जब नहीं सुने पुलिस तब क्या करे फरियादी?
Shadab Salim
25 Sept 2024 9:55 AM IST
किसी भी पीड़ित को फरियादी भी कहा जाता है, ऐसा फरियादी जिसके साथ कोई अपराध कारित किया गया है और जो पुलिस के पास आरोपी को सज़ा दिलवाए जाने की फरियाद लेकर आया है। ऐसा पीड़ित व्यक्ति सबसे पहले अपने साथ होने वाली घटना के संबंध में शिकायत करने उस क्षेत्र के थाने में जाता है जहां पर उसके साथ अपराध हुआ है। जैसा कि हमें यह जानकारी होना चाहिए कोई भी प्रदेश की सभी जगह किसी न किसी थाना क्षेत्र के अंतर्गत बंटी होती है। जब किसी व्यक्ति के साथ कोई भी अपराध घटता है तब उसकी शिकायत उस थाने के थाना प्रभारी के समक्ष की जाती है।
पुलिस को शिकायत
पुलिस थाना के थाना प्रभारी के समक्ष ऐसी शिकायत एक लिखित आवेदन में करना चाहिए। ऐसे आवेदन की दो प्रतियां होनी चाहिए। एक प्रति पुलिस थाना प्रभारी के समक्ष जमा की जानी चाहिए और दूसरी प्रति पर रिसीविंग लेना चाहिए अर्थात थाने की सील लगाई जाना चाहिए, पुलिस थाना के बाबू की हस्ताक्षर होना चाहिए। ऐसी रिसिविंग लेने के बाद पुलिस का यह कर्तव्य है कि वह मामले में जांच कर उसकी परिस्थितियों को देखकर अगर मामला संज्ञेय है तो उसमें भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता के अंतर्गत एक एफआईआर दर्ज करें।
कभी-कभी होता यह है कि पुलिस गंभीर से गंभीर मामले में भी एफआईआर दर्ज नहीं करती है। पुलिस द्वारा ऐसा भ्रष्टाचार या फिर अपने थाने के रिकॉर्ड को अच्छा बनाए रखने के लिए किया जाता है। आए दिन यह देखने में आता है कि लोग एफआईआर करवाने के लिए परेशान होते रहते हैं। पुलिस द्वारा एफआईआर दर्ज नहीं की जाती है। जब कभी हम पुलिस को एक लिखित शिकायत आवेदन देते हैं और पुलिस उस लिखित शिकायत आवेदन पर कार्रवाई करती नहीं है तब इस परेशानी से सामना करना पड़ता है। पहली चीज तो यह है कि किसी भी पीड़ित को ऐसा लिखित आवेदन देने की भी आवश्यकता नहीं है बल्कि एक पुलिस अधिकारी स्वयं उसकी बताई गई बातों को लिखता है पर फिर भी यह बेहतर होता है कि कोई भी शिकायत लिखित आवेदन के जरिए की जाए।
जब पुलिस एफआईआर दर्ज नहीं करे
कभी-कभी यह भी देखने में आता है कि पुलिस द्वारा आवेदन लिया ही नहीं जाता है और पीड़ित को उल्टा डांट डपट कर थाने से भगा दिया जाता है। इस स्थिति में कानून में किसी ने पीड़ित व्यक्ति को अन्य अधिकार भी दिए हैं।
पुलिस अधीक्षक को करें शिकायत
सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक मामले में कहा है कि अगर क्षेत्र के थाना प्रभारी द्वारा शिकायत दर्ज नहीं की जाए तब ऐसी स्थिति में शिकायतकर्ता अपनी शिकायत नगर के पुलिस अधीक्षक के समक्ष दर्ज करवाएं तथा पुलिस अधीक्षक को इस मामले से अवगत करवाएं। पुलिस अधीक्षक के समक्ष जाते समय अपनी शिकायत के आवेदन की 3 प्रतियां साथ लेकर जाएं जिसमें एक प्रति पुलिस अधीक्षक के समक्ष जमा की जाएगी, दूसरी प्रति अधीक्षक के कार्यालय में जमा रहेगी तीसरी प्रति शिकायतकर्ता को रिसीविंग लेकर एसपी कार्यालय की सील हस्ताक्षर करवा कर ली जाए।
अमूमन यह देखने में आता है कि जब कभी पुलिस अधीक्षक के समक्ष अपने साथ हुई घटना की ऐसी कोई जानकारी पेश की जाती है तब पुलिस अधीक्षक मामले में कार्यवाही करने हेतु क्षेत्र के थाना प्रभारी को निर्देश देते हैं तथा एफआईआर दर्ज करने का आदेश कर देते हैं पर अनेक मामले ऐसे होते हैं जहां पुलिस अधीक्षक कार्यालय में भी व्यक्ति की सुनवाई नहीं होती और उसकी शिकायत पर एफआईआर दर्ज नहीं की जाती है। ऐसी स्थिति में भी व्यक्ति के पास कानूनी अधिकार हैं।
जब एसपी एफआईआर दर्ज न करें
अगर पुलिस अधीक्षक शिकायत का आवेदन लेने से मना कर दें या फिर आवेदन लेकर एक निश्चित समय के भीतर उस पर कोई कार्यवाही न करें ऐसी स्थिति में कोर्ट का सहारा लिया जाता है। भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 175 (3) यहां पर किसी भी पीड़ित को अधिकार देती है। इस धारा के अनुसार अगर संबंधित थाना प्रभारी और पुलिस अधीक्षक द्वारा कार्यवाही नहीं की जाए तब एक न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी जो उस थाना क्षेत्र के मामले के लिए नियुक्त किया गया है उस मजिस्ट्रेट के समक्ष आवेदन किया जाए पर ऐसा आवेदन करने के पूर्व रजिस्टर्ड डाक द्वारा अपने शिकायत आवेदन की एक प्रति एसपी कार्यालय में भेजी जानी चाहिए। उस प्रति की डाक द्वारा भेजे गए आवेदन की रसीद के साथ 175 (3) का आवेदन पत्र प्रस्तुत किया जाना चाहिए।
धारा 175 (3)
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 156 (3) एक न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी को यह अधिकार देती है कि वह किसी भी मामले में पुलिस को एफआईआर दर्ज करने हेतु आदेश कर सकता है। ऐसा आवेदन पुलिस को पार्टी बनाकर प्रथम श्रेणी कोर्ट में प्रस्तुत किया जाता है। कोर्ट सबूतों का अवलोकन करती है गवाहों को देखती है और फिर मामले में एफआईआर दर्ज करने और उसके बाद अनुसंधान करने का आदेश कर देती है। अगर मजिस्ट्रेट द्वारा ऐसा आदेश कर दिया जाता है तब संबंधित पुलिस थाना प्रभारी मामले में एफआईआर दर्ज कर लेते हैं और फिर मामले का अन्वेषण शुरू किया जाता है।
अगर मजिस्ट्रेट भी खारिज कर दे तब क्या करें
अगर प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट ऐसे आवेदन को खारिज कर दे तथा एफआईआर दर्ज करने से इंकार कर दे तब ऐसी स्थिति में उस आदेश को पुनरीक्षण के लिए कोर्ट ऑफ सेशन के समक्ष लगाया जा सकता है। कोर्ट ऑफ सेशन ऐसे आदेश की जांच करता है और यह देखता है कि कहीं अन्याय तो नहीं हुआ है। सबूतों के होते हुए भी एफआईआर दर्ज नहीं की जा रही है यह सब देखने के बाद अगर मामला बनता है तब सेशन कोर्ट आदेश को पलट देता है। अगर मामला नहीं बनता है तो सेशन कोर्ट भी ऐसे पुनरीक्षण को निरस्त कर देता है। ऐसी याचिका हाई कोर्ट के समक्ष भी लगाई जा सकती है जहां याचिकाकर्ता हाई कोर्ट से यह निवेदन कर सकता है कि उसके मामले में न्यायिक मजिस्ट्रेट और सत्र न्यायालय दोनों ने ही किसी प्रकार की सुनवाई नहीं की है तथा मामला दर्ज किया जाए।