चुनाव में Presiding Officer कौन होता है?

Shadab Salim

31 Aug 2025 7:14 PM IST

  • चुनाव में Presiding Officer कौन होता है?

    Representation of the People Act, 1951 की धारा 26 मतदान केंद्रों पर पीठासीन अधिकारी Presiding Officer और मतदान अधिकारियों (Polling Officers) की नियुक्ति से संबंधित है। यह धारा जिला चुनाव अधिकारी (District Election Officer) को मतदान केंद्रों के लिए अधिकारियों की नियुक्ति का अधिकार देती है, जो चुनाव प्रक्रिया की निष्पक्षता, सुरक्षा और सुचारु संचालन सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। धारा 26 भाग IV (चुनाव का संचालन) के अंतर्गत आती है, जो मतदान प्रक्रिया से संबंधित है। यह धारा 1951 से पहले के ब्रिटिश कालीन चुनावी कानूनों से प्रेरित है, लेकिन भारतीय संदर्भ में अनुकूलित है, जहां बड़े पैमाने पर मतदान केंद्रों की आवश्यकता होती है।

    यह प्रावधान चुनावी प्रक्रिया में पक्षपात को रोकने के लिए डिजाइन किया गया है, क्योंकि यह सुनिश्चित करता है कि अधिकारी उम्मीदवारों से जुड़े न हों। यह लचीलापन भी प्रदान करता है, जैसे कि एक ही व्यक्ति को कई केंद्रों के लिए नियुक्त करना, जो ग्रामीण क्षेत्रों में उपयोगी है जहां संसाधन सीमित होते हैं।

    धारा 26 चुनावी मशीनरी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। पीठासीन अधिकारी मतदान केंद्र का मुख्य प्रभारी होता है, जो मतदान की शुरुआत से अंत तक की देखरेख करता है। वह मतदाताओं की पहचान सत्यापित करता है, मतपत्र जारी करता है, और किसी विवाद का निपटारा करता है। मतदान अधिकारी सहायक होते हैं, जो पीठासीन अधिकारी के निर्देश पर कार्य करते हैं, जैसे कि मतदाताओं की सहायता या मतपेटी की सुरक्षा।

    व्यावहारिक रूप में, यह धारा चुनावों की विश्वसनीयता बनाए रखती है। यदि कोई अधिकारी पक्षपाती पाया जाता है, तो यह धारा 100 के तहत चुनाव याचिका का आधार बन सकता है, जहां चुनाव को अमान्य घोषित किया जा सकता है। अधिनियम के संशोधनों, जैसे 1961 के नियमों में, इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन के संदर्भ में इस धारा की भूमिका बढ़ गई है, जहां अधिकारी EVM की हैंडलिंग के लिए जिम्मेदार होते हैं।

    धारा 26 चुनावी हिंसा या अनियमितताओं को रोकने में भी सहायक है। यदि पीठासीन अधिकारी अनुपस्थित होता है, तो पूर्व-अधिकृत मतदान अधिकारी कार्य संभालता है, जो प्रक्रिया की निरंतरता सुनिश्चित करता है। यह प्रावधान ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों में विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, जहां अधिकारी की अनुपस्थिति चुनाव को प्रभावित कर सकती है। कुल मिलाकर, यह धारा चुनाव आयोग की स्वायत्तता को मजबूत करती है, क्योंकि जिला चुनाव अधिकारी चुनाव आयोग के अधीन कार्य करता है।

    सुप्रीम कोर्ट ने धारा 26 की व्याख्या विभिन्न मामलों में की है, मुख्य रूप से चुनाव याचिकाओं में जहां अधिकारी की नियुक्ति या कार्यों पर सवाल उठाए गए हैं। यह निर्णय चुनावी प्रक्रिया की पवित्रता पर जोर देते हैं और अनियमितताओं को 'सामग्री' (material) मानने के मानदंड स्थापित करते हैं।

    एक प्रमुख निर्णय है बारू राम बनाम प्रसन्नी इस मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने धारा 26(3) की व्याख्या की, जहां पीठासीन अधिकारी की अनुपस्थिति पर मतदान अधिकारी द्वारा कार्य संभालने की वैधता पर विचार किया गया। कोर्ट ने फैसला दिया कि यदि अनुपस्थिति अपरिहार्य हो और पूर्व-अधिकृत अधिकारी कार्य करे, तो यह वैध है, लेकिन यदि इससे मतदान प्रभावित होता है, तो चुनाव अमान्य हो सकता है। न्यायमूर्ति एस.आर. दास की बेंच ने कहा कि धारा 26 चुनाव की निष्पक्षता सुनिश्चित करती है, और छोटी अनियमितताएं चुनाव को प्रभावित नहीं करतीं। यह निर्णय धारा 26 को चुनावी स्थिरता से जोड़ता है।

    यहां, सुप्रीम कोर्ट ने धारा 26(1) के तहत पीठासीन अधिकारी की नियुक्ति पर विचार किया, जहां आरोप था कि अधिकारी उम्मीदवार से जुड़ा था। कोर्ट ने फैसला दिया कि यदि नियुक्ति में अनियमितता हो लेकिन यह 'सामग्री' न हो (यानी चुनाव परिणाम को प्रभावित न करे), तो चुनाव वैध रहेगा। न्यायमूर्ति वी. भर्गव की बेंच ने व्याख्या की कि धारा 26 पक्षपात रोकने के लिए है, लेकिन साक्ष्य के अभाव में चुनौती अस्वीकार्य है।

    मतगणना रद्द करने पर पीठासीन अधिकारी की भूमिका पर चर्चा हुई। न्यायमूर्ति वी.आर. कृष्णा अय्यर ने कहा कि धारा 26 के अधिकारी चुनाव आयोग के एजेंट हैं, और उनकी कार्रवाई में मनमानी नहीं होनी चाहिए। यह निर्णय धारा 26 को लोकतांत्रिक मूल्यों से जोड़ता है। धारा 26 लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 का एक आवश्यक प्रावधान है, जो मतदान केंद्रों पर अधिकारियों की नियुक्ति को विनियमित करता है। यह निष्पक्षता, दक्षता और निरंतरता सुनिश्चित करता है, जो भारतीय लोकतंत्र की नींव है।

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