Consumer Protection Act के अनुसार डिपॉजिट करके निवेश करने वाले ग्राहक माने जाएंगे या नहीं
Shadab Salim
22 May 2025 7:15 PM IST

इस एक्ट से जुड़े एक मामले शालिक अलाउद्दीन एवं अन्य बनाम टर्की कंस्ट्रक्शन एवं अन्य में यह निर्णीत किया गया कि वे परिवादीगण उपभोक्ता होने की हैसियत रखते है जिन्होंने विपक्षी फर्म में धन का विनियोग किया है। इसी फर्म के विपक्षीगण क्रमांक 2 से 4 तक भागीदार है तथा परिवादीगण उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 2 (1) (घ) (II) के अर्थ में उपभोक्ता है।
परिपक्व धनराशि को वापस करने की असफलता ने यह सिद्ध कर दिया है कि उनकी सेवा में गम्भीर अपूर्णता विद्यमान है और इसलिए परिवादीगण इस दावा को पोषणीय रखने हेतु अधिकृत है।
एक प्रकरण में प्रतिवादी ने फोटोस्टेट मशीन खरीदा किन्तु परिवादी ने यह अभिकथन किया कि इस मशीन में दोष पाये गये। हालांकि यह पैरामीटर को अवधारित करना था कि क्या परिवादी एक उपभोक्ता होने के लिए अधिनियम की धारा 2 (घ) के स्पष्टीकरण के भीतर आता था या नहीं? लेकिन परिवादी का यह मामला नहीं था कि वह स्वयं मशीन चला रही थी या उसका कर्मचारी चला रहा था, इसके अलावा जहां परिवादी के पास आय के पर्याप्त दूसरे भी खर्च थे और जहां उसका पति भी सऊदी अरब में उपार्जन कर रहा था, वहां जब जिला फोरम ने इस निष्कर्ष को लेखबद्ध किया कि परिवादी एक उपभोक्ता था, तब इसे अपीलीय आयोग एक दोषपूर्ण निर्णयादेश माना।
अधिनियम के अन्तर्गत स्वतः रोजगार शब्द को कहीं परिभाषित नहीं किया गया है और इसलिए इसे एक साक्ष्य की विषय वस्तु माना जाता है। अतः जब तक उसके ऊपर विचार करने का यह साक्ष्य नहीं होता है कि मशीन का प्रयोग, ईट के निर्माण एवं विक्रय में व्यापार व्यवसाय के लिए कर्मचारीगण या कर्मकारों की नियमित आधार पर नियुक्ति करके वाणिज्यिक प्रयोजन में भाषार्थ को समझे बिना ही अपनी जीवकोपार्जन के लिए स्वतः रोजगार के भाव में ही किया जा रहा था; तब तक इसको स्वतः रोजगार के ही भाव में समझा जायेगा।
कारण कि एक वाणिज्य सम्बन्धी प्रयोजन में ईंटों का निर्माण किया जाना तथा उनका विक्रय किया जाना भी जीविकोपार्जन करना हो सकता है बल्कि वाणिज्य सम्बन्धी कारोबार में एकमात्र जीविकोपार्जन करना यह अभिप्राय नहीं रखता है कि उसका प्रयोग वाणिज्य सम्बन्धी प्रयोजन में नहीं किया जाता है। स्वतः रोजगार शब्द इन बातों के साथ ही साथ एक पृथक् धारणा को भी संबोधित करता है अर्थात् वह अपनी जीविकोपार्जन के लिए स्वयं को रोजगार प्रदान करने निर्माण के प्रयोजनार्थ क्रप की गयी मशीन का अकेले ही प्रयोग करता है, उसके विस्तार में उसके परिवार के सदस्यगण में सम्मिलित होते हैं।
क्या वह ऐसी मशीन का प्रयोग स्वयं के लिए ह स्वयं के साथ-साथ परिवार के अन्य सदस्यों के रोजगार के लिए भी करता है, आदि ऐसे मुद्दे है जिनका निस्तारण एकमात्र साक्ष्य के आधार पर ही किया जा सकता है। इन प्रश्नों को साबित करने का भार प्रतिवादी पर होता है। अतएव, अधिकरण को इस निष्कर्ष को अभिलिखित मे में सही नहीं माना गया कि मशीन का प्रयोग प्रतिवादी द्वारा स्वतः रोजगार के प्रयोजन में किया जा रहा था और इसलिए प्रश्नगत मशीन के प्रयोग को वाणिज्य सम्बन्धी प्रयोजन में किये जा रहे निष्कर्ष को सही नहीं माना गया।
कोरेल इण्डिया लिमिटेड व अन्य बनाम शक्ति प्रेम सेट्टी, 1997 (2) सीपी आगरा 226 (राज्य आयोग) परिवादी ने छाया प्रतिलिपि का निर्माण करने वाली एक मशीन का क्रय किया। जहां परिवाद स्वयं इस अभिवचन की संपुष्टि कर दे कि परिवादी ने लाभ अर्जित करने के लिए अपने कारोबार को विस्तारित करने के प्रयोजन से छाया प्रतिलिपि निर्माणकर्ता मशीन को खरीदा या और न कि स्वतः को रोजगार प्रदान करने के प्रयोजन से, वहां प्रश्नगत मशीन का अभिनिर्धारण इस प्रकार से ही किया जाना चाहिए कि मशीन का क्रय वाणिज्य सम्बन्धी प्रयोजनों के लिए ही किया गया था। अतएव, यह अभिनिर्धारित किया गया कि इस मामले में चूंकि परिवादी को एक उपभोक्ता नहीं माना जा सकता है और इसलिए प्रश्नगत परिवाद को खारिज कर दिया जाता है।
जहां रजिस्ट्रीकरण के लिए दस्तावेज को प्रस्तुत करने वाले व्यक्ति तथा इस पर स्टाम्प ड्यूटी या रजिस्ट्रीकरण शुल्क का भुगतान करने वाले व्यक्ति को एक उपभोक्ता नहीं माना जाता है, वहीं रजिस्ट्रीकरण अधिनियम तथा स्टाम्प अधिनियम के प्रावधानों का क्रियान्वयन करने के लिए नियुक्त किये गये अधिकारीगण, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अर्थ के अन्तर्गत कोई सेवा नहीं करते हैं।
अधिनियम के खण्ड 2 (iii) एवं (iv) निश्चित रूप से इस मामले के प्रति लागू नहीं होते हैं। अतः जिस बात की अपेक्षा की जाती है वह यह है कि क्या किसी भी अनुचित व्यवसाय पद्धति को अंगीकार किया गया है? नियमानुसार 'व्यवसाय' शब्द का अभिप्राय ठीक वैसे ही होगा जैसे कि एकाधिकार और अवरोधक व्यापारिक व्यवहार अधिनियम, 1969 की धारा 369 (क) के अधीन परिभाषित किया गया है। वह प्रावधान यहाँ लागू नहीं हो सकता है, क्योंकि कंपनी शेयरों में व्यवसाय नहीं कर रही है। शेयर का अर्थ पूंजी में एक शेयर रखना होता है।
पूंजी बढ़ाने का अर्थ, व्यापार को चलाने के लिए व्यवस्थापन करना होता है। इसे किसी भी कारोबार को चालू रखने से संबंधित पद्धति नहीं माना जा सकता है। शेयरों के आवंटन हुए बिना ही पूंजी शेयरों की रचना करना, शेयरों के अस्तित्वशील होने का हेतुक नहीं होता है। अतएव इस निष्कर्ष पर पहुंचा गया कि प्रतिवादी या संघ के सदृश्य भावी विनिधानकर्ता अधिनियम के अधीन एक उपभोक्ता नहीं होता है।
एक वाद में परिवादी ने व्यावसायिक उद्देश्य के लिए एक अम्बेसडर कार खरीदी शिकायत यह थी कि कार ज्यादा तेल खाती थी तथा स्टार्ट होने में कठिनाई होती थी। कम्पनी में शिकायत की गई। विपक्षी ने इंजिन बदल दिया। इंजिन बदलने के बावजूद इंजिन को स्टार्ट होने में कठिनाई होती थी। अतः परिवाद संस्थित किया गया। विपक्षी ने आपत्ति प्रस्तुत की कि चूंकि परिवादी ने एम्बेस्डर कार को टैक्सी में चलाने हेतु अर्थात् व्यावसायिक उद्देश्य के लिए खरीदा था। अतएव वह उपभोक्ता नहीं है कोर्ट ने धारण किया कि वह उपभोक्ता नहीं था ।

