पर अनुशासनात्मक प्राधिकरण ने दो वेतनवृद्धियों को रोके जाने की सजा सुनाई जिसे अपील प्राधिकरण ने बाद में संशोधित कर केवल वेतनवृद्धियों को गैर-संचयी रूप से रोकने में परिवर्तित कर दिया।

    याचिकाकर्ता एडवोकेट साकेत अग्रवाल के माध्यम से हाईकोर्ट पहुंचे और इस निर्णय को चुनौती दी। उन्होंने तर्क दिया कि यह देरी केवल लापरवाही थी न कि कोई अनुशासनहीनता। साथ ही यह मध्यप्रदेश सिविल सेवा (वर्गीकरण, नियंत्रण एवं अपील) नियम 1966 के अंतर्गत दंडनीय नहीं है।

    एक्टिंग चीफ जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस विनय साराफ की खंडपीठ ने इन दलीलों को खारिज कर दिया और कहा कि जांच अधिकारी द्वारा प्रस्तुत निष्कर्ष साक्ष्यों के आधार पर दिए गए और इनमें कोई त्रुटि नहीं थी।

    खंडपीठ ने यह भी कहा कि जिला जज ऑफिस कार्यालय द्वारा बार-बार निर्देश देने के बावजूद याचिकाकर्ता ने निर्धारित प्रारूप में समय पर जानकारी नहीं दी, जिसे केवल लापरवाही नहीं माना जा सकता।

    प्रति-पक्ष की ओर से एडवोकेट शोभितादित्य ने दलील दी कि याचिकाकर्ता को अपनी बात रखने और गवाहों से क्रॉस एक्जामिनेशन करने का पूरा अवसर दिया गया और पूरी जांच प्रकिया प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के अनुसार की गई।

    खंडपीठ ने डॉ. योगीराज शर्मा बनाम मध्यप्रदेश राज्य, [2016 (1) एमपीएलजे 537] के निर्णय का हवाला देते हुए कहा कि जब जांच नियमों के अनुसार उचित रूप से की गई हो और दोषी कर्मचारी को कोई पूर्वाग्रह न हुआ हो तो ऐसे मामलों में न्यायिक समीक्षा की शक्ति का प्रयोग नहीं किया जा सकता।

    खंडपीठ ने याचिका खारिज कर दी।

    केस टाइटल: नंद किशोर चौधरी बनाम मध्यप्रदेश हाईकोर्ट

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