पॉक्सो एक्ट के तहत दोषी को 187 साल की सजा क्यों मिली? क्या कहता है बच्चों की सुरक्षा के लिए कानून?

Himanshu Mishra

11 April 2025 12:46 PM

  • पॉक्सो एक्ट के तहत दोषी को 187 साल की सजा क्यों मिली? क्या कहता है बच्चों की सुरक्षा के लिए कानून?

    Taliparamba Fast-Track Court ने हाल ही में एक ऐतिहासिक निर्णय सुनाया, जिसमें एक मदरसा शिक्षक को 187 वर्ष की सजा सुनाई गई। यह निर्णय एक 16 वर्षीय बच्ची के साथ दो वर्षों से अधिक समय तक हुए यौन शोषण के मामले में आया। इस मामले ने पूरे देश का ध्यान आकर्षित किया और यह प्रश्न उठाया कि बच्चों के विरुद्ध यौन अपराधों के मामलों में POCSO अधिनियम किस प्रकार कार्य करता है और इसकी सजा कितनी कठोर हो सकती है।

    इस लेख में हम सरल भाषा में समझेंगे:

    • POCSO अधिनियम क्या है?

    • इसमें कौन-कौन से अपराध (Offences) आते हैं?

    • प्रत्येक अपराध की अधिकतम सजा (Maximum Punishment) क्या है?

    • इस कानून में जमानत (Bail) की क्या व्यवस्था है?

    • बच्चों के अभिभावकों (Guardians) के क्या अधिकार (Rights) हैं?

    1. POCSO अधिनियम क्या है? (What is the POCSO Act?)

    POCSO का पूरा नाम है – Protection of Children from Sexual Offences Act, 2012। यह कानून विशेष रूप से 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों को यौन शोषण (Sexual Abuse), यौन उत्पीड़न (Sexual Harassment), और अश्लीलता (Pornography) जैसे अपराधों से बचाने के लिए बनाया गया है। इस कानून में बच्चों के बयान की गोपनीयता (Confidentiality) बनाए रखने, सुनवाई जल्दी करने और पीड़ित को सहूलियत देने के विशेष प्रावधान हैं।

    2. POCSO अधिनियम के अंतर्गत अपराधों के प्रकार (Types of Offences under POCSO)

    POCSO अधिनियम में मुख्य रूप से निम्नलिखित प्रकार के अपराध शामिल हैं: धारा 3: भेदनात्मक यौन हमला (Penetrative Sexual Assault) क्या है?

    जब कोई व्यक्ति:

    • बच्चे के गुप्तांगों (private parts) में लिंग (penis), मुँह (mouth), किसी वस्तु (object) या शरीर का कोई और हिस्सा जबरदस्ती डालता है

    • या बच्चे से ऐसा करवाता है

    धारा 4: इसकी सज़ा (Punishment for Penetrative Sexual Assault)

    • न्यूनतम (Minimum): 10 साल की सख्त सजा (Rigorous Imprisonment)

    • अधिकतम (Maximum): उम्रकैद (Life Imprisonment)

    • अगर बच्चा 16 साल से छोटा है:

    o न्यूनतम: 20 साल

    o अधिकतम: पूरी जिंदगी के लिए जेल (Imprisonment for natural life)

    • साथ ही जुर्माना (Fine) भी लगाया जाता है, जो पीड़ित की मेडिकल देखभाल और पुनर्वास (rehabilitation) के लिए होता है

    2. धारा 5: बढ़े हुए स्तर का भेदनात्मक हमला (Aggravated Penetrative Sexual Assault)

    इसमें वे हालात आते हैं जब:

    • हमला पुलिस, सेना, सरकारी कर्मचारी, जेल या हॉस्पिटल के कर्मचारी द्वारा हो

    • स्कूल, मंदिर, मस्जिद जैसी जगहों पर हो

    • बच्चा 12 साल से छोटा हो

    • किसी हथियार से हमला हो या गंभीर चोट लगे

    • बार-बार किया गया हो

    • गर्भवती बना दिया हो

    • हत्या की कोशिश हुई हो

    • साम्प्रदायिक दंगे या प्राकृतिक आपदा के समय किया गया हो

    • कोई रिश्तेदार, शिक्षक, या भरोसेमंद व्यक्ति ने किया हो

    धारा 6: इसकी सज़ा (Punishment for Aggravated Penetrative Sexual Assault)

    • न्यूनतम: 20 साल

    • अधिकतम: पूरी जिंदगी के लिए जेल या मौत की सजा (Death Penalty)

    • जुर्माना ज़रूरी है और वो पैसा पीड़ित की ज़रूरतों पर खर्च किया जाएगा

    3. धारा 7: यौन हमला (Sexual Assault) क्या है?

    जब कोई व्यक्ति:

    • बच्चे को गंदे इरादे से छुए

    • जैसे कि गुप्तांग, स्तन या अन्य निजी अंग

    लेकिन इसमें शरीर में कुछ अंदर डालने (penetration) की बात नहीं होती।

    धारा 8: इसकी सज़ा (Punishment for Sexual Assault)

    • न्यूनतम: 3 साल

    • अधिकतम: 5 साल

    • साथ ही जुर्माना भी हो सकता है

    4. धारा 9: गंभीर यौन हमला (Aggravated Sexual Assault) क्या है?

    यह वैसे ही है जैसे धारा 7 में बताया गया हमला, लेकिन ये किसी खास व्यक्ति द्वारा किया गया हो, जैसे कि:

    • पुलिस या सरकारी अधिकारी

    • परिवार का सदस्य

    • शिक्षक, डॉक्टर, हॉस्पिटल या स्कूल का स्टाफ

    • बार-बार हमला करने वाला

    • साम्प्रदायिक दंगे या आपदा के समय हमला

    • बच्चे को चोट पहुँचाना या विकलांग कर देना

    धारा 10: इसकी सज़ा (Punishment for Aggravated Sexual Assault)

    • न्यूनतम: 5 साल

    • अधिकतम: 7 साल

    • साथ ही जुर्माना भी लगाया जा सकता है

    5. धारा 11: यौन उत्पीड़न (Sexual Harassment) क्या है?

    अगर कोई व्यक्ति:

    • बच्चे को देखकर गंदे इशारे करे

    • अश्लील बात कहे या आवाज़ निकाले

    • अश्लील चित्र या वीडियो दिखाए

    • पीछा करे या बार-बार संपर्क करने की कोशिश करे

    • धमकी दे कि बच्चा कुछ करेगा तो फोटो या वीडियो वायरल कर देगा

    • किसी लालच से बच्चे को फंसाने की कोशिश करे

    धारा 12: इसकी सज़ा (Punishment for Sexual Harassment)

    • अधिकतम सज़ा: 3 साल की जेल

    • साथ में जुर्माना भी लगाया जा सकता है

    4. जमानत के प्रावधान (Bail Provisions under POCSO)

    POCSO अधिनियम के तहत अधिकांश अपराध गंभीर (Grave) माने जाते हैं, इसलिए इन मामलों में जमानत आसानी से नहीं मिलती।

    • यदि अपराध गैर-जमानती (Non-Bailable) है, तो जमानत न्यायालय (Court) की अनुमति से ही मिल सकती है।

    • आरोपी की भूमिका, साक्ष्य (Evidence), पीड़ित की स्थिति और अपराध की गंभीरता देखकर ही अदालत जमानत देती है।

    • POCSO मामलों में अक्सर अदालत जमानत देने से इनकार कर देती है यदि पीड़ित बच्चा या गवाह डर या दबाव में हो।

    5. गवाहों की सुरक्षा और गोपनीयता (Protection and Confidentiality of Victims and Witnesses)

    • पीड़ित का नाम और पहचान उजागर नहीं की जा सकती।

    • सुनवाई के दौरान इन-कैमरा (In-camera) ट्रायल होता है, यानी आम लोग उस सुनवाई में शामिल नहीं हो सकते।

    • पीड़ित बच्चे की काउंसलिंग, मनोवैज्ञानिक सहायता और बयान वीडियो रिकॉर्डिंग से लेने का प्रावधान है।

    6. अभिभावकों के अधिकार (Rights of Guardians)

    बच्चे के माता-पिता या कानूनी अभिभावक को कुछ महत्वपूर्ण अधिकार दिए गए हैं:

    • मामले की पूरी जानकारी लेने का अधिकार।

    • बच्चे की सुरक्षा सुनिश्चित करने का अधिकार।

    • यदि आरोपी परिवार का सदस्य हो, तो अलग रहने की व्यवस्था मांग सकते हैं।

    • सुनवाई के दौरान कानूनी सहायता (Legal Aid) पाने का अधिकार।

    7. कुछ विशेष प्रावधान (Important Special Provisions)

    • Section 29 of POCSO: आरोपी को दोषी मानकर चला जाएगा जब तक वह खुद को निर्दोष साबित न कर दे।

    • Section 33: अदालत को सुनवाई जल्द पूरी करनी होती है – आमतौर पर 1 वर्ष में।

    • Section 44: राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) और राज्य आयोगों की निगरानी व्यवस्था।

    8. भारतीय साक्ष्य अधिनियम की भूमिका (Role of Indian Evidence Act)

    Taliparamba मामले में आरोपी ने कहा कि पीड़िता का पहले यौन संबंध रह

    8. भारतीय साक्ष्य अधिनियम की भूमिका (Role of Indian Evidence Act)

    Taliparamba मामले में आरोपी ने यह तर्क दिया कि पीड़िता के पहले से किसी से शारीरिक संबंध थे, इसलिए उसका बयान विश्वसनीय नहीं है। लेकिन अदालत ने इस तर्क को ठुकरा दिया।

    भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (Indian Evidence Act) की दो धाराएं विशेष रूप से इस संदर्भ में महत्वपूर्ण हैं:

    • धारा 53A (Section 53A): यह कहती है कि किसी महिला का पूर्व यौन व्यवहार (Previous Sexual Experience) यह साबित नहीं करता कि वह सहमति देने वाली है। यानी अगर कोई महिला पहले किसी से संबंध में रही हो, तो इसका मतलब यह नहीं कि उसने हर किसी के साथ सहमति दी है।

    • धारा 146 की proviso (Section 146 proviso): इससे यह स्पष्ट होता है कि पीड़िता से उसकी यौन गतिविधियों के बारे में जिरह (Cross-examination) नहीं की जा सकती यदि यह मामला बलात्कार या यौन शोषण से जुड़ा हो।

    इन दोनों प्रावधानों का मतलब यह है कि अदालतें अब पीड़िता के चरित्र (Character) या उसकी पुरानी गतिविधियों को आधार बनाकर आरोपी को बचाने की अनुमति नहीं देतीं। यह एक महत्वपूर्ण कदम है जिससे पीड़िताओं को न्याय मिलने में मदद मिलती है और अपराधी अपने अपराध से बच नहीं सकते।

    9. बच्चों के लिए सहायक उपाय (Support Mechanisms for Children)

    POCSO अधिनियम केवल सजा देने तक सीमित नहीं है। यह बच्चों की मानसिक स्थिति, स्वास्थ्य और पुनर्वास (Rehabilitation) पर भी ध्यान देता है:

    • काउंसलिंग (Counselling): पीड़ित बच्चे को मानसिक सहयोग दिया जाता है।

    • फास्ट ट्रैक कोर्ट (Fast-track Court): बच्चों के मामलों की सुनवाई जल्दी पूरी की जाती है।

    • मुआवज़ा (Compensation): अदालत पीड़ित को शारीरिक और मानसिक हानि के लिए मुआवज़ा देने का आदेश दे सकती है।

    • सुरक्षा उपाय (Protective Measures): यदि आरोपी परिवार का सदस्य है तो बच्चे को शेल्टर होम (Shelter Home) या किसी सुरक्षित स्थान पर रखा जा सकता है।

    Taliparamba मामला दिखाता है कि भारत में बच्चों के साथ यौन अपराध करने वालों को बख्शा नहीं जाता। 187 साल की सजा यह दर्शाती है कि अदालतें अब ऐसे अपराधों के प्रति सख्त रवैया अपना रही हैं।

    POCSO अधिनियम एक मजबूत कानून है जो बच्चों को सुरक्षित रखने के लिए बनाया गया है। इसमें अपराध की गंभीरता के आधार पर सजा का स्तर तय किया गया है – कहीं 3 साल, कहीं 10 साल, और गंभीर मामलों में आजीवन कारावास या मृत्युदंड तक।

    इस अधिनियम के तहत आरोपी को जमानत मिलना मुश्किल होता है और पीड़िता तथा उसके परिवार को कई तरह की कानूनी और मनोवैज्ञानिक सहायता मिलती है। साथ ही, भारतीय साक्ष्य अधिनियम भी यह सुनिश्चित करता है कि पीड़ित का चरित्र कोर्ट में मुद्दा न बने।

    हमें एक समाज के रूप में यह समझने की ज़रूरत है कि बच्चे बेहद संवेदनशील होते हैं। उनके साथ यौन अपराध न सिर्फ उनके शरीर बल्कि उनके मन पर भी गहरा प्रभाव डालता है। ऐसे में, POCSO जैसे कानूनों को गंभीरता से लागू करना और पीड़ितों को न्याय दिलाना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है।

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