मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने बलात्कार के मामले में आरोपी को पुलिस के समर्थन पर हैरानी जताई
Amir Ahmad
19 Sept 2024 1:10 PM IST
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने बलात्कार के मामले पर हैरानी व्यक्त की, जहां जांच के दौरान पुलिस के आचरण ने आरोपी को समर्थन दिखाया।
जस्टिस जी.एस. अहलूवालिया की पीठ ने सामूहिक बलात्कार और अन्य आरोपों में शामिल एक आरोपी की अग्रिम जमानत याचिका पर विचार करते हुए कहा,
"यह वास्तव में चौंकाने वाला है कि एक तरफ लड़की के साथ बलात्कार न केवल जघन्य अपराध है बल्कि यह अभियोक्ता की भावनाओं और आत्मसम्मान पर भी हमला है। साथ ही पुलिस आरोपी व्यक्तियों का समर्थन करने के लिए पूरी तरह से तैयार है। समय आ गया है, जब पुलिस को लड़कियों की सुरक्षा के बारे में अपनी गंभीरता और चिंता दिखानी चाहिए।''
पुलिस द्वारा सुप्रीम कोर्ट के उस निर्णय पर ध्यान न देने के बारे में भी चिंता जताई, जिसमें कहा गया कि जांच के मामले में आरोपी की कोई भूमिका नहीं है।
''अदालत ने मामले की जांच में पुलिस के आचरण पर पहले ही विचार किया और पाया कि पुलिस द्वारा दाखिल की गई क्लोजर रिपोर्ट स्वीकार करने योग्य नहीं थी। साथ ही इस तथ्य के साथ कि आवेदक पुलिस के पास मौजूद होने के बावजूद भी पुलिस ने कोई बलपूर्वक कार्रवाई नहीं की। सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित कानून के विपरीत आवेदक के इशारे पर नाचती रही कि आरोपी के निर्देशानुसार जांच नहीं की जा सकती।''
आवेदक पर IPC की धारा 376-डी, 294, 506, 34 के तहत मामला दर्ज किया गया। उसके ब्लड के सैंपल एकत्र किए गए और DNA टेस्ट रिपोर्ट के अनुसार बहुत कम अस्पष्ट वाई-गुणसूत्र पाए गए।
इसके बाद पुलिस ने क्लोजर रिपोर्ट दाखिल की, जिसे ट्रायल कोर्ट ने खारिज कर दिया। इसलिए गिरफ्तारी से पहले जमानत के लिए वर्तमान आवेदन।
राज्य ने जमानत का विरोध करते हुए कहा कि आवेदक ने गिरफ्तारी से बचने का प्रयास किया, जिसके परिणामस्वरूप CrPc की धारा 82 और 83 के तहत कार्यवाही की गई।
हाईकोर्ट ने आवेदन खारिज किया और कई मामलों में DNA टेस्ट में बहुत कम अव्याख्यात्मक वाई-क्रोमोसोम की आवर्ती रिपोर्टों को चिह्नित किया, जिससे फोरेंसिक प्रक्रियाओं की गुणवत्ता के बारे में चिंताएं बढ़ गईं।
उन्होंने टिप्पणी की,
"क्या प्रयोगशाला स्वीकृत DNA टेस्ट किट से सुसज्जित नहीं है या वैज्ञानिक अधिकारी जानबूझकर DNA टेस्ट को ठीक से करने से बच रहे हैं। यह ऐसा मामला है, जिस पर पुलिस महानिदेशक को विचार करना चाहिए और डीजीपी से हस्तक्षेप करने के लिए कहा है।”
केस टाइटल– जगदीश प्रसाद दीक्षित बनाम मध्य प्रदेश राज्य