बार-बार स्थगन मांगकर उसे परेशान किया: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने अभियुक्त के अभियोक्ता से क्रॉस एग्जामिनेशन करने के अधिकार को प्रतिबंधित करने वाला आदेश बरकरार रखा
Amir Ahmad
11 Nov 2024 7:38 PM IST
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की जबलपुर पीठ ने अभियुक्त के क्रॉस एग्जामिनेशन करने के अधिकार को प्रतिबंधित करने के ट्रायल कोर्ट का फैसला बरकरार रखा, जिसमें अभियोक्ता से जिरह करने के साथ ही यह भी कहा कि व्यक्ति ने महिला से जिरह के लिए लगातार स्थगन मांगकर उसे "परेशान करने का हर संभव प्रयास किया।
ऐसा करते हुए न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि स्थगन केवल स्थगन के लिए नहीं दिया जाना चाहिए। न्यायालय को उन कठिनाइयों को ध्यान में रखना चाहिए जिनका सामना गवाहों को करना पड़ सकता है।
जस्टिस जी.एस. अहलूवालिया की अध्यक्षता वाली एकल न्यायाधीश पीठ ने अपने आदेश में कहा,
"यह सच है कि अभियोक्ता से क्रॉस एग्जामिनेशन न किए जाने के कारण आवेदक को अपूरणीय क्षति हो सकती है लेकिन इस कठिन परिस्थिति के लिए केवल आवेदक ही जिम्मेदार है, जो अभियोक्ता से जिरह के लिए लगातार स्थगन मांगकर उसे परेशान करने का हर संभव प्रयास करने में शामिल था।"
न्यायालय ने कहा कि बचाव पक्ष द्वारा इस तरह की देरी करने की रणनीति को मंजूरी नहीं दी जा सकती और केवल वकील का बदलना स्थगन का आधार नहीं हो सकता, क्योंकि आवेदक को अगली तारीख की जानकारी होगी।
न्यायालय ने कहा,
“इस प्रकार, यह स्पष्ट है कि आवेदक का एकमात्र इरादा लगातार स्थगन की मांग करके अभियोक्ता को किसी तरह से परेशान करना था। आवेदक द्वारा अपनाई जा रही इस तरह की देरी करने की रणनीति को मंजूरी नहीं दी जा सकती। इसके अलावा, वकील का बदलना स्थगन का आधार नहीं हो सकता क्योंकि आवेदक को ट्रायल कोर्ट के समक्ष अगली तारीख के बारे में पहले से ही पता था। इसलिए उसे उससे बहुत पहले ही व्यवस्था कर लेनी चाहिए थी। यदि आवेदक ने स्थगन की मांग करने के लिए वकील को निर्देश न देने और नया वकील नियुक्त करने का निर्णय लिया था तो आवेदक के दुर्भावनापूर्ण इरादे को नरम रुख अपनाकर बरकरार नहीं रखा जा सकता।”
इस मामले में हाईकोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष की जिरह के लिए बचाव पक्ष द्वारा कई स्थगन लिए गए थे।
अभियोक्ता की मुख्य परीक्षा 9 फरवरी को हुई थी बयान पत्र से पता चला कि बचाव पक्ष/आवेदक के वकील ने तैयारी की कमी के आधार पर जिरह को स्थगित करने की प्रार्थना की थी।
ट्रायल कोर्ट ने जिरह को स्थगित कर दिया था। इसे 23 फरवरी तक के लिए स्थगित कर दिया गया, लेकिन आवेदक ने यह दिखाने के लिए आदेश पत्र दाखिल नहीं किया कि इस तिथि को क्या हुआ। इसके बाद 6 मार्च को आवेदक का अभियोक्ता से क्रॉस एग्जामिनेशन करने का अधिकार समाप्त हो गया।
कोर्ट ने कहा कि आदेश से यह स्पष्ट है कि अभियोक्ता उस समय मौजूद थी, जब आवेदक के वकील ने जिरह के लिए समय मांगा था। जब ट्रायल कोर्ट ने कहा कि आवेदक को कुछ लागत का भुगतान करना होगा, तो "आवेदक के वकील ने कोई भी लागत का भुगतान करने से इनकार कर दिया" इन परिस्थितियों में क्रॉस एग्जामिनेशन करने का अधिकार समाप्त हो गया। इस आदेश के खिलाफ आवेदक ने हाईकोर्ट रुख किया।
हाईकोर्ट के समक्ष आवेदक ने तर्क दिया कि यदि अभियोक्ता से जिरह करने के अधिकार से वंचित किया जाता है तो उसे अपूरणीय क्षति होगी।
विभिन्न निर्णयों का हवाला देते हुए हाईकोर्ट ने कहा,
"यह स्पष्ट है कि स्थगन केवल स्थगन के लिए नहीं दिया जाना चाहिए। न्यायालय को उन कठिनाइयों को ध्यान में रखना चाहिए, जिनका सामना गवाहों को करना पड़ सकता है। 9.2.2024 को जब अभियोक्ता उपस्थित थी। उसकी मुख्य परीक्षा रिकॉर्ड की गई तो आवेदक ने इस आधार पर जिरह को स्थगित करने की प्रार्थना की थी कि उसका वकील ठीक से तैयार नहीं था। हालांकि मामले की सुनवाई 23.2.2024 के लिए तय की गई थी, लेकिन 23.2.2024 का आदेश पत्र रिकॉर्ड पर नहीं रखा गया। इसे क्यों नहीं रखा गया, यह केवल आवेदक को ही पता है। चाहे जो भी हो। इसके बाद जब 6.3.2024 को मामले की सुनवाई हुई तो अभियोक्ता उपस्थित थी। अब आवेदक ने कुछ नए वकील को नियुक्त किया, जिन्होंने अभियोक्ता से जिरह करने के लिए कुछ समय मांगा और अभियोक्ता को लागत का भुगतान करने से भी इनकार कर दिया।"
यह पाते हुए कि निचली अदालत ने अभियोक्ता से जिरह करने के आवेदक के अधिकार को बंद करके कोई गलती नहीं की है, हाईकोर्ट ने आवेदक की याचिका खारिज कर दी।
केस का शीर्षक: तुलसी राम लोधी बनाम मध्य प्रदेश राज्य