मध्य प्रदेश हाईकोर्ट से जनहित याचिका में जमानत और सजा के निलंबन की याचिकाओं पर निर्णय लेने में अनावश्यक देरी से बचने के लिए निर्देश देने की मांग
Amir Ahmad
7 Oct 2024 1:05 PM IST
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में जनहित याचिका (PIL) याचिका दायर की गई, जिसमें राज्य के अधिकारियों को आरोपी व्यक्तियों की जमानत याचिकाओं और दोषियों की सजा के निलंबन की याचिकाओं पर निर्णय लेने में अनावश्यक देरी से बचने के लिए निर्देश देने की मांग की गई।
याचिका में कहा गया कि यह इन व्यक्तियों के शीघ्र न्याय के अधिकार का उल्लंघन करता है, जिसकी गारंटी भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत दी गई।
याचिकाकर्ता एडवोकेट अमिताभ गुप्ता ने अपनी याचिका में न्यायालय का ध्यान अभियोक्ताओं द्वारा अभियुक्त व्यक्तियों के आपराधिक पूर्ववृत्त और हिरासत रिपोर्ट जैसे दस्तावेज लाने के नाम पर स्थगन मांगने की प्रथा की ओर आकर्षित करने का प्रयास किया।
इसमें कहा गया कि यदि ये आवश्यक अभिलेख पहली सुनवाई में उपलब्ध करा दिए जाएं। यदि इन्हें निर्णय में ही शामिल कर लिया जाए तो इससे अनावश्यक स्थगन को रोका जा सकेगा, न्यायिक समय की बचत होगी, प्रशासनिक मशीनरी पर बोझ कम होगा। साथ ही राज्य पर वित्तीय बोझ भी कम होगा।
याचिका के अनुसार स्थगन का अनुरोध अक्सर लोक अभियोजकों द्वारा आवेदकों के आपराधिक पूर्ववृत्त या हिरासत रिपोर्ट प्राप्त करने और प्रस्तुत करने के लिए किया जाता है। इसमें कहा गया कि इन प्रक्रियात्मक देरी के परिणामस्वरूप 1-2 सप्ताह तक स्थगन या जमानत आवेदनों पर मुख्य सुनवाई स्थगित करना और सजा के आवेदनों को स्थगित करना पड़ता है। इससे परिहार्य प्रक्रियात्मक अड़चनें भी पैदा होती हैं।
याचिकाकर्ता ने आगे तर्क दिया कि अगर सरकारी अभियोजक द्वारा पहली सुनवाई में ही केस डायरी के साथ दोषी या आरोपी का आपराधिक इतिहास अदालत में लाया जाए तो इन देरी से बचा जा सकता है। याचिका में कहा गया कि सजा का फैसला लिखते समय ट्रायल कोर्ट दोषी के आपराधिक इतिहास और अंडरट्रायल के रूप में हिरासत में बिताए गए समय को अपने रिकॉर्ड में दर्ज कर सकता है।
इसके अलावा याचिकाकर्ता ने न्यायिक प्रणाली के कुशल संचालन के लिए रिकॉर्ड तक समय पर पहुंच के महत्व पर प्रकाश डाला है। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया है कि आपराधिक इतिहास दर्ज करने के लिए फॉर्म पहले से मौजूद है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) द्वारा निर्धारित किया गया। जनहित याचिका में इन दिशानिर्देशों का पालन करने की प्रार्थना की गई, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि न्यायिक समय का कुशलतापूर्वक उपयोग किया जाए।
विभिन्न राहतों के अलावा याचिका में गृह विभाग और पुलिस महानिदेशक (एमपी) सहित राज्य अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश देने की मांग की गई कि किसी आरोपी या दोषी का आपराधिक इतिहास निर्धारित फॉर्म में दर्ज किया जाए। इसमें आगे मांग की गई कि यह जानकारी जमानत या सजा निलंबन आवेदन की पहली सुनवाई में उपलब्ध कराई जाए।
इसके अलावा याचिका में मांग की गई कि ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिया जाए कि वे दोषियों की आपराधिक पृष्ठभूमि को सजा के फैसले में शामिल करें।
केस टाइटल: अमिताभ गुप्ता बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य।