निजी संस्थान अनुकंपा नियुक्ति दे सकते हैं, लेकिन वित्तीय बोझ राज्य पर नहीं पड़ेगा: एमपी हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया
Amir Ahmad
31 July 2024 3:31 PM IST
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट जबलपुर ने जस्टिस विवेक जैन की अध्यक्षता में एक मामले में अनुकंपा नियुक्ति से इनकार करने को चुनौती देने वाली याचिका खारिज की। याचिकाकर्ता कौशल कुमार कछवाहा ने जिला शिक्षा अधिकारी के आदेश के बाद अदालत से हस्तक्षेप करने की मांग की, जिसमें निजी संस्थान को अनुकंपा के आधार पर उन्हें नियुक्त करने की अनुमति दी गई थी, लेकिन राज्य द्वारा वित्तपोषित वेतन सहायता के बिना।
याचिकाकर्ता ने मध्य प्रदेश राज्य और अन्य के खिलाफ रिट याचिका नंबर 25164/2019 दायर की, जिसमें 23 सितंबर, 2017 के आदेश को चुनौती दी गई। जिला शिक्षा अधिकारी, प्रतिवादी नंबर 5 द्वारा आदेश में निजी संस्थान को सूचित किया गया कि वे याचिकाकर्ता को अनुकंपा के आधार पर नियुक्त करने के लिए स्वतंत्र हैं लेकिन उनके वेतन के लिए अनुदान सहायता राज्य द्वारा प्रदान नहीं की जाएगी।
याचिकाकर्ता के पिता जो निचले डिवीजन के शिक्षक थे, उनका निधन 30 मई, 2019 को निजी संस्थान में सेवा करते समय हुआ, जिसे राज्य से अनुदान सहायता प्राप्त हुई। 26 मार्च 1997 के कार्यकारी निर्देशों का हवाला देते हुए याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि वह अनुदान सहायता योजना के तहत अनुकंपा नियुक्ति के लिए विचार करने का हकदार था।
याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि राज्य के कार्यकारी निर्देशों में अनुदान सहायता संस्थानों में शिक्षकों के आश्रितों के लिए अनुकंपा नियुक्ति अनिवार्य है। उन्होंने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता के पिता को ऐसी सहायता के माध्यम से वेतन मिलता था। इस प्रकार, याचिकाकर्ता को राज्य समर्थित वेतन के साथ समान नियुक्ति के लिए विचार किए जाने का अधिकार था।
राज्य के वकील ने प्रतिवाद किया कि मध्य प्रदेश अशासकीय शिक्षण संस्थान (अनुदान का प्रदाय) अधिनियम 1978 में 2000 के संशोधन ने अनुदान सहायता योजना के तहत नई नियुक्तियों के प्रावधान को समाप्त कर दिया। संशोधन ने निजी संस्थानों को अपने कर्मचारियों के वेतन का स्वतंत्र रूप से वित्तपोषण करने के लिए बाध्य किया। इस विधायी परिवर्तन को सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखा, जिसने निर्दिष्ट किया कि केवल 1 अप्रैल 2000 से पहले से सेवा में रहे शिक्षकों को ही असंशोधित अधिनियम के तहत लाभ मिलना जारी रहेगा।
न्यायालय ने नोट किया कि दोनों पक्षों ने 1 अप्रैल, 2000 से संशोधित अधिनियम के लागू होने को स्वीकार किया, जिसने प्रभावी रूप से अनुदान सहायता पदों को मृतप्राय कैडर पदों में बदल दिया। मुख्य मुद्दा यह था कि क्या याचिकाकर्ता संशोधित अधिनियम के तहत राज्य द्वारा वित्तपोषित वेतन के साथ अनुकंपा नियुक्ति का दावा कर सकता है।
जस्टिस विवेक जैन ने सिविल अपील नंबर 6362/2004 में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय की समीक्षा की, जिसमें संशोधन को बरकरार रखा गया था तथा संशोधन तिथि से पहले सेवारत लोगों को अनुदान सहायता लाभ सीमित कर दिया गया। संशोधन के पश्चात नियुक्ति की मांग करने वाले याचिकाकर्ता इस संरक्षण से बाहर हो गए।
न्यायालय ने इसी प्रकार के मामले रायश्री रागसे बनाम मध्य प्रदेश राज्य एवं अन्य (डब्ल्यूपी संख्या 845/2017) पर विचार किया, जिसमें पुरानी नीतियों के तहत अनुकंपा नियुक्तियों का समर्थन करने वाले समन्वय पीठ के निर्णय को खंडपीठ द्वारा संशोधित किया गया।
संशोधन में स्पष्ट किया गया कि निजी संस्थान अनुकंपा के आधार पर आश्रितों की नियुक्ति कर सकते हैं, लेकिन वित्तीय भार संस्थान पर होगा, राज्य पर नहीं।
जस्टिस जैन ने निष्कर्ष निकाला कि संशोधित अधिनियम के तहत राज्य समर्थित अनुकंपा नियुक्ति के लिए याचिकाकर्ता के अनुरोध में योग्यता का अभाव था। न्यायालय ने पाया कि याचिकाकर्ता की स्थिति उन पूर्ववर्ती मामलों से मेल खाती है, जहां असंशोधित अधिनियम के तहत अनुकंपा नियुक्ति नीति को संशोधन के पश्चात लागू नहीं माना गया।
न्यायालय ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि निजी संस्थान याचिकाकर्ता की नियुक्ति कर सकता है लेकिन उसे राज्य द्वारा वित्तपोषित वेतन सहायता की अपेक्षा किए बिना ऐसा करना चाहिए। यह निर्णय रोजगार नीतियों और निजी शैक्षणिक संस्थानों की वित्तीय स्वायत्तता पर विधायी संशोधनों के महत्वपूर्ण प्रभाव को रेखांकित करता है।
केस टाइटल- कौशल कुमार कछवाहा बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य।