नजूल भूमि किसे कहा जाता है? जानिए प्रावधान
Shadab Salim
31 Jan 2022 10:48 AM IST
किसी जमीन को खरीदते समय बहुत सारी बातों की जानकारी रखनी होती है। कई मौकों पर देखने को मिलता है कि किसी जमीन पर नजूल भूमि का बोर्ड लगा होता है। नजूल भूमि क्या होती है और क्या नजूल भूमि को खरीदा बेचा जा सकता है। भारत में इससे संबंधित संपूर्ण कानून है।
जमीन के मालिकाना हक कई लोगों के पास होते हैं। सरकार के पास भी जमीन होती है, जिस जमीन को शासकीय जमीन कहा जाता है, इन शासकीय जमीनों में एक जमीन नजूल भूमि भी होती है।
क्या है नजूल भूमि
भारत में किसी समय अंग्रेजों का शासन रहा है। अंग्रेजों के रूल्स भारत में चलते थे। शासन व्यवस्था अंग्रेजों के पास ही थी। अंग्रेजों के विरुद्ध कई भारतीयों ने विद्रोह किया है, जिन्हें स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कहा गया। ऐसा विद्रोह सभी स्तर पर किया गया है। एक आम आदमी से लेकर एक राजा द्वारा भी विद्रोह किया गया है। अंग्रेजों के शासन के पहले भारत कोई एक देश नहीं था बल्कि अलग-अलग इलाकों पर अलग-अलग राजाओं की हुकूमत रहा करती थी, बहुत सारी रियासतें थीं।
इन रियासतों में कई रियासत अंग्रेजों का समर्थन करती थीं और कई रियासत अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह करती थीं। जिन रियासतों का अंग्रेजों से तालमेल बैठ जाता था, वह अंग्रेजों का समर्थन करती थीं, जिन रियासतों से तालमेल नहीं बैठता था वह रियासतें अंग्रेजों का विद्रोह कर देती थीं।
इस ही तरह से आम लोग भी अंग्रेजों का विरोध करते ही रहते थे। जो लोग भी अंग्रेजी शासन का विरोध करते थे उन लोगों को अंग्रेज अपने रूल्स के मुताबिक अपराधी करार दे देते थे। उन पर मुकदमा चलता था और ऐसे मुकदमे के बाद उन्हें दोषसिद्ध करके सजा दी जाती थी।
अंग्रेजों से लड़ना कोई आसान काम नहीं था क्योंकि सत्ता उनके पास थी। आम आदमी के पास कुछ नहीं होता था। जो रियासतें अंग्रेजों के साथ विद्रोह करती थी उन रियासतों के पास भी अंग्रेजों के मुकाबले बहुत कम संसाधन होते थे। अंग्रेज आधुनिक हथियार से लैस होते थे, उनके पास अधिक संसाधन रहते थे।
जब कभी भी किसी आम व्यक्ति द्वारा अंग्रेजी शासन व्यवस्था का विरोध किया जाता था और कोई हिंसात्मक गतिविधि की जाती थी, तब उन्हें अंग्रेज मुकदमा लगाकर जेल में डाल देते थे। कभी-कभी यह होता था कि लोगों को विद्रोह करने के बाद अपना शहर गांव छोड़कर भागना पड़ता था।
कभी-कभी लोग पकड़ में आ जाते थे, विद्रोह करने वालों में अमीर-गरीब सभी तरह के लोग थे। कई लोग ऐसे थे जो कृषि करते थे और उनके पास जमीन होती थी। अगर ऐसे लोग अंग्रेजों का विरोध करते थे तब अंग्रेज उनकी जमीन को राजसात कर लेते थे। राजसात करने के बाद उनकी जमीन पर कब्जा कर लेते थे, जमीन के मूल मालिक को सजा दे दी जाती थी।
कई मामलों में यह भी देखने को मिलता है कि लोग जमीन छोड़कर ही चले जाते थे। अंग्रेज उन्हें फरार घोषित कर देते थे। इस स्थिति में लोगों की जमीन अंग्रेजी शासन के पास आ जाती थी। ऐसी जमीन को नजूल की जमीन कहा गया।
स्वतंत्रता के बाद जिन ज़मीन मालिकों से अंग्रेजों ने जमीन हड़पी थी, उनके वारिसों को वापस लौटा दी गई। लेकिन कई जमीन ऐसी थी जिनके वारिस ही नहीं बचे। लोग अपने शहर गांव छोड़ कर चले गए और वापस ही नहीं लौटे, क्योंकि एक लंबा समय बीत गया था।
जैसे अगर किसी सेनानी ने 1857 में कोई विद्रोह किया और उस समय अपना गांव छोड़ कर गया। फिर आजादी इसके सौ वर्ष बाद मिली, तब सेनानियों के इन कथित वारिसों के पास रिकॉर्ड पर कुछ भी नहीं बचा जिससे यह साबित हो सके कि वह जमीन के वारिस है। अब ऐसी जमीन नजूल में हो गई।
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद इस जमीन की मालिक भारत सरकार बन गई। जिस राज्य में जमीन स्थित थी, उस राज्य का इस जमीन पर कब्जा हो गया। वर्ष 1956 में नजूल हस्तांतरण रूल्स बनाए गए, जिसके जरिए नजूल की जमीन का हस्तांतरण किया जाने लगा।
अगर साफ तौर से देखें तो नजूल की कोई भी जमीन सरकारी जमीन होती है। राज्य सरकार उस जमीन की मालिक होती है, लेकिन कई गांवों में यह जमीन यूँही पड़ी रहती है। इस जमीन के उपयोग के दृष्टिकोण से सरकार ने इस जमीन से संबंधित नियमों को बनाया है।
इस जमीन पर जनहित के कार्य की जाने लगे। जैसे कोई पार्क बनाना, नगर पालिका बनाना, ग्राम पंचायत बनाना, ग्रामसभा बनाना, स्कूल अस्पताल बनाना इत्यादि कार्य होने लगे। यह सभी कार्य उन जगहों पर हो जाते है जहां पर कोई आबादी रहती है, लेकिन कई ज़मीन ऐसी थी जो केवल खेती के लायक थी। उन जमीनों में भी सिंचित, गैर सिंचित और बंजर भूमि तीनों प्रकार की जमीने थी। सरकार ने इन जमीनों की भी व्यवस्था नजूल हस्तांतरण रूल्स 1956 में की है।
नजूल की जमीन का हस्तांतरण
कोई भी नजूल की जमीन जो शासकीय रिकॉर्ड में नजूल के नाम पर दर्ज़ है, उस जमीन का हस्तांतरण हो सकता है, लेकिन उस जमीन का मालिकाना हक नहीं बदला जा सकता। उस जमीन की मालिक तो सरकार ही रहती है, केवल उसके उपयोग में परिवर्तन किया जा सकता है।
ऐसी कृषि भूमि जो सिंचित, गैर सिंचित और बंजर भूमि है उन्हें अलग-अलग श्रेणियों में बांटा गया है। गांव के पिछड़े और अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लोग जिनके पास कृषि भूमि नहीं है उन्हें ऐसी नजूल की जमीन कृषि के लिए पट्टे पर दी जाने लगी।
सिंचित नजूल भूमि का पट्टा
कोई भी सिंचित नजूल भूमि का पट्टा किया जा सकता है। ऐसा पट्टा तीन बीघा तक हो सकता है। सिंचित भूमि उसे कहते हैं जहां पर सिंचाई हो सकती है और ऐसी सिंचाई के बाद वहां खेती की जाती है। गांव के पिछड़े तथा अनुसूचित जनजाति के लोगों को यह जमीन पट्टे के रूप में खेती के लिए एक निश्चित समय अवधि के लिए सरकार द्वारा दी जाती है।
लेकिन यहां पर यह ध्यान रखना चाहिए कि ऐसी जमीन केवल उसी व्यक्ति को मिलती है जिस व्यक्ति के पास में कृषि करने के लिए कोई भी भूमि नहीं है। यह जमीन उसे केवल कृषि के लिए मिलती है। इस जमीन को उसके द्वारा बेचा भी नहीं जा सकता और न ही किराए पर किसी अन्य व्यक्ति को दिया जा सकता है। ऐसी जमीन भारत के सभी राज्यों में तीन बीघा तक मिल सकती है।
गैर सिंचित जमीन
नजूल भूमि के मामले में दूसरी गैर सिंचित जमीन को माना गया है। यह उस जमीन को कहा जाता है जहां पर सिंचाई आसानी से नहीं की जा सकती और बारहमासी फसल का उत्पादन नहीं किया जा सकता है। जिस जमीन में पानी की कमी होती है, ऐसी जमीन अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति तथा पिछड़े वर्ग के लोगों को 6 बीघा तक मिल सकती है।लेकिन यह जमीन भी उन्हें मालिकाना हक के तौर पर नहीं मिलती है। केवल कृषि कार्य हेतु एक निश्चित समय के लिए तहसील से दी जाती है।
बंजर भूमि
बंजर भूमि उस भूमि को कहा जाता है जिस पर किसी भी प्रकार की खेती की जाना बहुत मुश्किल होता है। फिर भी ऐसी जमीन पर कम से कम गेहूं जैसी फसल तो उगाही जा सकती है। यह जमीन किसी भी अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति तथा पिछड़े वर्ग के व्यक्ति को 9 बीघा तक मिल सकती है। यह जमीन भी केवल कृषि करने के लिए मिलती है, जिस व्यक्ति को यह जमीन मिलती है उसे जमीन पर किसी प्रकार का मालिकाना हक प्राप्त नहीं होता है। लेकिन उपयोग के लिए उसे अधिकार जरूर प्राप्त होता है। वह ऐसी जमीन पर एक पट्टाग्रहता की हैसियत से रहता है।
अंत में यह ध्यान रखना चाहिए कि नजूल की भूमि को किसी भी प्रकार से खरीदा नहीं जा सकता। यह जमीन भारत के वीर स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की जमीन है। ऐसे सेनानियों की जमीन है जिनके वारिसों के बारे में कोई पता ठिकाना नहीं है और कोई भी व्यक्ति उन स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों से अपना रिश्ता साबित नहीं कर पाता है तथा उन सेनानियों का भी कोई रेकॉर्ड उपलब्ध नहीं है।
इस जमीन पर बनी किसी भी बिल्डिंग में कोई फ्लैट नहीं खरीदा जा सकता, न ही किसी बंगले को खरीदा जा सकता है।ऐसी जमीन कृषि भूमि के रूप में भी नहीं खरीदी जा सकती है।