क्या असंवैधानिक घोषित कानून शुरू से ही अमान्य माना जाएगा? CBI बनाम आर.आर. किशोर में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय

Himanshu Mishra

5 July 2025 5:08 PM IST

  • क्या असंवैधानिक घोषित कानून शुरू से ही अमान्य माना जाएगा? CBI बनाम आर.आर. किशोर में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय

    CBI बनाम आर.आर. किशोर में भारत के सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ (Constitution Bench) को यह अहम सवाल तय करना था कि क्या कोई कानून जिसे असंवैधानिक (Unconstitutional) घोषित किया गया हो, उसे शुरू से ही अमान्य (Void ab Initio) माना जाएगा? और क्या ऐसा निर्णय लंबित आपराधिक मामलों (Pending Criminal Cases) पर भी लागू होगा?

    यह मुद्दा विशेष रूप से दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम, 1946 (Delhi Special Police Establishment Act – DSPE Act) की धारा 6A(1) को लेकर था, जिसे पहले Subramanian Swamy v. Director, CBI (2014) में असंवैधानिक घोषित किया गया था। इस फैसले का केंद्रबिंदु भारतीय संविधान का अनुच्छेद 13(2), आपराधिक प्रक्रिया का स्वरूप और अनुच्छेद 20(1) की सुरक्षा थी।

    धारा 6A क्या थी और इस पर विवाद क्यों हुआ? (What was Section 6A and why was it controversial?)

    DSPE Act में धारा 6A(1) वर्ष 2003 में जोड़ी गई थी, जिसके अनुसार किसी संयुक्त सचिव (Joint Secretary) या उससे ऊपर के केंद्रीय सरकारी अधिकारी के खिलाफ भ्रष्टाचार (Corruption) के मामले में जांच शुरू करने से पहले केंद्र सरकार की पूर्व स्वीकृति (Prior Approval) लेना आवश्यक था।

    इसका उद्देश्य वरिष्ठ अधिकारियों को अनावश्यक उत्पीड़न से बचाना था, लेकिन व्यावहारिक रूप से यह एक "बचाव कवच" बन गया, जिससे जांच एजेंसियों के हाथ बंध गए और भ्रष्टाचार के मामलों में कार्रवाई बाधित हुई।

    सुप्रीम कोर्ट ने Subramanian Swamy v. CBI (2014) में इसे अनुच्छेद 14 (Article 14 – Right to Equality) का उल्लंघन मानते हुए असंवैधानिक घोषित कर दिया था क्योंकि यह सरकार के उच्च पदस्थ अधिकारियों को अनुचित और पक्षपातपूर्ण सुरक्षा देता था।

    क्या धारा 6A प्रक्रिया (Procedure) थी या अधिकार? (Procedural or Substantive?)

    कोर्ट के समक्ष पहला सवाल यही था कि क्या धारा 6A एक मूल अधिकार (Substantive Right) प्रदान करती है या मात्र एक प्रक्रिया संबंधी प्रावधान (Procedural Safeguard) है।

    कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह कोई नया अपराध (Offence) नहीं बनाती, न ही सजा (Punishment) को बढ़ाती है। यह सिर्फ एक प्रारंभिक जांच (Preliminary Investigation) से पहले प्रशासनिक मंजूरी की जरूरत निर्धारित करती है।

    इसलिए यह केवल प्रक्रिया (Procedure) का हिस्सा है और इसमें कोई ऐसा तत्व नहीं है जिसे अनुच्छेद 20(1) (Article 20(1) – Protection against Ex Post Facto Laws) द्वारा संरक्षित किया जा सके।

    यह निष्कर्ष Rao Shiv Bahadur Singh v. State of Vindhya Pradesh (1953) जैसे पुराने निर्णयों से मेल खाता है जिसमें यह कहा गया था कि अनुच्छेद 20(1) केवल उन स्थितियों पर लागू होता है जहाँ कानून अपराध या सजा में बदलाव करता है, प्रक्रिया में नहीं।

    क्या असंवैधानिक कानून को शुरू से अमान्य माना जाएगा? (Is an Unconstitutional Law Void from the Beginning?)

    अनुच्छेद 13(2) के अनुसार, जो कोई भी कानून संविधान के भाग-III (Fundamental Rights) का उल्लंघन करता है, वह "जहाँ तक उल्लंघन हुआ है" अमान्य माना जाएगा। कोर्ट ने इसे स्पष्ट करते हुए कहा कि जब कोई कानून असंवैधानिक घोषित किया जाता है, तो वह Void ab Initio माना जाता है—यानी शुरू से ही अस्तित्वहीन (Non-existent)।

    कोर्ट ने Deep Chand v. State of Uttar Pradesh (1959), Keshavan Madhava Menon (1951) और Behram Khurshid Pesikaka (1955) जैसे मामलों का हवाला दिया, जिनमें समान दृष्टिकोण अपनाया गया था कि असंवैधानिक कानून "Non Est" होता है – अर्थात् यह कभी अस्तित्व में ही नहीं माना जाएगा।

    क्या अनुच्छेद 20(1) रेट्रोस्पेक्टिव फैसलों पर रोक लगाता है? (Does Article 20(1) Bar Retrospective Declarations?)

    प्रतिवादी (Respondent) का तर्क था कि Section 6A की सुरक्षा हटाना, खासकर पहले से लंबित मामलों में, अनुच्छेद 20(1) का उल्लंघन होगा। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे खारिज करते हुए कहा कि अनुच्छेद 20(1) केवल उन प्रावधानों पर लागू होता है जो नई सजा तय करते हैं या पुराने अपराधों की सजा बढ़ाते हैं, न कि प्रक्रिया (Procedure) से संबंधित प्रावधानों पर।

    इस निष्कर्ष को S.K. Ghosh v. State of West Bengal (1963) और Rattan Lal v. State of Punjab (1965) जैसे मामलों में दोहराया गया था, जहाँ कोर्ट ने कहा था कि अगर बदलाव प्रक्रिया से जुड़ा है और सजा में कोई बदलाव नहीं करता, तो अनुच्छेद 20(1) लागू नहीं होगा।

    अब जांच और मुकदमे पर क्या असर होगा? (What is the Impact on Pending Investigations and Trials?)

    कोर्ट ने स्पष्ट किया कि Section 6A के कारण जिन मामलों में जांच नहीं हो पाई थी या अटकी हुई थी, उन्हें अब आगे बढ़ाया जा सकता है। क्योंकि जब यह धारा संविधान के विरुद्ध पाई गई, तो इसे ऐसा माना जाएगा कि यह कभी अस्तित्व में ही नहीं थी।

    इसलिए, यदि बिना अनुमति के की गई जांचों को असंवैधानिक मानकर रोका गया था, तो अब वे वैध मानी जाएंगी और मुकदमा (Trial) जारी रह सकता है।

    कोर्ट ने यह भी कहा कि ऐसे सभी मामलों में जांच एजेंसियों को अब DSPE Act की धारा 6A के बजाय PC Act की धारा 17A के प्रावधानों के तहत कार्य करना होगा, जो वर्तमान में लागू है और जो सभी स्तरों के सरकारी कर्मचारियों के लिए समान सुरक्षा प्रदान करता है।

    CBI बनाम आर.आर. किशोर का निर्णय भारतीय संवैधानिक व्यवस्था में एक मील का पत्थर है। सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया कि जब कोई कानून संविधान के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है और असंवैधानिक घोषित किया जाता है, तो वह शुरू से ही अमान्य होता है।

    इस फैसले ने यह भी स्पष्ट किया कि केवल "प्रक्रियात्मक सुरक्षा" (Procedural Protection) का हनन अनुच्छेद 20(1) का उल्लंघन नहीं होता और ऐसा कोई भी सुरक्षा प्रावधान, जिसे कोर्ट असंवैधानिक ठहराता है, उसका लाभ अभियुक्त को नहीं मिल सकता।

    यह निर्णय सरकारी तंत्र में जवाबदेही (Accountability) को बढ़ाता है और यह सुनिश्चित करता है कि भ्रष्टाचार के आरोपों पर प्रभावी और बिना भेदभाव के जांच हो सके।

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