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जानिए क्या है मुस्लिम लॉ के अंतर्गत वक़्फ़ (Waqf) की अवधारणा

Shadab Salim
19 May 2020 6:45 AM GMT
जानिए क्या है मुस्लिम लॉ के अंतर्गत वक़्फ़ (Waqf) की अवधारणा
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Waqf involves donating a building, plot of land or other assets for Muslim religious or charitable purposes with no intention of reclaiming the assets. A charitable trust may hold the donated assets.

वक़्फ़ का मुस्लिम लॉ के अंतर्गत एक महत्वपूर्ण स्थान है। वक़्फ़ के माध्यम से भी संपत्तियों का अंतरण किया जाता है। वक़्फ़ का नाम आते ही सर्वप्रथम हमारे मस्तिष्क में खैरात, ज़कात, दान इत्यादि शब्द कौंधने लगते हैं। वक़्फ़ का संबंध दान से तो है परंतु यह दान अल्लाह के वास्ते दिया जाता है। इस दान का लाभ जनसाधारण को होता है, परंतु इस दान का मालिक अल्लाह को बनाया जाता है।

आवश्यक नहीं कि लोक वक़्फ़ अर्थात समस्त जनता के लिए ही वक़्फ़ हो, कोई वक़्फ़ निजी कुछ लोगो के लिए भी बनाया जा सकता है।

वक़्फ़ का स्थान मुस्लिम विधि में हिबा के स्थान से भिन्न है। हिबा में किसी संपत्ति का मालिक अल्लाह को नहीं बनाया जाता है और हिबा में संपत्ति को प्राप्त करने वाला अपनी इच्छा के अनुसार संपत्ति का कुछ भी कर सकता है, जैसे उसका विक्रय, उपभोग, बंधक इत्यादि परंतु वक़्फ़ के मामले में किसी भी संपत्ति को जब कोई व्यक्ति वक़्फ़ करता है तो अल्लाह के लिए संपत्ति को वक़्फ़ करता है।

संपत्ति से लाभ जनसाधारण को होता है परंतु वह जनसाधारण उस संपत्ति का मालिक नहीं होता है।

कुरान शरीफ के अंदर यह हुक्म दिया गया है कि जो भी संपत्ति हमारे पास है उसमें एक हिस्सा भिखारियों और गरीबों का भी है।

कुरान में स्पष्ट वक़्फ़ का नियम तो नहीं मिलता है परंतु ऐसी बहुत सी आयत हैं जिन आयत को वक़्फ़ से संबंधित माना जाता है।

भारत में वक़्फ़ संबंधी नियमों में अबू यूसुफ की वक़्फ़ पर दी गयी अवधारणा को हनफ़ी विधि में मान्य किया गया है। एक जगह पर अबू यूसुफ लिखते हैं कि-

" संपत्ति को सर्वशक्तिमान ईश्वर के स्वामित्व के अंतर्गत स्थित कर देना तथा उसके लाभ या उत्पादों को मानव जाति के लाभ के लिए लगाना यह वक़्फ़ है।"

वक़्फ़ का स्वामित्व ईश्वर में निहित हो जाता है। वक़्फ़ का अधीक्षक, प्रबंधक या रक्षक मुतवल्ली कहलाता है।

वक़्फ़ के आवश्यक तत्व

किसी संपत्ति का स्थाई समर्पण

मान्य वक़्फ़ का पहला आवश्यक तत्व यह की संपत्ति का स्थाई समर्पण होना चाहिए। कोई भी संपत्ति स्थाई तौर पर ईश्वर को समर्पित कर देना चाहिए। मुस्लिम विधि में धार्मिक पवित्र और खैराती समझे जाने वाले प्रयोजनों के लिए संपत्ति के उपभोग का एक सारवान समर्पण होना वक़्फ़ का एक आवश्यक तत्व है।

अबू यूसुफ के अनुसार किसी भी संपत्ति को वक़्फ़ करने के लिए उस संपत्ति के लिए मुतवल्ली की नियुक्ति आवश्यक नहीं है। केवल वक़्फ़ की नीयत (इरादा) कर लेना भर ही वक़्फ़ को पूर्ण कर देगा।

छेदीलाल मिश्रा बनाम सिविल जज (2007) का एक मामला है। इस वाद में सुप्रीम कोर्ट ने निर्धारित किया कि यदि एक बार वक़्फ़ उत्पन्न कर दी जाती है तो वह हमेशा वक़्फ़ रहती है। उसकी प्रकृति में मुतवल्ली के लिए अथवा किसी अन्य व्यक्ति द्वारा बदलाव नहीं लाया जा सकता। वक़्फ़ में वाकिफ की स्वामित्व समाप्त होकर ईश्वर में निहित हो जाती है। वक़्फ़ की वैधता पर प्रश्न उठाया जा सकता है यदि यह सिद्ध कर दिया जाए कि वाकिफ़ वक़्फ़ के द्वारा अपने दायित्व से भागना चाहता है।

इस्लाम धर्म में अकीदत रखने वाला व्यक्ति

केवल इस्लाम धर्म में अकीदत रखने वाला व्यक्ति ही वक़्फ़ कर सकता है। कोई भी ऐसा व्यक्ति इस्लाम धर्म में अकीदत नहीं रखता है और इस्लाम धर्म का अनुसरण करने वाला नहीं है तो उसके द्वारा दिया गया दान, खैरात वक़्फ़ की श्रेणी में नहीं आता है। वक़्फ़ के लिए व्यक्ति का मुसलमान होना आवश्यक है, क्योंकि वक़्फ़ में संपत्ति को ईश्वर के समर्पण में रख दिया जाता है और संपत्ति का स्वामित्व ईश्वर को सौंप दिया जाता है।

मुस्लिम विधि द्वारा मान्य किसी प्रयोजन के लिए

वक़्फ़ का यह आवश्यक तत्व है कि वह मुस्लिम विधि के अंतर्गत किसी मान्य प्रयोजन के लिए किया जाना चाहिए। कोई भी वक़्फ़ ऐसे काम के लिए नहीं किया जा सकता जिसे इस्लाम द्वारा निषिद्ध किया गया है। वक़्फ़ मान्यकारी अधिनियम 1913 की धारा (3) वक़्फ़ के कुछ प्रावधानों का उल्लेख करती है।

इस धारा के अनुसार मुस्लिम विधिवेत्ताओ ने कुछ मद बताए हैं, जिनके प्रायोजन के लिए वक़्फ़ किया जा सकता है।

मस्जिद और नमाज के संचालन के लिए इमामो का उपबंध।

अली मुर्तुज़ा का जन्म उत्सव।

इमामबाड़ो की मरम्मत।

ख़ानक़ाहों का संरक्षण।

मस्जिदों में चिराग जलाना।

सार्वजनिक स्थानों और निजी मकानों में कुरानखानी।

गरीब रिश्तेदारों आश्रितों का भरण पोषण।

फकीरों को दान।

ईदगाह को दान।

कालेजों को दान और कॉलेजों में शिक्षा देने के लिए अध्यापकों के लिए उपबंध।

पुल और सराय।

मक्का, हज करने जाने के लिए गरीबों की मदद।

मोहर्रम के महीने में ताज़िए रखना और मोहर्रम में धार्मिक जुलूस के लिए ऊंट और दुलदुल का उपबंध।

संस्थापक और उसके वंश के लोगों का मृत्यु दिवस बनाना। (यहां पर वक़्फ़ के संस्थापक का जिक्र है)

कदम शरीफ की रस्म अदा करना।

मक्का में यात्रियों के लिए कोबेटो यानी कि बिना पैसे के भोजनालय बनवाना या सराय खाने बनवाना।

संस्थापक और उसके परिवार के सदस्यों का वार्षिक फ़ातिहा करना।

दीर्घकाल तक लोगों जहां ज़ियारत के लिए जाते हैं, उस पीर की दरगाह पर मजार के लिए संपत्ति लगाना और उर्स करना।

वक़्फ़ का पंजीयन

भारतीय रजिस्ट्रेशन अधिनियम 1908 के अधीन 100 रुपए या उससे अधिक मूल्य की स्थावर संपत्ति का वक़्फ़ दस्तावेज द्वारा किया जाना चाहिए।

मोहम्मद रुस्तम अली बनाम मुश्ताक हुसैन 1920 के मामले में यह तय हुआ है कि कोई भी वक़्फ़ रजिस्ट्रेशन के माध्यम से होना चाहिए।

वर्तमान में कोई भी स्थावर संपत्ति का वक़्फ़ पंजीयन के माध्यम से ही होता है, जो पंजीयन तैयार किया जाता है उसे वक़्फ़नामा कहते है।

वक़्फ़ कैसे किया जाता है

मुस्लिम विधि में वक़्फ़ के अलग-अलग रीतियां बतायी हैं और चार रीति के आधार पर वक़्फ़ किया जाता है।

1) जीवित लोगों के बीच किसी कार्य के द्वारा।

2) वसीयत के द्वारा।

3) मृत्यु कारक रोग के पैदा होने पर (मर्ज़ उल मौत)

4) स्मरणातीत उपयोग के द्वारा।

स्मरणातीत का अर्थ यह है कि कोई स्पष्ट वक़्फ़ नहीं किया गया है परंतु कोई संपत्ति एक लंबे समय से अनिश्चितकाल से वैसे समय से जिसका याद किया जाना संभव नहीं है वक़्फ़ के मान्य प्रयोजन में काम आ रही है। जैसे कोई संपत्ति कब्रिस्तान के रूप में उपयोग लायी जा रही है तो ऐसी संपत्ति को वक़्फ़ मान लिया जाता है।

मुतवल्ली

मुस्लिम विधि में वक़्फ़ की अवधारणा में मुतवल्ली का महत्वपूर्ण रोल है। वक़्फ़ के प्रबंधक या अधीक्षक को मुतवल्ली कहते है। मुतवल्ली वक़्फ़ का मालिक नहीं होता है वह केवल प्रबंधक या अधीक्षक होता है।

मुस्लिम लॉ के अंतर्गत वक़्फ़ की गयी संपत्ति के स्वामित्व का अधिकार मुतवल्ली में नहीं रहता है।

मुतवल्ली को वक़्फ़ की संपत्ति में स्वामित्व नहीं प्राप्त होता है, अधीक्षक या प्रबंधक मात्र होता है। उसका वक्फ संपत्ति में कोई लाभ नहीं होता है, वह केवल अल्लाह की रज़ा और मज़हब ए इस्लाम की खिदमत की नीयत से काम करता है।

मोहम्मद साहब गफ्फार साहब बनाम दीन गनी मोहम्मद के मामले में निर्धारित हुआ है कि-

" यदि कोई व्यक्ति सम्मिलित रूप से मुतवल्ली हो तो विपरीत परस्थिति में हलफनामे में पर्याप्त निर्देश के अभाव में एक मुतवल्ली की मृत्यु होने पर उसका पद शेष मुतवल्ली लेंगे।"

मुतवल्ली कौन हो सकता है

कोई भी व्यक्ति जो स्वास्थ्य चित्त तथा वयस्क हो और किसी विशेष वक़्फ़ के अंतर्गत आवश्यक कर्तव्यों का पालन कर सकता हो मुतवल्ली नियुक्त किया जा सकता है।

मुतवल्ली पद के लिए कोई लिंग या धर्म कोई अवरोध उत्पन्न नहीं करता है। किसी भी धर्म की स्त्री या पुरुष मुतवल्ली नियुक्त किए जा सकते हैं। मुतवल्ली को वक़्फ़ के अंतर्गत विशेष कर्तव्य का पालन करने में समर्थ होना आवश्यक है, जैसे कोई गैर मुस्लिम और स्त्री कुछ धार्मिक कर्तव्य का पालन नहीं कर सकते। सज्जादानशीन, दरगाह में मुजावर का कार्य, मस्जिद में इमाम का कार्य आदि इस प्रायोजना के लिए किसी वक़्फ़ में कोई गैर मुस्लिम या स्त्री मुतवल्ली नहीं नियुक्त किए जा सकते क्योंकि सज्जादानशीन, मुजावर और इस्लाम की शिक्षा में इमाम कोई मर्द ही हो सकता है।

भारत में एक विदेशी वक़्फ़ संपत्ति का मुतवल्ली नियुक्त नहीं किया जा सकता।

मुतवल्ली की नियुक्ति

वक़्फ़ में मुतवल्ली की नियुक्ति महत्वपूर्ण होती है। तात्विक प्रश्न यह है कि ऐसी नियुक्ति किसके द्वारा की जाएगी। मुस्लिम विधि में कुछ ऐसी मद बताई हैं, जिनसे मुतवल्ली की नियुक्ति कर सकते हैं, वे निम्न हैं-

1) संस्थापक।

2) संस्थापक की वसीयत के द्वारा।

3) अपनी मृत्यु शैया पर मुतवल्ली जिसे नियुक्ति दे।

4) न्यायालय।

5) वक़्फ़ बोर्ड।

यह पांच मद मुतवल्ली की नियुक्ति करते हैं। इसमें महत्वपूर्ण बात यह है कि नियुक्ति का सबसे पहला अधिकार पहली मद के व्यक्ति अर्थात संस्थापक को है यदि संस्थापक नहीं है तो फिर दूसरी मद नियुक्ति का अधिकार अर्जित करती है यदि पहली मद का व्यक्ति है तो दूसरी अपवर्जित हो जाती है।

वर्तमान में जो प्राचीन वक़्फ़ है, पुराने राजा महाराजाओं के समय की संपत्तियां है, ऐसी सभी संपत्तियों को वक्फ बोर्ड के अधीन कर दिया गया है।

जैसे पुराने कब्रिस्तान, पुराने मज़ार, पुरानी दरगाह, पुरानी मस्ज़िद, पुरानी खानकाह इत्यादि ऐसी परिस्थिति में इन संपत्तियों का प्रबंधन वक्फ बोर्ड के हाथ में आ गया है। वक़्फ़ बोर्ड लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार के अधीन नियुक्त किया जाता है तो ऐसे पुराने वक़्फ़ में वक्फ बोर्ड द्वारा ही मुतवल्ली की नियुक्ति की जाती है।

वर्तमान में वक्फ अधिनियम 1995 के प्रावधान वक़्फ़ से संबंधित मामलों में लागू हो रहे है। यह अधिनियम भारत में वक़्फ़ संबंधी विधि का सर्वोत्तम अधिनियम है। वर्तमान में इसी अधिनियम के माध्यम से केंद्रीय वक्फ बोर्ड और राज्यों के वक़्फ़ बोर्ड इत्यादि की नियुक्तियां की जा रही है तथा वक़्फ़ की संपत्तियों को सुरक्षित किया जा रहा है।

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