गाड़ी चोरी होने पर जब इंश्योरेंस कंपनी क्लेम नहीं दे तब क्या है कानून?
Shadab Salim
16 Jan 2022 12:00 PM IST
इंश्योरेंस अपनी आर्थिक सुरक्षा के उद्देश्य से किया जाता है। वाहन व्यक्ति की एक संपत्ति होती है जहां उसे अपनी संपत्ति से जुड़े हुए सभी अधिकार प्राप्त होते हैं। मोटर व्हीकल एक्ट किसी भी वाहन का आवश्यक इंश्योरेंस किए जाने का निर्देश देता है।हालांकि वहां पर ऐसा इंश्योरेंस थर्ड पार्टी होता है अर्थात कोई भी ऐसे वाहन का इंश्योरेंस होना चाहिए जिससे किसी दूसरे को नुकसान होने की संभावना है।
मोटर व्हीकल एक्ट के अंतर्गत जिस व्यक्ति को वाहन से नुकसान होता है वह तो दावा कर सकता है इसी के साथ एक व्यवस्था और है जहां पर किसी व्यक्ति को ऐसा नुकसान होता है जो वाहन स्वामी से संबंधित होता है।
जैसे कि कोई दुर्घटना में किसी व्यक्ति का वाहन क्षतिग्रस्त हो जाता है या फिर किसी चोरी में किसी व्यक्ति का वाहन चला जाता है। ऐसे बीमे को आवश्यक नहीं बनाया गया है पर वाहन मालिक को ऐसा बीमा भी करवा कर रखना चाहिए जिससे अगर किसी दुर्घटना में उसका वाहन क्षतिग्रस्त हो जाता है या फिर चोरी हो जाता है तब उसे उसकी नुकसानी की क्षतिपूर्ति मिल सके।
वाहन चोरी होने पर बीमा कैसे प्राप्त करें
कोई भी बीमा दो शर्तों पर हो सकता है जिसमें एक शर्त अपने वाहन से किसी दूसरे व्यक्ति को होने वाले नुकसान के बारे में भी करते होती हैं और दूसरी शर्त यह होती है कि जिस व्यक्ति का वाहन है उस व्यक्ति को कोई नुकसान होता है तब वह भी बीमा प्राप्त करने का अधिकारी होता है।
यहां पर दूसरी वाली शर्त के संबंध में उल्लेख किया जा रहा है जिसे फर्स्ट पार्टी बीमा कहा जाता है। फर्स्ट पार्टी बीमा में क्षतिपूर्ति उस व्यक्ति को मिलती है जो व्यक्ति वाहन का स्वामी होता है इसमें शर्त यह होती है कि अगर वाहन चोरी होता है या फिर उसमें किसी दुर्घटना से कोई टूट-फूट होती है तब उसकी क्षतिपूर्ति बीमा कंपनी द्वारा की जाती है इसके लिए एक साधारण आवेदन बीमा कंपनी के समक्ष करना होता है।
पुलिस रिपोर्ट का महत्व
जब कभी वाहन चोरी होता है तब उसकी रिपोर्ट संबंधित पुलिस थाना क्षेत्र के अंतर्गत फ़ौरन की जानी चाहिए। शीघ्र से शीघ्र पुलिस थाने के अधिकारियों को इस बात से अवगत कराया जाना चाहिए कि उनके थाना क्षेत्र के अंतर्गत उसके स्वामित्व का वाहन चोरी चला गया है। पुलिस इन प्रकरण में अचानक रिपोर्ट दर्ज नहीं करती है बल्कि पहले जांच करती है जांच के पश्चात यह पाती है कि उनके थाना क्षेत्र से वाकई कोई वाहन चोरी गया है तब पुलिस दंड प्रक्रिया संहिता 154 के अंतर्गत रिपोर्ट दर्ज कर लेती है। यह रिपोर्ट कंप्यूटर पर होती है।
इस रिपोर्ट के दर्ज होने के बाद पुलिस मामले का अनुसंधान करती है और वाहन चोर को पकड़ने का प्रयास करती है पर जब कभी ऐसा वाहन चोर मिलता नहीं है तब पुलिस उस मामले में अपनी खात्मा रिपोर्ट प्रस्तुत कर देती है जिसे क्लोजर रिपोर्ट कहा जाता है।
क्लोजर रिपोर्ट के बाद की प्रक्रिया
जब वाहन के मालिक को न्यायालय में प्रस्तुत की गई क्लोजर रिपोर्ट और उस पर न्यायालय का आदेश प्राप्त हो जाती है तब वाहन का ऐसा मालिक इन दस्तावेजों को लेकर बीमा कंपनी के समक्ष उपस्थित होता है और एक साधारण आवेदन के माध्यम से बीमा कंपनी को इस बात की जानकारी देता है कि पुलिस ने मामले में अनुसंधान कर लिया है और अनुसंधान के बाद पुलिस को चोरी गया वाहन मिला नहीं है। इस स्थिति में वाहन मालिक बीमा कंपनी से उसके चोरी गए वाहन के संबंध में क्लेम राशि प्राप्त करने का अधिकारी है।
सामान्य रूप से तो बीमा कंपनी जिस भी मामले में पुलिस क्लोजर रिपोर्ट प्रस्तुत कर देती है। क्लेम की राशि वाहन के मालिक को प्रदान कर देती है पर अगर बीमा कंपनी द्वारा ऐसी राशि किसी अन्य कारण से भी नहीं दी जाती है तब वाहन मालिक के पास कानूनी अधिकार होता है कि वे न्यायालय के समक्ष जाए और जाकर न्यायालय से ही कहे कि उसके द्वारा वाहन का बीमा करवाया गया और बीमा की शर्त को बीमा कंपनी द्वारा माना नहीं जा रहा है।
क्या है कानूनी रास्ता
एक बीमा कंपनी और वाहन के स्वामी इन दोनों का रिश्ता आपस में सेवादाता और ग्राहक का है इसलिए इस मामले में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 लागू होता है। जब कभी बीमा कंपनी ऐसा इंश्योरेंस देने से इंकार कर देती है जिस मामले में पुलिस द्वारा क्लोजर रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी गई है और यह कह दिया गया है कि ढूंढने का प्रयास करने के बाद भी वाहन नहीं प्राप्त हुआ तब ग्राहक कंज़्यूमर फोरम में इसकी शिकायत कर सकता है।
दुर्घटना में होने वाली क्षति से संबंधित प्रकरण वाहन दुर्घटना क्लेम के न्यायालय में जाता है जो आमतौर से जिला न्यायालय में ही लगता है पर फर्स्ट पार्टी इंश्योरेंस के मामले कंज़्यूमर फोरम के समक्ष जाते हैं।कंजूमर फोरम में किसी भी मामला संस्थित करने हेतु बहुत कम कोर्ट फीस देना होती है और शीघ्र से शीघ्र पक्षकारों को न्याय दे दिया जाता है।
कंज़्यूमर फोरम मामले में यह देखती है कि आखिर बीमा कंपनी द्वारा किसी व्यक्ति को इंश्योरेंस की राशि देने से इंकार क्यों किया गया है। अगर कोई कारण अनैतिक होता है जहां पर इंश्योरेंस की शर्तों का उल्लंघन किया जाता है तब फोरम इंश्योरेंस कंपनी को यह आदेश देती है कि उसे ऐसी इंश्योरेंस राशि देना पड़ेगी क्योंकि वह अपनी शर्तों से बाध्य है और उसने इन शर्तों के आधार पर किसी ग्राहक को कोई बीमा बेचा है और उससे प्रीमियम की राशि प्राप्त की है।
इस प्रकार वाहन चोरी के मामले में इंश्योरेंस कंपनी से क्लेम प्राप्त किया जा सकता है। यह क्लेम केवल चोरी ही नहीं बल्कि किसी वाहन में टूट-फूट होने पर भी प्राप्त किया जा सकता है।