क्या IBC के अंतर्गत अपील की समय-सीमा में प्रमाणित प्रति प्राप्त करने का समय जोड़ा जाएगा?

Himanshu Mishra

12 Jun 2025 11:11 AM

  • क्या IBC के अंतर्गत अपील की समय-सीमा में प्रमाणित प्रति प्राप्त करने का समय जोड़ा जाएगा?

    सुप्रीम कोर्ट ने Sanket Kumar Agarwal बनाम APG Logistics Pvt. Ltd. मामले में 1 मई 2023 को एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया, जिसमें यह तय किया गया कि क्या NCLT (National Company Law Tribunal) द्वारा दिए गए आदेश की प्रमाणित प्रति (Certified Copy) प्राप्त करने में लगा समय IBC (Insolvency and Bankruptcy Code, 2016) के अंतर्गत अपील की समय-सीमा (Limitation Period) की गणना में से बाहर (Excluded) किया जाना चाहिए।

    यह फैसला केवल समय-सीमा की तकनीकी व्याख्या तक सीमित नहीं था, बल्कि ई-फाइलिंग (E-Filing) को बढ़ावा देने, न्यायिक प्रक्रिया के डिजिटलीकरण (Digitization) और आधुनिक व्यवस्था को अपनाने के संदर्भ में भी एक अहम मार्गदर्शक सिद्ध हुआ।

    IBC की धारा 61 और 238A का कानूनी ढांचा (Statutory Framework of Section 61 and 238A of IBC)

    IBC की धारा 61(2) के अनुसार, NCLT के आदेश के विरुद्ध अपील NCLAT (National Company Law Appellate Tribunal) में 30 दिन के भीतर दाखिल की जानी चाहिए। इस अवधि के बाद अधिकतम 15 दिन की देरी केवल "पर्याप्त कारण" (Sufficient Cause) दिखाने पर ही माफ की जा सकती है। यानी कुल 45 दिनों के बाद NCLAT के पास कोई अधिकार नहीं होता कि वह देरी को माफ कर सके।

    IBC की धारा 238A यह स्पष्ट करती है कि Limitation Act, 1963 की धाराएं, जहां तक संभव हो, IBC की कार्यवाहियों पर भी लागू होंगी। इसका अर्थ है कि Section 12 of the Limitation Act — जो प्रमाणित प्रति प्राप्त करने में लगे समय को समय-सीमा से बाहर मानता है — वह भी अपीलों पर लागू होगा।

    Limitation Act की धारा 12 का महत्व (Importance of Section 12 of the Limitation Act)

    Limitation Act की धारा 12(2) यह कहती है कि अपील के लिए निर्धारित समय की गणना में उस दिन को शामिल नहीं किया जाएगा जिस दिन निर्णय सुनाया गया और साथ ही उस समय को भी बाहर रखा जाएगा जो प्रमाणित प्रति प्राप्त करने में लगा, बशर्ते कि प्रति प्राप्त करने के लिए समय से आवेदन किया गया हो।

    सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रावधान को स्वीकार करते हुए यह स्पष्ट किया कि यदि याचिकाकर्ता ने समय रहते Certified Copy के लिए आवेदन किया है, तो उस प्रक्रिया में जो दिन लगे, उन्हें Limitation Period में शामिल नहीं किया जा सकता।

    NCLAT नियम 3 की व्याख्या (Interpretation of Rule 3 of NCLAT Rules)

    NCLAT Rules, 2016 के Rule 3 के अनुसार, जिस दिन से समय-सीमा की गणना शुरू होनी है, उस दिन को गणना में शामिल नहीं किया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने यह दोहराया कि यह नियम Section 12 के अनुरूप है और इसका पालन अनिवार्य है।

    ई-फाइलिंग और प्रशासनिक भ्रम (E-Filing and Administrative Confusion)

    इस मामले में एक और मुद्दा यह था कि क्या अपील दाखिल करने की तारीख ई-फाइलिंग की मानी जाएगी या फिजिकल कॉपी (Physical Copy) जमा करने की? NCLAT के अलग-अलग सर्कुलर और आदेशों ने इसमें भ्रम पैदा किया।

    21 अक्टूबर 2022 के आदेश में कहा गया कि Limitation की गणना अपील के फिजिकल फाइलिंग की तारीख से होगी। लेकिन 24 दिसंबर 2022 को इसे वापस ले लिया गया और नए आदेश में यह स्पष्ट किया गया कि ई-फाइलिंग की तारीख से Limitation की गणना होगी, बशर्ते फिजिकल कॉपी 7 दिनों के भीतर जमा कर दी जाए।

    सुप्रीम कोर्ट ने NCLAT की इस असंगत नीति की आलोचना की और कहा कि इससे न्यायिक प्रक्रिया में अनावश्यक उलझन और अन्याय की स्थिति उत्पन्न होती है।

    न्यायिक टेक्नोलॉजी की ओर अग्रसर (Judicial Endorsement of Technology)

    कोर्ट ने इस फैसले में न्यायपालिका और ट्रिब्यूनलों के डिजिटलीकरण (Digitization) की ज़रूरत पर भी बल दिया। कोर्ट ने कहा कि E-Filing अब कोई विकल्प नहीं, बल्कि एक आवश्यकता है।

    यदि वकीलों या पक्षकारों को E-Filing के बावजूद फिजिकल कॉपी जमा करने को बाध्य किया जाए, तो वे E-Filing को अपनाने से कतराएंगे। यह न केवल समय और संसाधन की बर्बादी है, बल्कि पर्यावरण के लिए भी हानिकारक है।

    जजों को यदि ई-फाइल से काम करने में परेशानी है, तो समाधान प्रशिक्षण (Training) है, न कि पुरानी पद्धतियों को बनाए रखना।

    V. Nagarajan केस का स्पष्टीकरण (Clarification of the V. Nagarajan Case)

    V. Nagarajan v. SKS Ispat and Power Ltd. (2022) में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि Limitation की गणना आदेश के उच्चारण (Pronouncement) की तारीख से शुरू होती है और Certified Copy प्राप्त करने में लगे समय को तभी हटाया जाएगा जब समय पर आवेदन किया गया हो।

    लेकिन उस केस में याचिकाकर्ता ने समय पर Certified Copy के लिए आवेदन नहीं किया था। जबकि Sanket Kumar Agarwal केस में आवेदन समय से किया गया था। अतः सुप्रीम कोर्ट ने दोनों मामलों में फर्क बताते हुए कहा कि वर्तमान मामले में Section 12(2) का लाभ मिलना चाहिए।

    न्याय तक पहुंच की सुरक्षा (Ensuring Access to Justice)

    सुप्रीम कोर्ट ने इस बात को स्पष्ट किया कि जब कोई याचिकाकर्ता समय-सीमा के भीतर आवश्यक कार्य करता है और देरी उसकी नहीं बल्कि न्यायालयीय प्रक्रियाओं के कारण होती है, तो उसे अपील करने के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता।

    इस फैसले ने एक बार फिर यह सिद्ध किया कि न्याय प्रक्रिया में तकनीकी खामियों के बजाय न्याय और न्यायसंगतता (Fairness) को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

    Sanket Kumar Agarwal बनाम APG Logistics Pvt. Ltd. फैसला IBC के अंतर्गत अपील की समय-सीमा की व्याख्या में एक महत्वपूर्ण दिशा देता है। यह स्पष्ट करता है कि यदि समय रहते Certified Copy के लिए आवेदन किया गया है, तो उसे प्राप्त करने में लगा समय Limitation Period में नहीं जोड़ा जाएगा।

    यह निर्णय तकनीकी सुधार, न्याय की पहुंच और ई-गवर्नेंस की दिशा में न्यायपालिका की गंभीरता को दर्शाता है। साथ ही यह भी संकेत देता है कि न्यायिक संस्थानों को स्पष्ट, एकरूप और तकनीक-समर्थ (Technology-Compatible) बनना होगा ताकि आम नागरिकों को न्याय में देरी न हो और कानून का पालन सरल व प्रभावी तरीके से हो सके।

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