The Indian Contract Act में Bailment के कॉन्ट्रैक्ट में अचानक होने वाली घटना पर Bailee की क्या जिम्मेदारी होगी
Shadab Salim
11 Sept 2025 9:39 AM IST

कुछ घटनाएं ऐसी होती है जो प्राकृतिक होती है। उन घटनाओं पर मनुष्य का कोई निर्णय नियंत्रण नहीं होता है। यह बिल्कुल अप्रत्याशित घटना होती है, इस प्रकार की अप्रत्याशित घटना के घटित होने के परिणामस्वरूप कोई हानि हो जाती है तो ऐसी स्थिति में उक्त प्रकार की क्षति के लिए प्रतिवादी दायीं होगा परंतु इसके लिए एक सिद्धांत है। प्रतिवादी केवल उन्हीं हानियों के लिए उत्तरदायीं ठहराया जा सकता है जिसके अंतर्गत वह-
अपने प्रयास से हानि को बचा सकता था-
जिनका सुरक्षित कर लिया जाना युक्तिसंगत प्रयास के द्वारा उचित और न्यायसंगत हो-
प्रतिवादी ने यथोचित प्रयास किया हो-
प्रतिवादी के द्वारा प्रयास करने के बावजूद भी वादी के माल को हानि से बचाया जाना संभव न रहा हो-
प्रतिवादी यदि प्रयास किया गया था किंतु विधि व्यवस्था के निर्धारित होने से उनका प्रयास सार्थक हुआ हो-
ब्रिटिश एंड फॉरेन इंश्योरेंस कंपनी बनाम इंडिया जनरल नेवीगेशन एंड रेलवे कंपनी 1910 कोलकाता 28 के मामले में कहा गया है कि जहां देवी प्रकोप जैसे भूकंप, अतिवृष्टि, सूखा, बाढ़, विद्युत आघात एवं अन्य प्राकृतिक आपदा हो वहां पर प्रतिवादी वादी के माल को हुई हानि के लिए उत्तरदायीं नहीं होता है।
इसी प्रकरण में यह भी कहा गया है कि किसी प्रशासनिक अथवा सरकारी विधि व्यवस्था संबंधित फेरबदल, शासन संबंधी नीतियों के फेरबदल के परिणाम यदि किसी प्रकार की हानि होती है तो उसमें भी प्रतिवादी वादी की नुकसानी के लिए उत्तरदायीं नहीं होता है।जैसे कि अभी हाल ही में कोरोना संक्रमण के कारण लॉक डाउन की कार्यवाही की गई तथा इसमें अनेकों नुकसान भी हुए हैं, कोई भी इस प्रकार के लॉक डाउन के अंतर्गत होने वाली नुकसानी के लिए उत्तरदायीं नहीं होता है।
कोई भी Bailee जिसे माल उपनिहित किया गया है उक्त माल की देखभाल करने हेतु दायीं होता है। यदि वह माल खो जाता है तो ऐसी स्थिति में प्रसारित उपधारणा की जाती है कि उक्त संदर्भ में निश्चित कोई लापरवाही बरतीं गई होगी।
रामलाल बनाम मोरिया एंड कंपनी 1899 (22) इलाहाबाद 164 के प्रकरण में न्यायाधीश द्वारा कहा गया है यदि कोई कार्य क्षति इस प्रकार की है कि वह घटनाओं के सामान्य अनुक्रम में हो तो ऐसी स्थिति में यदि Bailee द्वारा उक्त प्रकार की क्षति को निर्धारित करने के यथासंभव प्रयास किए है तो वह उक्त क्षति के लिए दायीं न होगा किंतु यदि उसने ऐसा उचित रूप से न तो कोई प्रयास किया था कि उक्त हानि को रोका जा सकें और न ही उसका वैसा कोई आशय हो कि वह हानि को रोकना चाहता है या हानि को नियमित करना चाहता है तो ऐसी स्थिति में वह वादी के माल को क्षति के लिए दायीं होगा।
यहां पर यह समझना चाहिए कि यदि अपने ध्यान में कोई क्षति होती है तो कोर्ट सर्वप्रथम तो यह उपधारणा करके चलता है कि कोई न कोई लापरवाही बरतीं गई होगी। अब यदि Bailee सिद्ध कर देता है कि उसने क्षति को रोकने के समस्त प्रयास किए परंतु फिर भी क्षति हो गई तो ऐसी परिस्थिति में उत्तरदायीं नहीं होगा। क्षति को रोकने के प्रयासों का सिद्ध करने का भार Bailee के ऊपर होता है।
जगदीश चंद्रा बनाम पी एन बी एआईआर 1998 दिल्ली 266 के प्रकरण में Bailee की उपेक्षा के कारण अथवा Bailee की असावधानी के कारण वादी के माल की क्षति होती है तो ऐसी स्थिति में प्रतिवादी को उक्त माल की नुकसानी के संदर्भ में दायीं ठहराया जाएगा।
जहां उपनिधाता और Bailee संविदा के अंतर्गत यह उपबंध कर सकते हैं की Bailee की असावधानी के कारण होने वाली हानि के लिए वह दायीं नहीं होगा अर्थात वह दायित्व से मुक्त होगा अर्थात विशेष संविदा द्वारा Bailee अपनी असावधानी के कारण होने वाली हानि से छुटकारा प्राप्त कर सकता है परंतु इस प्रकार की एक विशेष संविदा होना चाहिए।

