क्या लिखित रूप में गिरफ्तारी के आधार न देने से ED की गिरफ्तारी अवैध मानी जाएगी?
Himanshu Mishra
16 July 2025 4:10 PM

राम किशोर अरोड़ा बनाम प्रवर्तन निदेशालय (2023) के निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया से जुड़ा सवाल स्पष्ट किया — क्या प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा गिरफ्तारी के समय गिरफ्तारी के कारणों की लिखित प्रति (Written Copy of Grounds of Arrest) न देना, गिरफ्तारी को अवैध बनाता है?
यह फैसला Prevention of Money Laundering Act, 2002 (PMLA) की धारा 19 की व्याख्या करता है और Vijay Madanlal Choudhary, V. Senthil Balaji तथा Pankaj Bansal जैसे पूर्व निर्णयों को ध्यान में रखते हुए स्पष्ट करता है कि व्यक्ति की स्वतंत्रता (Personal Liberty) और जांच एजेंसी की शक्तियों में संतुलन कैसे बनाए रखा जाए।
PMLA की धारा 19 और गिरफ्तारी के कारणों को जानने का अधिकार (Section 19 of PMLA and Right to Know Grounds of Arrest)
धारा 19 के तहत ED का अधिकारी किसी व्यक्ति को तभी गिरफ्तार कर सकता है जब उसके पास यह Reason to Believe (विश्वास करने का कारण) हो कि वह व्यक्ति मनी लॉन्ड्रिंग का दोषी है। यह विश्वास किसी पुख्ता सामग्री (Material in Possession) पर आधारित होना चाहिए।
इस धारा में यह भी स्पष्ट किया गया है कि गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को "यथाशीघ्र" (As Soon As May Be) गिरफ्तारी के कारण बताए जाने चाहिए। साथ ही उसे 24 घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट (Judicial Magistrate) के सामने पेश करना अनिवार्य है।
यह प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 22(1) (Article 22(1) – Right to be informed of grounds of arrest) के साथ मिलकर व्यक्ति की स्वतंत्रता की सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
"As Soon As May Be" का सही अर्थ क्या है? (Meaning of “As Soon As May Be”)
कोर्ट ने इस वाक्यांश की व्याख्या करते हुए Abdul Jabar Butt v. State of J&K और Durga Pada Ghosh v. State of West Bengal जैसे पुराने निर्णयों का हवाला दिया। कोर्ट ने कहा कि "यथाशीघ्र" का अर्थ है यथासंभव शीघ्र — सामान्यतः गिरफ्तारी के 24 घंटे के भीतर। यानी देरी की कोई वैध वजह होनी चाहिए, नहीं तो गिरफ्तारी प्रक्रिया पर सवाल उठ सकता है।
क्या Pankaj Bansal का निर्णय पीछे की तारीख से लागू होगा? (Retrospective or Prospective Application of Pankaj Bansal Decision)
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि Pankaj Bansal v. Union of India (2023) के निर्णय के अनुसार गिरफ्तारी के समय लिखित रूप में गिरफ्तारी के आधार देना अनिवार्य है, और चूँकि ऐसा नहीं किया गया, इसलिए गिरफ्तारी अवैध है।
लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि Pankaj Bansal का निर्णय Prospective (भविष्यकालिक) रूप से लागू होगा, यानी उस फैसले की तारीख (3 अक्टूबर 2023) के बाद की गिरफ्तारियों पर ही यह नियम लागू होगा। कोर्ट ने कहा कि चूंकि राम किशोर अरोड़ा को इससे पहले गिरफ्तार किया गया था, इसलिए उस समय लिखित प्रति न देना गिरफ्तारी को अवैध नहीं बनाता।
इसके लिए कोर्ट ने Assistant Commissioner v. Saurashtra Kutch Stock Exchange का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि सभी फैसले अपने आप पीछे की तारीख से लागू नहीं होते, खासकर जब अदालत “अब से” (Henceforth) जैसे शब्द का प्रयोग करती है।
Vijay Madanlal का प्रभाव और धारा 19 की वैधता (Effect of Vijay Madanlal and Validity of Section 19)
Vijay Madanlal Choudhary v. Union of India (2022) में सुप्रीम कोर्ट ने धारा 19 को संवैधानिक (Constitutional) माना और कहा कि यह धारा अपराध की रोकथाम और सार्वजनिक हित से जुड़ी है।
उस फैसले में कहा गया था कि गिरफ्तारी के कारणों को मौखिक (Oral) या लिखित (Written) किसी भी रूप में बताया जा सकता है, जब तक व्यक्ति को उसके अधिकारों की जानकारी दी गई हो और उसे अपनी रक्षा करने का अवसर मिला हो।
इसलिए, Pankaj Bansal से पहले तक मौखिक रूप से कारण बताना भी पर्याप्त माना जाता था।
बड़ी पीठ के निर्णय का पालन अनिवार्य (Doctrine of Precedent and Judicial Discipline)
एक महत्वपूर्ण कानूनी प्रश्न यह था कि क्या Pankaj Bansal का फैसला Vijay Madanlal (जो तीन न्यायाधीशों की पीठ का था) को ओवररूल (Overrule) कर सकता है? कोर्ट ने कहा नहीं।
Union of India v. Raghubir Singh और Chandra Prakash v. State of U.P. जैसे फैसलों के आधार पर कोर्ट ने कहा कि एक छोटी पीठ (Smaller Bench) बड़ी पीठ के निर्णय से अलग नहीं जा सकती।
इसलिए अगर Pankaj Bansal में कोई बात Vijay Madanlal से अलग कही गई है, तो वह Per Incuriam (कानूनी प्रभाव से रहित) होगी और बाध्यकारी नहीं होगी।
गिरफ्तारी प्रक्रिया में पर्याप्त अनुपालन (Sufficient Compliance with Arrest Procedure)
इस केस में याचिकाकर्ता ने गिरफ्तारी के कारणों की प्रति भले ही प्राप्त नहीं की हो, लेकिन उसने गिरफ्तारी के कारण पढ़े, समझे और उस पर हस्ताक्षर किए। कोर्ट ने कहा कि यह पर्याप्त है और इसे धारा 19 और अनुच्छेद 22(1) का पालन माना जाएगा।
इसका उद्देश्य यह है कि व्यक्ति को यह स्पष्ट रूप से पता हो कि उसे क्यों गिरफ्तार किया गया है ताकि वह कानूनी रूप से अपनी रक्षा कर सके।
नए नियमों का Prospective (भविष्यकालिक) प्रयोग (Prospective Application of Procedural Rules)
कोर्ट ने कहा कि Pankaj Bansal में जो नई व्यवस्था दी गई — कि गिरफ्तारी के आधार लिखित रूप में देने होंगे — वह एक प्रक्रिया सुधार (Procedural Innovation) है, जो अदालत ने न्यायपूर्ण तरीके से किया है।
लेकिन चूँकि यह नई व्यवस्था है और कानून में पहले से स्पष्ट नहीं थी, इसलिए इसे सिर्फ भविष्य के मामलों पर ही लागू किया जा सकता है।
राम किशोर अरोड़ा बनाम प्रवर्तन निदेशालय का फैसला यह स्पष्ट करता है कि व्यक्ति की स्वतंत्रता और कानूनी प्रक्रिया के बीच संतुलन बनाए रखना कितना आवश्यक है। कोर्ट ने यह कहा कि लिखित प्रति देना Pankaj Bansal के बाद अनिवार्य हो गया है, लेकिन उससे पहले मौखिक रूप से गिरफ्तारी का कारण बताना भी वैध था।
यह निर्णय इस बात की मिसाल है कि कैसे सुप्रीम कोर्ट प्रक्रिया में पारदर्शिता (Transparency) लाते हुए जांच एजेंसियों की वैध शक्तियों को भी सुरक्षित रखता है। साथ ही यह भी स्पष्ट करता है कि कौन से निर्णय पिछली तारीखों से लागू होंगे और कौन से केवल भविष्य में ही प्रभावी रहेंगे।