जानिए रिलीज डीड क्या होती है
Shadab Salim
12 Jan 2022 6:13 PM IST
रिलीज डीड जिसे हिंदी में अधिकार त्याग कहा जाता है का प्रचलन आज के समय में अधिक हो गया है। संपत्ति के मामले में कानून ने रिलीज डीड जैसी व्यवस्था भी दी है। रिलीज डीड ऐसी संपत्ति के संबंध बनाई जाती है जो किसी व्यक्ति को वारिस नाते प्राप्त होती है। वारिस नाते प्राप्त होना उस संपत्ति को कहा जाता है जो किसी दूसरे व्यक्ति की होती है और किसी तीसरे व्यक्ति को ऐसी संपत्ति उत्तराधिकार में मिलती है।
जैसे कि एक व्यक्ति की कोई संपत्ति है उस व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है और वह व्यक्ति अपने जीवन काल में उस संपत्ति के संबंध में कोई निर्णय नहीं लेता है और न ही कोई वसीयत करता है। ऐसी स्थिति में उस व्यक्ति की वह संपत्ति उसके उत्तराधकरियों को न्यस्त हो जाती है उसके जो भी उत्तराधिकारी होते हैं वह संपत्ति के मालिक हो जाते हैं।
कब बनाई जाती है रिलीज डीड
ऐसी डीड उस स्थिति में बनाई जाती है जब किसी संपत्ति के एक से ज्यादा वारिस हो वहां पर जब दोनों ही वारिसों के बीच किसी प्रकार का कोई विवाद नहीं रहता है तब ऐसी स्थिति में कोई वारिस किसी दूसरे वारिस के पक्ष में ऐसी रिलीज डीड कर देता है जिसमें इस बात का उल्लेख होता है कि उसे वह संपत्ति वारिस नाते प्राप्त हुई है और उसके द्वारा उस संपत्ति को किसी दूसरे वारिस के पक्ष में छोड़ा जा रहा है। ऐसी रिलीज डीड में बदले में कोई रकम दी जाती है या फिर निशुल्क भी हक त्याग कर दिया जाता है।
जैसा कि संपत्ति प्राप्त करने के प्रारूप है उन प्रारूपों में एक प्रारूप हक त्याग भी है। हक त्याग किसी भी व्यक्ति को किसी संपत्ति पर अधिकार देता है। एक हक त्याग एक सेल डीड के समान ही होता है पर यहां ध्यान देना चाहिए कि हक त्याग केवल नजदीकी रिश्तेदारी में ही होता है और उन्हीं लोगों के बीच में होता है जो दोनों किसी एक ही संपत्ति के वारिस हो।
यह आवश्यक नहीं है कि किसी संपत्ति के दो ही वारिस हो यह केवल बात समझाने के उद्देश्य से कहा गया है, किसी भी संपत्ति के अनेक वारिस हो सकते हैं। ऐसी रिलीज डीड आमतौर पर पैतृक संपत्ति के मामले में बनाई जाती है जहां किसी एक प्रॉपर्टी के बहुत सारे वारिस होते हैं जिन्हें प्रॉपर्टी उत्तराधिकार में मिलती है उनके द्वारा ऐसी प्रॉपर्टी को खरीदा नहीं जाता है।
कैसे बनाए रिलीज डीड
वैसे तो किसी रिलीज डीड को बनाने के लिए किसी वकील की सहायता ली जा सकती है पर पक्षकार ऐसी डीड स्वयं भी बना सकते हैं इसके लिए कोई बाध्यता नहीं है। ऐसी रिलीज डीड को रजिस्ट्रेशन एक्ट की धारा 17 के अंतर्गत रजिस्टर्ड करवाना होता है क्योंकि भारतीय रजिस्ट्रेशन एक्ट के अंतर्गत ऐसी रिलीज डीड को रजिस्ट्रेशन की आवश्यकता होती है क्योंकि यह रिलीज डीड किसी व्यक्ति को किसी संपत्ति पर पूर्ण अधिकार देती है। यहां पर यह ध्यान देना चाहिए कि केवल नोटरी की तस्दीक के माध्यम से किसी भी रिलीज डीड को तैयार नहीं किया जाना चाहिए बल्कि ऐसी रिलीज डीड का रजिस्ट्रेशन करवाना चाहिए।
इस प्रकार के रजिस्ट्रेशन पर बहुत कम स्टांप ड्यूटी लगती है तथा उसका रजिस्ट्रेशन हो जाता है। आमतौर पर लोग इस मामले में गिफ्ट डीड बना लेते हैं और उसमें अधिक स्टांप ड्यूटी देना पड़ती है जबकि हक त्याग में स्टांप ड्यूटी कम लगती है।
क्या प्रभाव होते हैं रिलीज डीड के एक रिलीज डीड एक सेल डीड, गिफ्ट डीड या वसीयत के समान ही कानूनी शक्ति रखती है। रिलीज डीड किसी भी व्यक्ति को संपत्ति का पूर्ण रूप से स्वामी बना देती है।
जैसे कि मान लिया जाए कोई जमीन किसी व्यक्ति के नाम पर रजिस्टर्ड है और उस व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तथा उसकी मृत्यु के बाद उसके तीन पुत्र जीवित होते हैं वह व्यक्ति अपने जीवन काल में उस जमीन के संबंध में कोई वसीयत नहीं करता है ऐसी स्थिति में अगर तीन भाइयों में से दो भाई सभी जमीन किसी एक भाई को देना चाहते हैं तब ऐसी रिलीज डीड तैयार कर सकते हैं। इस डीड को तैयार कर उप पंजीयक के दफ्तर में रजिस्टर्ड करवाया जा सकता है। रिलीज डीड में बदले में दिए गए कुछ रुपए का उल्लेख हो सकता है पर अगर उल्लेख नहीं भी किया जाए और निशुल्क ऐसा हक़ त्याग किया जाए तब भी रिलीज डीड मान्य हो जाती है।
कौन कर सकता है रिलीज़ डीड
ऐसी डीड को कोई भी ऐसा व्यक्ति कर सकता है जो पागल या अवयस्क नहीं हो तथा जो किसी संपत्ति में वारिस हो। हक त्याग को एक प्रकार से वारिस के रूप में मिले अपने हक को छोड़ना कहा जाता है इसलिए यहां पर केवल वारिस ही एक दूसरे को हक़ त्याग कर सकते हैं।
क्या है फायदे
ऐसे अधिकार त्याग डीड को बनाने के फायदे यह है कि अगर पक्षकार कोई संपत्ति किसी एक व्यक्ति को देना चाहते हैं तब बहुत कम स्टांप ड्यूटी पर वे संपत्ति उसे सौंप देते हैं फिर वह व्यक्ति ऐसी संपत्ति का अकेला मालिक बन जाता है और भविष्य में फिर वह किसी भी व्यक्ति को उस संपत्ति को बेच सकता है या दान दे सकता है या पट्टे पर दे सकता है।
स्थानीय निकाय ऐसे हक़ त्याग के माध्यम से उस एक व्यक्ति के संबंध में नामांतरण की प्रक्रिया कर देते हैं इसलिए यह कहा जा सकता है कि हक़ त्याग के माध्यम से बहुत कम स्टांप ड्यूटी में पक्षकार अपने मामले को निपटा सकते हैं पर यहां पर यह ध्यान देना अवश्य होगा कि ऐसी डीड केवल उन ही परिस्थितियों में बनाई जा सकती है जब वारिसों की आपस में सहमति हो। किसी भी स्थिति में जब वारिसों के बीच कोई विवाद हो तब ऐसी डीड नहीं बनती है।
गिफ्ट और हक त्याग में क्या अंतर है
गिफ्ट और हक त्याग देखने में तो एक जैसे ही लगते हैं पर दोनों में बहुत अंतर है। जैसे कि गिफ्ट कोई भी व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति को दे सकता है जबकि हक त्याग केवल उसी व्यक्ति के संबंध में किया जा सकता है जो उसके साथ किसी संपत्ति में वारिस हो।
किसी भी बाहर के आदमी को हक त्याग नहीं किया जा सकता दूसरा बड़ा अंतर यह है कि गिफ्ट में किसी भी प्रकार का रुपया बदले में नहीं दिया जाता है जबकि हक त्याग में रुपया दिया भी जा सकता है और नहीं भी दिया जा सकता है। गिफ्ट में प्रतिफल के रूप में कुछ भी नहीं लिखा जाता है।
पर समानता यह है कि इन दोनों को रजिस्टर्ड करवाना होता है, आमतौर पर लोग यह समझते हैं कि हक़ त्याग को रजिस्टर्ड नहीं करवाना होता है जबकि यह बात ठीक नहीं है। किसी भी हक़ त्याग को रजिस्टर्ड करवाना होता है और उसे किसी भी प्रकार की छूट नहीं दी गई है। बगैर रजिस्टर्ड किया हुआ हक़ त्याग मान्य नहीं होता है।