साक्ष्य क्या है और कितने प्रकार के होते हैं? जानिए प्रावधान

Shadab Salim

28 Sep 2022 7:43 AM GMT

  • साक्ष्य क्या है और कितने प्रकार के होते हैं? जानिए प्रावधान

    न्याय प्रशासन में साक्ष्य का महत्वपूर्ण स्थान है। साक्ष्य द्वारा ही सत्य-असत्य की खोज की जाती है। साक्ष्य के अभाव में किसी व्यक्ति को दण्डित नहीं किया जा सकता। आपराधिक मामलों में अभियोजन को अपना मामला सन्देह से परे साबित करना होता है। थोड़ा भी संदेह हो तब अभियुक्त दोषमुक्त हो सकता है।

    एक मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा यह कहा गया है कि "साक्ष्य विधि न्यायालयों का मार्ग प्रशस्त करती है। यह ऐसे नियमों का प्रतिपादन करती है जो न्याय प्रशासन के सुचारु संचालन में सहायक होते हैं।"

    समस्त न्याय प्रशासन की आधारशिला सबूतों पर ही रखी गई है। साक्ष्य के अभाव में कोई भी मामला साबित नहीं किया जा सकता है। इस आलेख में भारतीय साक्ष्य अधिनियम,1872 के अधीन रहते हुए सबूतों के प्रकार पर चर्चा की जा रही है।

    साक्ष्य क्या है

    साक्ष्य अनेक रूपों में प्रचलित शब्द है, जैसे- प्रमाण, सबूत, पुरावा आदि। यह इंग्लिश भाषा के 'Evidence' शब्द का हिन्दी रूपान्तर है। शब्द 'Evidence' की व्युत्पत्ति मूलतः लैटिन भाषा के शब्द 'Evidence' से हुई है जिसका अर्थ है- किसी तथ्य को विधिक साधनों द्वारा स्पष्ट रूप से साबित करना, दिखाना अथवा निश्चित करना।

    भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 3 के अनुसार

    "साक्ष्य शब्द से अभिप्रेत है और उसके अन्तर्गत आते हैं-

    (क) वे सभी कथन, जिनके जाँचाधीन तथ्य के विषयों के सम्बन्ध में न्यायालय अपने सामने साक्षियों द्वारा किये जाने की अनुज्ञा देता है या अपेक्षा करता है, ऐसे कथन मौखिक साक्ष्य कहलाते हैं।

    (ख) न्यायालय के निरीक्षण के लिए पेश की गई सब दस्तावेजें, ऐसी दस्तावेजें दस्तावेजी साक्ष्य कहलाती हैं।"

    भारतीय साक्ष्य अधिनियम में यह साक्ष्य की शाब्दिक परिभाषा नहीं है। यह केवल साक्ष्य के दो प्रकारों- मौखिक साक्ष्य एवं दस्तावेजी साक्ष्य, का उल्लेख करती है।

    'शपथ पत्र' को साक्ष्य नहीं माना गया है। यह साक्ष्य तभी हो सकता है जब न्यायालय द्वारा ऐसी अपेक्षा की जाये। समाचार पत्र की रिपोर्ट को भी साक्ष्य नहीं माना गया है।

    साक्ष्य के प्रकार

    साक्ष्य के अनेक प्रकार हैं-

    (1) प्रत्यक्ष साक्ष्य

    (2) परिस्थितिजन्य साक्ष्य

    (3) प्राथमिक साक्ष्य

    (4) गौण साक्ष्य

    (5) वास्तविक साक्ष्य

    (6) अनुश्रुत साक्ष्य

    (7) मौखिक साक्ष्य

    (8) दस्तावेजी साक्ष्य

    (9) न्यायिक साक्ष्य

    (10) न्यायेत्तर साक्ष्य

    इन सभी पर विस्तारपूर्वक चर्चा यहां इस आलेख में प्रस्तुत की जा रही है-

    1. प्रत्यक्ष साक्ष्य

    साक्ष्य विधि में प्रत्यक्ष साक्ष्य का महत्वपूर्ण स्थान है। न्यायालय भी प्रत्यक्ष साक्ष्य को प्रामाणिक मानता है। साक्ष्य अधिनियम की धारा 60 में भी यह कहा गया है कि- "प्रत्येक मौखिक साक्ष्य प्रत्यक्ष होना चाहिये।"

    प्रत्यक्ष साक्ष्य से अभिप्राय ऐसे तथ्य की साक्ष्य से है जिसका साक्षी ने स्वयं अपनी इन्द्रियों से बोध किया है।

    दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि प्रत्यक्ष साक्ष्य से अभिप्राय ऐसी साक्ष्य से है-

    (i) जो यदि किसी देखे जाने वाले तथ्य के बारे में है तो साक्षी यह कहता है कि 'उसने देखा है' इसे चक्षुदर्शी साक्षी भी कहा जाता है जिसने किसी भी घटना को साक्षत देखा है या अनुभव किया है।

    (ii) जो यदि किसी सुने जाने वाले तथ्य के बारे में है तो साक्षी यह कहता है, कि 'उसने सुना है, ' और

    (iii) जो यदि इन्द्रियों द्वारा बोध किये जाने वाले तथ्य के बारे में है तो साक्षी यह कहता है कि उसने अपनी 'इन्द्रियों से बोध किया है।'

    उदाहरणार्थ- 'क' पर 'ख' की हत्या करने का आरोप है। 'ग' न्यायालय में यह कहता है कि 'उसने 'क' को 'ख' पर तलवार से वार करते देखा है। यह प्रत्यक्ष साक्ष्य है। इसे प्रत्यक्षदर्शी साक्ष्य भी कहा जाता है।

    2. परिस्थितिजन्य साक्ष्य

    जब किसी तथ्य को साबित करने के लिए प्रत्यक्ष साक्ष्य उपलब्ध नहीं होता है तब ऐसे तथ्य को साबित करने के लिए 'परिस्थितिजन्य साक्ष्य' का सहारा लिया जाता है।

    परिस्थितिजन्य साक्ष्य से अभिप्राय ऐसी परिस्थितियों के बारे में साक्ष्य से है जो घटना के इर्द-गिर्द घूमने वाले तथ्य का सबूत होती है जिनके अवलोकन से यह पता चलता है कि कोई घटना घटी है।

    उदाहरणार्थ- 'क' पर 'ख' की हत्या का आरोप है। 'क' एवं 'ख' के बीच लम्बे समय से दुश्मनी चलना, घटना के बाद 'क' को जंगल की ओर भागते देखना, उसके कपड़ों पर रक्त के दाग होना, उसका गाँव से गायब हो जाना आदि ऐसी परिस्थितियाँ हैं जो 'ख' की 'क' द्वारा हत्या किये जाने की ओर इंगित करती हैं।

    न्याय प्रशासन में यह कहा जाता है कि "साक्षी झूठ बोल सकता है लेकिन परिस्थितियाँ नहीं।"

    परिस्थितिजन्य साक्ष्य की ग्राहयता के लिए मुख्य दो बातें आवश्यक है-

    (i) परिस्थितियों को संदेह से परे साबित किया जाना, एवं

    (ii) परिस्थितियों का मुख्य घटना से निकट का सम्बन्ध होना।

    3. प्राथमिक साक्ष्य

    तीसरी महत्वपूर्ण साक्ष्य की प्रकार प्राथमिक साक्ष्य है। प्राथमिक साक्ष्य एक सर्वोत्तम साक्ष्य माना जाता है। न्यायालय द्वारा ऐसी साक्ष्य पर सर्वाधिक विश्वास किया जाता है। इसका सम्बन्ध दस्तावेजी साक्ष्य से है।

    जब किसी विवाद से सम्बन्धित 'मूल दस्तावेज' को न्यायालय के समक्ष पेश किया जाता है तो वह प्राथमिक साक्ष्य कहलाता है। इस प्रकार प्राथमिक साक्ष्य से अभिप्राय किसी दस्तावेज की मूल प्रति से है।

    उदाहरणार्थ- 'क' एवं 'ख' के बीच किसी भूखण्ड को लेकर विवाद है। 'क' द्वारा न्यायालय के समक्ष 'ख' द्वारा निष्पादित रजिस्ट्रीकृत विक्रय-विलेख मूलतः प्रस्तुत किया जाता है। यह मूल विक्रय-विलेख प्राथमिक साक्ष्य है।

    4. गौण साक्ष्य

    जब किसी तथ्य के बारे में प्राथमिक साक्ष्य उपलब्ध नहीं होता है तब गौण साक्ष्य का सहारा लिया जाता है। इसे 'द्वितीयक साक्ष्य' भी कहा जाता है। यह साक्ष्य कम विश्वसनीय होता है तथा न्यायालय द्वारा भी इसे सन्देह की दृष्टि से देखा जाता है।

    गौण साक्ष्य में निम्नांकित को सम्मिलित किया गया है-

    (क) मूल दस्तावेज की प्रमाणित प्रतिलिपियों,

    (ख) मूल दस्तावेज को यांत्रिक प्रक्रिया द्वारा तैयार की गई प्रतिलिपियों,

    (ग) मूल दस्तावेज से मिलान कर बनाई गई प्रतिलिपियाँ,

    (घ) दस्तावेजों के प्रतिलेख, तथा

    (ङ) किसी मूल दस्तावेज की अन्तर्वस्तुओं के सम्बन्ध में उस व्यक्ति द्वारा दिया हुआ मौखिक साक्ष्य जिसने उस दस्तावेज को स्वयं देखा है।

    5.वास्तविक साक्ष्य

    वास्तविक साक्ष्य यह साक्ष्य है जो न्यायालय के समक्ष इस ढंग से प्रस्तुत किया जाता है कि न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट स्वयं उसे देखकर अपनी ज्ञानेन्द्रियों से सही बात का अनुमान लगा लेता है। उदाहरणार्थं- 'क' पर 'ख' की तलवार से हत्या करने का आरोप है। न्यायालय के समक्ष यह तलवार तथा 'क' एवं 'ख' के रक्तरंजित कपड़े प्रस्तुत किये जाते हैं। यह वास्तुविक साक्ष्य है। तलवार एवं कपड़ों को देखकर न्यायालय घटना का अनुमान लगा सकता है। इसे 'भौतिक साक्ष्य' भी कहा जाता है।

    6. अनुश्रुत साक्ष्य

    इसे ' सुनी-सुनाई साक्ष्य' भी कहा जाता है। यह कमजोर साक्ष्य मानी जाती है। न्यायालय द्वारा ऐसी साक्ष्य पर कम विश्वास किया जाता है। यह साक्ष्य ऐसे व्यक्ति द्वारा दो जाती है जिसने-

    (क) घटना को अपनी आँखों से देखा नहीं है,

    (ख) जिसने घटना अथवा किसी तथ्य के बारे में स्वयं अपने कानों से सुना नहीं है, अथवा

    (ग) किसी तथ्य का स्वयं अपनी ज्ञानेन्द्रियों से बोध नहीं किया है।

    वह केवल दूसरों के मुँह से सुनी-सुनाई बात कहता है।

    उदाहरणार्थ- 'क' पर 'ख' के घर में चोरी करने का आरोप है। 'ग' न्यायालय में यह कहता है कि उसने 'च' से सुना है कि 'क' ने 'ख' के घर में चोरी की है। 'च' की साक्ष्य अनुश्रुत साक्ष्य है।

    7. मौखिक साक्ष्य

    मौखिक साक्ष्य से अभिप्राय ऐसे साक्ष्य से है जो किसी व्यक्ति द्वारा स्वयं न्यायालय के समक्ष उपस्थित होकर दी जाती है। ऐसे साक्ष्य के प्रत्यक्ष होने की अपेक्षा की जाती है अर्थात् मौखिक स सदैव प्रत्यक्ष होना चाहिये। मौखिक साक्ष्य किसी निकट सम्बन्धी का भी हो सकता है। इसरार बनाम स्टेट ऑफ उत्तरप्रदेश के मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया है कि साक्षी का रिश्तेदार या हितबद्ध होना मात्र उसके साक्ष्य को अविश्वसनीय माने जाने का कारण नहीं है।

    8. दस्तावेजी साक्ष्य

    जब किसी तथ्य को साबित या नासाबित करने के लिए साक्ष्य के तौर पर न्यायालय में कोई दस्तावेज, लेख, विलेख, प्रलेख आदि प्रस्तुत किया जाता है तो उसे 'दस्तावेजी साक्ष्य' कहा जाता है।

    उदाहरणार्थ- किसी व्यक्ति की आयु या जन्म तिथि विवादास्पद है। उसे साबित करने के लिए न्यायालय के समक्ष विद्यालय का अभिलेख प्रस्तुत किया जाता है। यह दस्तावेजी साक्ष्य है।' वोटर लिस्ट दस्तावेजी साक्ष्य है दस्तावेजी साक्ष्य के प्राथमिक होने को अपेक्षा की जाती है।

    भाषण के टेप रिकार्डर दस्तावेज हैं। यह कमजोर प्रकृति का साक्ष्य है, क्योंकि इनके बदल दिये जाने की प्रबल संभावना रहती है। अतः टेप रिकार्डर की शुद्धता एवं प्रामाणिकता को ध्यान में रखते हुए अत्यन्त सावधानी से इसे साक्ष्य में ग्राह्य किये जाने की अपेक्षा की जाती है

    9. न्यायिक साक्ष्य

    न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया जाने वाला प्रत्येक साक्ष्य, चाहे वह मौखिक हो या दस्तावेजी 'न्यायिक साक्ष्य' कहलाता है।

    न्यायिक साक्ष्य सदैव न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया गया साक्ष्य होता है और वह न्यायालय अभिलेख पर रहता है।

    10. न्यायेत्तर साक्ष्य

    न्यायेत्तर साक्ष्य से अभिप्राय ऐसे साक्ष्य से है जो न्यायालय के समक्ष नहीं दिया जाकर अन्य किसी स्थान पर या अन्य किसी व्यक्ति के समक्ष दिया जाता है या कथन किया जाता है।

    उदाहरणार्थ- 'क' अपने मित्र 'ख' से यह कहता है कि उसने 'घ' के घर चोरी की है। यह न्यायेत्तर साक्ष्य है।

    न्यायेत्तर साक्ष्य में न्यायेत्तर संस्वीकृति भी सम्मिलित है, हालांकि यह सारभूत नहीं होती है।

    Next Story