सरकारी कर्मचारी की पेंशन या रिटायरमेंट लाभ केवल तभी रोके जा सकते हैं, जब रिटायरमेंट से पहले पुलिस रिपोर्ट पर संज्ञान लिया गया हो: एमपी हाईकोर्ट

Amir Ahmad

5 Oct 2024 1:20 PM IST

  • सरकारी कर्मचारी की पेंशन या रिटायरमेंट लाभ केवल तभी रोके जा सकते हैं, जब रिटायरमेंट से पहले पुलिस रिपोर्ट पर संज्ञान लिया गया हो: एमपी हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश के हाईकोर्ट ने माना कि रिटायरमेंट की तारीख से पहले सरकारी कर्मचारी के खिलाफ केवल शिकायत या रिपोर्ट के आधार पर उसे पेंशन या अन्य रिटायरमेंट बकाया के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता। रिटायरमेंट की तारीख पर पुलिस अधिकारी की शिकायत या रिपोर्ट का संज्ञान होना चाहिए।

    याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि पेंशन नियम 1976 के नियम 9 के तहत पूरी पेंशन और ग्रेच्युटी रोकना गैरकानूनी और मनमाना है। उन्होंने आगे तर्क दिया कि नियम 9 के उप-नियम 6(बी)(आई) के अनुसार, पेंशन नियम, 1976 के नियम 9 के उप-नियम (4) के साथ पढ़ा जाए तो ऐसे सरकारी कर्मचारी के मामले में जो अधिवर्षिता की आयु प्राप्त करने पर रिटायर हो गया और जिसके खिलाफ कोई विभागीय या न्यायिक कार्यवाही शुरू की गई या जहां उप-नियम (2) के तहत विभागीय कार्यवाही जारी है, अनंतिम पेंशन और मृत्यु-सह-सेवानिवृत्ति ग्रेच्युटी मंजूर की जाएगी। इसके अतिरिक्त, पेंशन नियम, 1976 के उप-नियम 6(बी)(आई) के तहत पेंशन केवल तभी रोकी जा सकती है जब न्यायिक कार्यवाही लंबित हो।

    दूसरी ओर, प्रतिवादी के वकील ने तर्क दिया कि पेंशन नियम, 1976 के नियम 9(6)(बी)(आई) के तहत न्यायिक कार्यवाही तब शुरू मानी जाएगी, जब शिकायत या पुलिस अधिकारी की रिपोर्ट संज्ञान लेने के लिए सक्षम प्राधिकारी को प्रस्तुत की गई हो।

    अदालत के समक्ष उठाया गया प्रश्न था,

    "क्या पूर्ण पेंशन और रिटायरमेंट बकाया रोका जा सकता है, यदि रिटायरमेंट की तारीख तक किसी आपराधिक मामले में पुलिस अधिकारी की शिकायत/रिपोर्ट पर कोई आरोप पत्र दायर नहीं किया जाता है। कोई संज्ञान नहीं लिया जाता या क्या मजिस्ट्रेट को शिकायत किए जाने या पुलिस अधिकारी की रिपोर्ट पर इसे रोका जा सकता है?"

    जस्टिस विजय कुमार शुक्ला ने कहा,

    "विधायिका का उद्देश्य पेंशन या रिटायरमेंट बकाया राशि को रोकना या वापस लेना है, जब किसी आपराधिक कार्यवाही में पुलिस अधिकारी की शिकायत या रिपोर्ट पर संज्ञान लिया जाता है तभी इसे संस्थित माना जाएगा।"

    उन्होंने आगे कनई लाल सूर बनाम परमनिधि साधुखान, एआईआर 1957 एससी 907 पर भरोसा किया, जिसमें कहा गया निर्माण का प्राथमिक नियम यह है कि विधायिका का उद्देश्य विधायिका द्वारा उपयोग किए जाने वाले शब्दों में ही पाया जाना चाहिए। यदि उपयोग किए गए शब्द निर्माण करने में सक्षम हैं, तभी न्यायालयों के लिए इस आधार पर कोई अन्य काल्पनिक निर्माण अपनाना खुला नहीं होगा कि ऐसा काल्पनिक निर्माण अधिनियम के कथित उद्देश्य और नीति के साथ अधिक सुसंगत है।

    CrPC की धारा 190 के तहत संज्ञान शब्द के अर्थ को स्पष्ट करते हुए अदालत ने कहा कि यह केवल तभी संभव है, जब कोई मजिस्ट्रेट शिकायत के तथ्यों और सामग्री पर विचार करते हुए अपना दिमाग लगाता है, जो प्रथम दृष्टया यह राय बनाता है कि मामला संज्ञान के लिए बनता है या नहीं।

    अदालत ने आगे कहा कि विधानमंडल ने पेंशन नियम 1976 के नियम 9(6)(बी)(आई) में जानबूझकर संज्ञान शब्द का इस्तेमाल किया है कि रिटायरमेंट सरकारी कर्मचारी की पेंशन या रिटायरमेंट बकाया राशि केवल तभी रोकी या वापस ली जा सकती है, जब आपराधिक कार्यवाही में पुलिस अधिकारी की शिकायत या रिपोर्ट पर संज्ञान लिया जाता है।

    यह माना गया कि रिटायरमेंट की तारीख से पहले सरकारी कर्मचारी के खिलाफ शिकायत या रिपोर्ट दर्ज करने मात्र से उसे पेंशन या अन्य रिटायरमेंट बकाया के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता। इसलिए वर्तमान याचिका को अनुमति दी गई।

    केस टाइटल: डॉ. राजेश कोठारी बनाम शहरी प्रशासन और आवास विभाग और अन्य

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