मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने दोहराया कि अदालत मुकदमे में प्रगति के बिना आरोपी को जेल में रहने के लिए मजबूर नहीं कर सकती

LiveLaw News Network

26 July 2024 8:42 AM GMT

  • मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने दोहराया कि अदालत मुकदमे में प्रगति के बिना आरोपी को जेल में रहने के लिए मजबूर नहीं कर सकती

    जस्टिस गुरपाल सिंह अहलूवालिया की अध्यक्षता में जबलपुर स्थित मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर विचार किया कि क्या किसी अभियुक्त को उसके मुकदमे में किसी प्रगति के बिना जेल में रखा जा सकता है। यह निर्णय सुमा भास्करन (सुमा अनिल) द्वारा यूनियन ऑफ इंडिया के विरुद्ध दायर विविध आपराधिक मामला संख्या 27895/2024 के जवाब में आया।

    सुमा भास्करन को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की विभिन्न धाराओं के तहत सीबीआई एसी-I, नई दिल्ली में पंजीकृत अपराध संख्या RC2162024A0004/2024 के संबंध में 19 मई, 2024 को गिरफ्तार किया गया था। आवेदक ने दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 439 के तहत जमानत मांगी थी।

    जस्टिस अहलूवालिया ने मुख्य प्रश्न को संबोधित किया कि क्या आरोपी को बिना किसी मुकदमे की प्रगति के जेल में रखा जा सकता है। उन्होंने जोर देकर कहा कि जमानत आवेदन के सापेक्ष आरोप पत्र दाखिल करने के समय की परवाह किए बिना, मामले का सार मुकदमे की प्रगति की कमी थी।

    जांच अधिकारी की अतिरिक्त दलील कि जमानत आवेदन अपने समय के कारण अमान्य था, को अदालत ने दृढ़ता से खारिज कर दिया। जस्टिस अहलूवालिया ने जोर देकर कहा कि प्राथमिक मुद्दा आवेदक की मुकदमे की प्रगति के बिना विस्तारित हिरासत थी।

    दोषी साबित होने तक निर्दोषता के अनुमान पर जोर देते हुए, अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष द्वारा मुकदमे की प्रगति को रोकने वाली कानूनी बाधाओं की स्वीकृति ने आवेदक की हिरासत का पुनर्मूल्यांकन करना आवश्यक बना दिया।

    जस्टिस अहलूवालिया ने अपर्णा भट और अन्य बनाम मध्य प्रदेश राज्य (आपराधिक अपील संख्या 329/2021, 18 मार्च, 2021) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया, जो पर्याप्त कानूनी कार्यवाही के बिना व्यक्तियों को अनुचित रूप से हिरासत में नहीं रखने के महत्व पर प्रकाश डालता है।

    जस्टिस अहलूवालिया ने कहा कि, "यह अभियोजन पक्ष का खुद का रुख है कि कानूनी बाधाओं के कारण फिलहाल मुकदमा आगे नहीं बढ़ सकता है। अगर ऐसा है, तो किसी को भी जेल में रहने की अनुमति नहीं दी जा सकती क्योंकि जब तक किसी व्यक्ति को दोषी नहीं ठहराया जाता है, तब तक उसे निर्दोष माना जाना चाहिए।"

    अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि मुकदमे की प्रगति के अभाव में आवेदक को हिरासत में रखना अन्यायपूर्ण होगा। इसलिए, जमानत के लिए आवेदन मंजूर किया गया। सुमा भास्करन को ट्रायल कोर्ट/कमिटल कोर्ट की संतुष्टि के लिए 1,00,000 रुपये के निजी मुचलके और उसी राशि के एक जमानतदार को प्रस्तुत करने पर जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया गया।

    कोर्ट ने निर्दिष्ट किया कि यह जमानत आदेश ट्रायल के अंत तक प्रभावी रहेगा जब तक कि बेल जंप न हो, जिस स्थिति में ट्रायल कोर्ट आवेदक को वापस हिरासत में ले सकता है।

    केस टाइटलः श्रीमती सुमा भास्करन (सुमा अनिल) बनाम यूनियन ऑफ इंडिया

    साइटेशन: एम.सीआर.सी.सं.27895 ऑफ 2024

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