शो में 'कोर्ट सीन' के विवादित चित्रण मामले में कॉमेडियन कपिल शर्मा को मध्य प्रदेश हाइकोर्ट से राहत
Amir Ahmad
23 March 2024 3:09 PM IST
मध्य प्रदेश हाइकोर्ट ने कहा कि पुलिस का इस तरह के आरोपों से कोई लेना-देना नहीं है, जिसने कॉमेडियन कपिल शर्मा के खिलाफ दायर आपराधिक शिकायत में पुलिस जांच अस्वीकार करने वाले निचली अदालत के आदेशों में हस्तक्षेप करने से इनकार किया।
2021 में सुरेश धाकड़ नाम के वकील ने 'द कपिल शर्मा शो' के एंकर कपिल शर्मा और सोनी टेलीविज़न चैनल के सीईओ एन.पी. सिंह के खिलाफ सीआरपीसी की धारा 190-200 के तहत शिकायत दर्ज कराई, जिस पर विवादास्पद कार्यक्रम प्रसारित किया गया।
शिवपुरी जे.एम.एफ.सी. के दिनांक 19-04-2023 के आदेश और शिवपुरी के 5वें एडिशनल सेशन जज द्वारा दिनांक 06-12- 2023 को आपराधिक पुनर्विचार खारिज करने के खिलाफ धाकड़ द्वारा दायर आवेदन पर विचार करते हुए जस्टिस आनंद पाठक की एकल पीठ ने निम्नलिखित टिप्पणी की,
“ऐसा प्रतीत होता है कि याचिकाकर्ता टेलीविजन शो में अदालत को जिस तरह से दर्शाया गया, उससे व्यथित है। इसलिए मुख्य स्रोत कार्यक्रम की रिकॉर्डिंग है। पुलिस की भूमिका बहुत कम है और यदि न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी शिवपुरी ने सीआरपीसी की धारा 156(3) के तहत आवेदन पर विचार करने से इनकार किया है तो इससे कोई अवैधता विकृति या अनुचितता नहीं हुई।”
ग्वालियर में बैठी पीठ ने महसूस किया कि शिकायतकर्ता को अपनी शिकायत को सही ठहराने के लिए तथ्यों का होना होगा और आवश्यक साक्ष्य एकत्र करना होगा। ट्रायल कोर्ट के समक्ष संतोषजनक ढंग से गवाही देनी होगी।
सीआरपीसी की धारा 156(3) के तहत दायर आवेदन के बारे में अदालत ने कहा,
पुलिस के कंधे का इस्तेमाल लाभ उठाने के लिए नहीं किया जा सकता है, अगर उद्देश्य उसी तरह का हो।"
कथित तौर पर 'द कपिल शर्मा शो' में कॉमेडियन ने कोर्ट रूम सेट के माध्यम से अदालतों की गरिमा को कम करने का प्रयास किया। शिकायतकर्ता-वकील के अनुसार 21 अप्रैल 2021 को शर्मा ने शराब की बोतल हाथ में लेकर अदालती कार्यवाही का चित्रण किया और उसका सेवन दिखाया। वकील ने शर्मा पर कोर्ट रूम के सेट पर मौखिक और अपमानजनक टिप्पणी करने का भी आरोप लगाया, जिससे अदालतों की छवि खराब हो सकती है।
एडिशनल सेशन जज के समक्ष पहले दायर आपराधिक पुनर्विचार में अदालत ने यह रुख अपनाया कि शिकायतकर्ता को स्वयं साक्ष्य एकत्र करना चाहिए और दाखिल करना चाहिए, क्योंकि शिकायत टेलीविजन पर प्रसारित एक कार्यक्रम पर आधारित है।
शिकायतकर्ता/याचिकाकर्ता ने हाइकोर्ट से अनुरोध किया कि वह पुलिस जांच के लिए उपयुक्त मामला बताते हुए निचली अदालत के आदेशों को रद्द करे।
राज्य ने, बदले में दलील दी कि याचिकाकर्ता को ट्रायल कोर्ट के समक्ष स्वयं साक्ष्य प्रस्तुत करना चाहिए।
अदालत ने आवेदन को खारिज करते हुए कहा,
दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद जस्टिस पाठक ने इस बात पर जोर दिया कि धाकड़ ने पहले ही उस कार्यक्रम की रिकॉर्डिंग सुरक्षित कर ली, जो विवाद का विषय है साथ ही रिकॉर्डर और सीडी जैसे इलेक्ट्रॉनिक उपकरण भी। इस मोड़ पर यह स्पष्ट नहीं है कि स्टेशन हाउस अधिकारी, पुलिस स्टेशन या जांच अधिकारी और क्या साक्ष्य एकत्र कर सकते हैं।
केस टाइटल- सुरेश धाकड़ बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य।