माता-पिता को भरण-पोषण देने का सवाल इस बात पर निर्भर नहीं करता कि बच्चों को कितनी संपत्ति दी गई: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

Amir Ahmad

10 Sep 2024 9:20 AM GMT

  • माता-पिता को भरण-पोषण देने का सवाल इस बात पर निर्भर नहीं करता कि बच्चों को कितनी संपत्ति दी गई: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने माना कि बच्चे द्वारा अपने माता-पिता को भरण-पोषण देने का सवाल इस बात पर निर्भर नहीं करता कि माता-पिता ने बच्चे को कितनी संपत्ति दी। यह बच्चों का कर्तव्य है कि वे अपने माता-पिता का भरण-पोषण करें।

    जस्टिस जी.एस. अहलूवालिया की पीठ माता-पिता और सीनियर सिटीजन के भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम 2007 के तहत भरण-पोषण आदेश को चुनौती देने वाली रिट याचिका पर विचार कर रही थी।

    याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि वह अपनी मां को भरण-पोषण देने के लिए उत्तरदायी नहीं है, क्योंकि उसकी मां ने उसे जमीन का एक भी टुकड़ा नहीं दिया।

    मामले पर फैसला सुनाते हुए जस्टिस अहलूवालिया ने कहा कि बच्चों का कर्तव्य है कि वे अपने माता-पिता का भरण-पोषण करें। माता-पिता को भरण-पोषण प्रदान करना इस बात पर निर्भर नहीं करता कि उन्हें कितनी संपत्ति दी गई।

    उन्होंने कहा,

    “माता-पिता को भरण-पोषण के भुगतान का प्रश्न इस बात पर निर्भर नहीं करता कि बच्चों को कितनी संपत्ति दी गई। बच्चों का कर्तव्य है कि वे अपने माता-पिता का भरण-पोषण करें। यदि याचिकाकर्ता भूमि के असमान वितरण से व्यथित है तो उसके पास सिविल मुकदमा दायर करने का उपाय है लेकिन वह अपनी मां को भरण-पोषण का भुगतान करने के अपने दायित्व से भाग नहीं सकता।”

    न्यायालय ने जीवन-यापन की बढ़ती लागत और मुद्रास्फीति पर विचार करते हुए 8,000 रुपये मासिक भरण-पोषण को उचित और उचित माना।

    मूल्य सूचकांक के साथ-साथ दैनिक जरूरतों की वस्तुओं की कीमत पर विचार करते हुए यह न्यायालय इस बात पर विचार करता है कि उसके सभी चार बेटों द्वारा बराबर हिस्से में दिया जाने वाला 8,000 रुपये का मासिक भरण-पोषण अधिक नहीं कहा जा सकता।

    इस प्रकार हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता और उसके भाइयों को अपनी मां के भरण-पोषण में योगदान देने के लिए बाध्य करने वाले पिछले आदेशों की पुष्टि करते हुए याचिका खारिज की।

    मामले की पृष्ठभूमि

    वर्तमान मामले में याचिकाकर्ता ने उस आदेश के खिलाफ राहत मांगी, जिसमें उसे और उसके भाइयों को अपनी मां हक्की बाई को 2,000 रुपये प्रतिमाह देने का आदेश दिया गया था।

    याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि उसकी मां ने उसे अपनी जमीन का कोई हिस्सा नहीं दिया, इसलिए उसे भरण-पोषण के लिए उत्तरदायी नहीं होना चाहिए।

    उसने अपनी मां का भरण-पोषण करने में अपनी वित्तीय अक्षमता का हवाला दिया। हालांकि न्यायालय ने इस तर्क को खारिज कर दिया और दोहराया कि भरण-पोषण प्रदान करने का कर्तव्य संपत्ति के वितरण पर निर्भर नहीं करता।

    हक्की बाई ने याचिकाकर्ता और उसके अन्य बेटों के खिलाफ अधिनियम 2007 की धारा 16 के तहत आवेदन दायर किया, जिसमें कहा गया कि उसने अलग-अलग सेल डीड निष्पादित करके अपने बेटों को जमीन वितरित की थी। इस प्रकार उसके बेटों ने उसका भरण-पोषण करने का वादा किया था।

    यह कहा गया कि बाद में वे इसके लिए कोई भुगतान नहीं कर रहे थे।

    पिछले फैसले में SDO ट्रिब्यूनल ने शुरू में सभी चार बेटों को कुल 1,000 रुपये का भुगतान करने का आदेश दिया था। 12,000 प्रति माह 3,000 रुपये प्रत्येक के हिसाब से बराबर-बराबर बांटा गया। हालांकि इसे घटाकर 8,000 रुपये कर दिया गया, जिसमें प्रत्येक बेटे को 2,000 रुपये देने थे।

    इस कटौती के बावजूद याचिकाकर्ता ने अपनी मां द्वारा असमान भूमि वितरण के कारण अन्याय का दावा करते हुए आदेश को चुनौती देना जारी रखा।

    केस टाइटल- गोविंद लोधी बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य

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