म्यूटेशन | तहसीलदार किसी व्यक्ति को यह घोषणा करवाने के लिए सिविल कोर्ट में नहीं भेज सकता कि वह मृतक मालिक का कानूनी प्रतिनिधि है: एमपी हाईकोर्ट

Amir Ahmad

10 Feb 2025 6:52 AM

  • म्यूटेशन | तहसीलदार किसी व्यक्ति को यह घोषणा करवाने के लिए सिविल कोर्ट में नहीं भेज सकता कि वह मृतक मालिक का कानूनी प्रतिनिधि है: एमपी हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर बेंच ने माना कि तहसीलदार किसी व्यक्ति को यह घोषणा करवाने के लिए सिविल कोर्ट में नहीं भेज सकता कि वह मृतक संपत्ति मालिक का कानूनी प्रतिनिधि है, जिससे उसका नाम म्यूटेशन हो सके।

    जस्टिस प्रणय वर्मा की एकल पीठ ने कहा,

    "आवेदक को सिविल कोर्ट से यह घोषणा करवाने की कोई आवश्यकता नहीं है कि वह मृतक का कानूनी प्रतिनिधि है। तहसीलदार पक्षों के बीच वंशावली पर विचार कर सकता है। उसका निर्धारण कर सकता है। वास्तव में ऐसा करना उसका कर्तव्य है। वह याचिकाकर्ता को घोषणा करवाने के लिए सिविल कोर्ट में नहीं भेज सकता, जैसा कि विवादित आदेश में निर्देशित किया गया।"

    वर्तमान याचिका में तहसीलदार तहसील डॉ. अंबेडकर नगर (महू), जिला इंदौर द्वारा पारित आदेश को चुनौती दी गई, जिसके तहत याचिकाकर्ता का आवेदन मप्र की भूमि राजस्व संहिता, 1959 की धारा 109, 110 के तहत खारिज कर दिया गया।

    याचिकाकर्ता ने विवादित भूमि पर दाखिल खारिज के लिए तहसीलदार के समक्ष आवेदन दायर किया, जिसमें कहा गया कि यह भूमि उसके और उसके भाई राजीव के पास थी, जिनकी मृत्यु हो चुकी है। अब वे ही भूमि पर दाखिल खारिज के हकदार हैं। उनके पिता रमाकांत शुक्ला और उनकी मां की पहले ही मृत्यु हो चुकी है। यह भी कहा गया कि उनके मृतक भाई राजीव का कोई अन्य कानूनी प्रतिनिधि नहीं है, क्योंकि वह पहले ही अपनी पत्नी को तलाक दे चुका है।

    आवेदन पर तहसीलदार द्वारा एक प्रकाशन किया गया लेकिन कोई आपत्ति प्राप्त नहीं हुई। हलका पटवारी (भूमि अभिलेखों का रखरखाव करने वाला अधिकारी) से रिपोर्ट भी मांगी गई, जिसमें यह स्पष्ट किया गया कि मृतक राजीव या किसी अन्य व्यक्ति का कोई अन्य कानूनी प्रतिनिधि नहीं है, जो विवादित भूमि पर दाखिल खारिज का दावा कर सकता है।

    संहिता, 1959 की धारा 109, 110 का हवाला देते हुए न्यायालय ने कहा कि यह तहसीलदार का कर्तव्य है कि वह स्वयं यह पता लगाए कि याचिकाकर्ता नामांतरण का हकदार है या नहीं और यह उसकी क्षमता में है कि वह याचिकाकर्ता के नामांतरण के हकदार होने पर विचार करे। यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु के आधार पर नामांतरण की मांग की जाती है तो क्या याचिकाकर्ता उसका कानूनी प्रतिनिधि है।

    न्यायालय ने कहा कि आवेदक को सिविल न्यायालय से यह घोषणा लेने की आवश्यकता नहीं है कि वह मृतक का कानूनी प्रतिनिधि है। यह तहसीलदार का कर्तव्य है कि वह पक्षों के बीच वंशावली पर विचार करे और उसका निर्धारण करे।

    इसलिए तहसीलदार द्वारा पारित विवादित आदेश रद्द किया जाता है।

    न्यायालय ने कहा,

    "तहसीलदार को निर्देश दिया जाता है कि वह रिकॉर्ड पर उपलब्ध सामग्री को ध्यान में रखते हुए उपरोक्त टिप्पणियों और संहिता, 1959 की धारा 109, 110 के प्रावधानों के मद्देनजर याचिकाकर्ता के आवेदन पर गुण-दोष के आधार पर निर्णय लें।"

    केस टाइटल: राहुल शुक्ला बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य, रिट याचिका संख्या 1170/2025

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