उच्च अधिकारी कभी वेतन, पदोन्नति के मुद्दों पर बात नहीं करते; तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी क्यों पीड़ित हैं? मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने कैबिनेट से हस्तक्षेप करने को कहा

Amir Ahmad

13 March 2025 10:49 AM

  • उच्च अधिकारी कभी वेतन, पदोन्नति के मुद्दों पर बात नहीं करते; तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी क्यों पीड़ित हैं? मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने कैबिनेट से हस्तक्षेप करने को कहा

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर पीठ ने राज्य मंत्रिमंडल से उच्च अधिकारियों के गलत और अड़ियल रवैये के कारण तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों के उत्पीड़न की जांच करने को कहा।

    जस्टिस विवेक रूसिया और जस्टिस गजेंद्र सिंह की खंडपीठ ने कहा,

    “हमारे सामने ऐसे कई मामले आए हैं, जिनमें मध्य प्रदेश राज्य के विभिन्न विभागों के चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी सीनियर अधिकारियों द्वारा लिए गए निर्णय से प्रभावित हुए हैं। अधिकांश मामले वेतनमान उन्नयन वापस लेने, सेवानिवृत्ति के समय वसूली और शेष कर्मचारियों को समान लाभ न देने और पदोन्नति में देरी आदि से संबंधित हैं। हमारे सामने ऐसा कोई मामला नहीं आया है, जिसमें प्रथम और द्वितीय श्रेणी के अधिकारी इस तरह के मुकदमे में इस हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटा रहे हों। इसलिए मंत्रिपरिषद को इस बात पर विचार करना चाहिए कि तृतीय एवं चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों को संबंधित विभाग के उच्च अधिकारियों के गलत एवं अड़ियल रवैये का शिकार क्यों होना पड़ रहा है, जिससे तृतीय एवं चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों को परेशान किए जाने एवं न्यायालय का बहुमूल्य समय बर्बाद होने से बचाया जा सके।”

    न्यायालय ने वर्ष 2018 में राज्य द्वारा तैयार की गई मुकदमा नीति का भी हवाला दिया, जिसमें छोटे-मोटे विवादों के निपटारे के लिए राज्य एवं जिला स्तरीय समिति, विभागवार समिति के गठन का प्रावधान है।

    न्यायालय ने कहा,

    "ऐसा प्रतीत होता है कि उक्त नीति फाइलों में पड़ी धूल फांक रही है। वर्तमान अपील अपीलार्थी/मध्यप्रदेश राज्य एवं अन्य द्वारा रिट याचिका क्रमांक 26705/2022 में पारित आदेश से व्यथित होकर दायर की गई, जिसके तहत सेवानिवृत्त चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी/प्रतिवादी से 94,056/- रुपए की राशि की वसूली निरस्त कर दी गई। अपील 711 दिन के विलंब के बाद दायर की गई। इसलिए विलंब की माफी के लिए आवेदन भी दायर किया गया।

    न्यायालय ने देरी को माफ करने से इनकार करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता/प्रतिवादी को कार्यकारी निर्देश के आलोक में उच्च वेतनमान का लाभ दिया जाना उचित था। चूंकि याचिकाकर्ता की पात्रता विवाद में नहीं थी, इसलिए न्यायालय ने कहा कि राज्य के पास अपील के माध्यम से विवादित आदेश को चुनौती देने का कोई आधार नहीं था।

    17 फरवरी को दिए गए अंतिम आदेश में न्यायालय ने सरकारी वकील को प्रभारी अधिकारी (IOC) को नोट-शीट के साथ बुलाने का निर्देश दिया था कि डिवीजन बेंच के समक्ष इस रिट अपील को दायर करने की अनुमति/राय/अनुमोदन किसने दिया।

    न्यायालय ने कहा,

    हम हैरान और आश्चर्यचकित हैं कि न तो एडवोकेट जनरल ऑफिस और न ही विधि विभाग ने इस रिट अपील को दायर करने के लिए कोई मंजूरी दी, इसके बावजूद कि चीफ इंजीनियर, पीएचई, भोपाल ने दिनांक 16.12.2024 के आदेश के तहत IOC को नियुक्त किया और उन्हें यह रिट अपील दायर करने का निर्देश दिया। इस बात के लिए कोई कारण नहीं बताए गए कि चीफ इंजीनियर ने यह मामला इस न्यायालय के समक्ष रिट अपील दायर करने के लिए उपयुक्त क्यों समझा। इस बात का कोई स्पष्टीकरण नहीं है कि इस रिट अपील को योग्यता के आधार पर कैसे स्वीकार किया जा सकता है, वह भी 711 दिनों की अस्पष्ट देरी के साथ। वर्तमान रिट अपील केवल जनता के पैसे की बर्बादी करके और इस न्यायालय का बहुमूल्य समय बर्बाद करने के लिए दायर की गई।”

    इसके अलावा लोक स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग के प्रमुख सचिव व्यक्तिगत रूप से न्यायालय के समक्ष उपस्थित थे। जब उनसे पूछा गया कि चीफ इंजीनियर ने वर्तमान रिट अपील दायर करने की राय क्यों दी तो उन्होंने प्रस्तुत किया कि मामले को अतिरिक्त पदों के सृजन के लिए मंत्रिमंडल के समक्ष अनुमोदन के लिए रखा गया और रिट याचिकाकर्ता को केवल उन्नयन का लाभ दिया जा सकता है।

    न्यायालय ने कहा,

    “यह स्पष्टीकरण हमारे लिए और भी चौंकाने वाला है कि रुपये की वापसी के संबंध में। चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों को 94,056/- रुपये का मुआवजा देने के मामले में सरकार इस मामले को मंत्रिमंडल के समक्ष रखने जा रही है, खासकर तब जब इस न्यायालय द्वारा वर्ष 2017-18 में इसी तरह के कर्मचारियों के संबंध में रिट याचिकाओं के साथ-साथ रिट अपीलों में भी विवादित कार्रवाई को पहले ही खारिज कर दिया गया था।”

    अपील को लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग, भोपाल के मुख्य अभियंता पर 20,000 रुपये के जुर्माने के साथ खारिज कर दिया गया जिन्होंने इस मामले में शामिल तथ्यों और कानून की जांच किए बिना रिट अपील दायर करने की राय दी थी।

    केस टाइटल: लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी के माध्यम से मध्य प्रदेश राज्य और अन्य बनाम बलवंत सिंह मंडलोई, रिट अपील संख्या 404 वर्ष 2025

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