Transfer Of Property Act में Contingent Interest किसे कहते हैं?
Shadab Salim
15 Jan 2025 3:54 AM

संपत्ति अंतरण अधिनियम 1882 की धारा 21 Contingent Interest के संबंध में उल्लेख करती है। इस धारा में समाश्रित घटना पर आधारित होने वाले अंतरण के संबंध में विस्तार से नियम दिए गए हैं। Contingent Interest पर अंतरण इस अधिनियम की महत्वपूर्ण धाराओं में से एक है।
संपत्ति अंतरण अधिनियम की "धारा 21" Contingent Interest के प्रावधान को कुछ इन शब्दों में प्रस्तुत कर रही है-
"Contingent Interest – जहाँ कि सम्पत्ति-अन्तरण से उस सम्पत्ति में किसी व्यक्ति के पक्ष में हित विनिर्दिष्ट अनिश्चित घटना के घटित होने पर ही अथवा किसी विनिर्दिष्ट अनिश्चित घटना के घटित न होने पर ही प्रभावी होने के लिए सृष्ट किया गया हो, वहाँ ऐसे व्यक्ति तद्द्वारा उस सम्पत्ति में Contingent Interest अर्जित करता है। ऐसा हित पूर्व कथित दशा में उस घटना के घटित होने पर और पश्चात् कथित दशा में उस घटना का घटित होना असम्भव हो जाने पर निहित हित हो जाता है।
अपवाद - जहाँ कि सम्पत्ति-अन्तरण के अधीन कोई व्यक्ति उस सम्पत्ति में किसी हित का हकदार कोई विशिष्ट आयु प्राप्त करने पर हो आता है और अन्तरक उसको वह आय भी आत्यन्तिकतः देता है जो उसके वह आयु प्राप्त करने से पहले ऐसे हित से उद्भूत हो, या निदेश देता है कि वह आय या उसमें से उतनी, जितनी आवश्यक हो, उसके फायदे के लिए उपयोजित की जाए, वहाँ ऐसा हित Contingent Interest नहीं है।"
यह धारा Contingent Interest की परिभाषा प्रस्तुत करती है और यह उपबन्धित करती है कि कब Contingent Interest निहित हित में परिवर्तित होता है। कोई हित तब Contingent Interest माना जाता है जब उसका अन्तरितों में निहित होना किसी विनिर्दिष्ट अनिश्चित घटना के घटित होने अथवा घटित न होने पर आधारित हो। विनिर्दिष्ट अनिश्चित घटना ऐसी हो सकती है जिसका घटित होना या न होना न्यूनाधिक सम्भव हो किन्तु इससे उसकी समाश्रितता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। विनिर्दिष्ट अनिश्चित घटना पूर्ववर्ती शर्त के रूप में कार्य करती है। इस शर्त का अनुपालन होने के बाद ही अन्तरितों को सम्पत्ति मिलेगी। पूर्ववर्ती शर्त ऐसी होनी चाहिए जो विधि के दृष्टिकोण में वैध हो। यदि शर्त अवैध है तो उसका अनुपालन आवश्यक नहीं होगा।
उदाहरण अब्दुल सकूर बनाम अबू बकर के वाद में 'अ' ने अपनी सम्पत्ति 'ब' को इस शर्त के साथ दिया कि वह सम्पत्ति उसे उसके विवाह पर देय होगी। इस वाद में सृष्ट हित समाश्रित माना गया।
मुसम्मात रामपती बनाम शान्ता सिंह के वाद में एक पत्नी ने अपने पति को उत्प्रेरित किया कि वह उसके द्वारा क्रय की गयी जमीन पर मकान बनवाए और दोनों इस शर्त पर उस मकान में निवास करेंगे कि किसी को व्यक्तिगत रूप से उसे अन्तरित करने का अधिकार नहीं होगा। मकान केवल दोनों को आपसी सहमति से हो अन्तरणीय होगा। यह भी तय हुआ कि उनकी मृत्यु के उपरान्त मकान उनकी पुत्री को मिलेगा। कुछ समय पश्चात् पति के संयुक्त स्वामी के रूप में सम्पत्ति पर कब्जा पाने के लिए वाद दायर किया। यह अभिनिर्णीत हुआ कि समझौते के फलस्वरूप केवल Contingent Interest सृष्ट हुआ था अतः पति कब्जा पाने का अधिकारी नहीं होगा।
नियम का विवेचन- जब सम्पत्ति के अन्तरण पर उसमें कोई हित किसी व्यक्ति के पक्ष में सृष्ट किया जाता है और यह उपबन्धित किया जाता है कि ऐसा हित केवल तब प्रभावी होगा जब-
कोई विनिर्दिष्ट अनिश्चित घटना घटित हो; या
कोई विनिर्दिष्ट अनिश्चित घटना घटित न हो, हित प्राप्त करता है और इस प्रकार सृष्ट Contingent Interest, तब तो अन्तरितो सम्पत्ति में समाधित निहित हित में परिवर्तित हो जाता है जब
प्रथम स्थिति में घटना घट जाए या
दूसरी स्थिति में घटना का घटित न होना सुनिश्चित हो जाए।
अपवाद- यदि सम्पति में सृष्ट हित किसी व्यक्ति को तब मिलने वाला है जब वह एक विशिष्ट आयु प्राप्त कर ले, साथ ही अन्तरक यह आय भी आत्यन्तिक रूप से उसे दे जो उसके वह आयु प्राप्त करने से पहले उद्भूत (इकट्ठी) हुई थी या उसने यह निर्देश दिया रहा हो कि सम्पूर्ण आय या उसमें से उतनी जितनी आवश्यक हो, उसके फायदे के लिए इस्तेमाल में लायी जाए, वहाँ सृष्ट हित समाश्रित न होकर निहित होगा।
Contingent Interest के दो स्वरूप हैं-
स्वीकारात्मक - इसमें अन्तरिती को शर्त का अनुपालन करना होता है जैसे अ ने एक मकान ब को इस शर्त पर दिया कि वह ऑस्ट्रेलिया शिक्षा प्राप्त करने जाए। यदि वह शिक्षा प्राप्त करने ऑस्ट्रेलिया चला जाता है तो शर्त स्वीकारात्मक रूप में पूर्ण हुई मानी जाएगी।
नकारात्मक - इसमें शर्त का पूर्ण होना असम्भव कर दिया जाता है। जैसे अ अपना मकान ब को इस शर्त पर देता है कि वह ऑस्ट्रेलिया शिक्षा प्राप्त करने नहीं जाएगा ब ऑस्ट्रेलिया जाने से मना कर देता है। शर्त नकारात्मक है।
उदाहरण:-
(1) 'अ' ने अपनी सम्पत्ति का अन्तरण 'ब' को उसके जीवनकाल के लिए इस शर्त पर किया कि यदि वह बिना किसी व्यक्ति को गोद लिए मृत हो जाती है तो सम्पत्ति स तथा उसके बच्चों को मिलेगी। स को ब से पहले मृत्यु हो गयी है। यह अभिनिर्णीत हुआ कि स का सम्पत्ति में हित केवल समाश्रित था क्योंकि शर्त यह थी कि यदि ब किसी व्यक्ति को गोद लिए बिना मरती है तो स सम्पत्ति पाने की अधिकारी होगी।
(2) एक सम्पत्ति अ को उसके जीवनकाल के लिए अन्तरित की गयी तथा उसकी मृत्यु के बाद ब को यदि ब उस समय जीवित रहेगा। किन्तु यदि ब की मृत्यु अ से पहले हो जाती है तो स को ब तथा स दोनों को Contingent Interest प्राप्त है ब के मामले में यह तब निहित बनेगा जब ब अ की मृत्यु के समय जीवित हो और स के मामले में तब निहित हित बनेगा जब ब की मृत्यु अ से पहले हो जाये।
(3) अ अपना फार्म सुल्तानपुर खुर्द 'ब' को इस शर्त पर अन्तरित करता है कि वह अपना फार्म सुल्तानपुर बुजुर्ग स के पक्ष में अन्तरित करे ब का सुल्तानपुर खुर्द में हित Contingent Interest है जो निहित हित बन जाएगा यदि वह अपना फार्म सुल्तानपुर बुर्जुग स के पक्ष में अन्तरित कर दे।
(4) अ, ब के पक्ष में 1000 रुपये अन्तरित करता है जब वह बालिग हो जाएगा। वह यह निर्देश भी देता है कि इन रुपयों से होने वाली आय को जब तक वह बालिग नहीं हो जाता है, उसके भरण-पोषण के लिए खर्च किया जाएगा। ब का 1000 रुपये में हित निहित हित है, किन्तु यदि उसके भरण-पोषण हेतु खर्च की जाने वाली राशि उपरोक्त धनराशि से उत्पन्न होने वाली आय नहीं है तो, ब के पक्ष में सृष्ट हित Contingent Interest होगा और उसे सम्पत्ति तब तक प्राप्त नहीं होगी जब तक वह बालिग नहीं हो जाता।
(5) अ एक सम्पत्ति ब को इस शर्त पर देता है कि स, द से अन्तरण की तिथि से 5 वर्ष तक विवाह न करे ब का हित सम्पत्ति में समाश्रित है यदि स, द से विवाह 5 वर्ष अवधि के अन्दर कर लेता है तो समझा जाएगा कि शर्त भंग कर दी गयी है और उसे सम्पत्ति नहीं मिलेगी।
निहित तथा Contingent Interest निर्धारित करने के लिए टेस्ट निहित तथा Contingent Interest के बीच अन्तर स्थापित करना अत्यधिक दुष्कर कार्य है। इसका निर्धारण करने हेतु कि कोई हित निहित हित है अथवा Contingent Interest, यह देखना आवश्यक है कि अन्तरिती को वर्तमान उपभोग का अधिकार मिल रहा है अथवा भावी उपभोग का, अथवा क्या अधिकार तब सृष्ट होगा जब कोई।
विनिर्दिष्ट अनिश्चित घटना घटित हो जाए। प्रथम स्थिति में यह निहित हित होगा और द्वितीय में केवल समाश्रित वस्तुतः यह एक आशय विषयक प्रश्न है जिसका निर्धारण तथ्यों के आधार पर किया जाता है। राजेश कान्त राय बनाम श्रीमती शान्ति देवी के वाद में सुप्रीम कोर्ट ने यह प्रतिपादित किया कि ऐसे प्रश्न पर विचारण सदैव इस मंशा से की जानी चाहिए कि कथित हित निहित हित है जब तक कि विपरीत आशय सिद्ध न हो जाए।
किन्तु कार्यकारी रूप में यह सिद्धान्त प्रतिपादित किया जा सकता है कि यदि इस प्रकार के शब्दों जैसे दिया जाएगा' या 'विशिष्ट आयु पर देय होगा' का प्रयोग किया गया है तो यह निष्कर्ष निकाला जाएगा कि सृष्ट हित निहित हित है। किन्तु यदि यह कहा गया हो कि हित एक विशिष्ट 'आयु पर' सृष्ट होगा या 'यदि' या 'जब' वह एक विशिष्ट आयु प्राप्त कर लेगा या विशिष्ट आयु प्राप्त करने पर देय होगा, तो सृष्ट हित Contingent Interest होगा।
कलकत्ता हाईकोर्ट ने शशिकान्त बनाम प्रमोद चन्द्र के वाद में निम्नलिखित शब्दों में अन्तर स्पष्ट किया था-
"कोई हित निहित समझा जाएगा यदि उपभोग का अधिकार वर्तमान में दिया गया हो या कुछ समय के लिए स्थगित कर दिया गया हो। दूसरे शब्दों में यदि अधिकार वर्तमान में उपभोग के लिए हो या वर्तमान अधिकार भविष्य में उपभोग के लिए हो तो सृष्ट अधिकार निहित हित कहा जाएगा। कोई हित या अधिकार समाश्रित कहा जाएगा यदि उपभोग का अधिकार किसी शर्त या घटना पर आधारित हो जो घटित हो सकती है अथवा नहीं, दूसरे शब्दों में यदि उपभोग का अधिकार अनिश्चित प्रकृति का है तो वह Contingent Interest होगा। पर यदि शर्त या घटना ऐसी है जिसका घटित होना अवश्यम्भावी है तो सृष्ट अधिकार निहित होगा।
निहित तथा Contingent Interest के सम्बन्ध में निम्नलिखित तथ्य महत्वपूर्ण हैं-
यदि सृष्ट हित निहित प्रकृति का है तो अन्तरितो का हित सम्पत्ति में पूर्ण होगा किन्तु यदि समाश्रित प्रकृति का है तो हित अपूर्ण होगा। अपूर्ण हित तब पूर्ण होगा जब कोई विनिर्दिष्ट शर्त पूर्ण हो जाए या उसका अपूर्ण होना सुनिश्चित हो जाए।
निहित हित सम्पत्ति में वर्तमान अधिकार प्रदान करता है। भले ही उपभोग का अधिकार वर्तमान न हो। ऐसा अधिकार अन्तरितो को मृत्यु की कारण विफल नहीं होगा, यदि मृत्यु से पूर्व उसे सम्पत्ति का कब्जा नहीं प्राप्त हुआ था। Contingent Interest की दशा में सम्पत्ति में वर्तमान में अधिकार नहीं प्राप्त होता है। अतः यदि अन्तरितो ने अपनी मृत्यु से पूर्व सम्पत्ति का कब्जा नहीं प्राप्त किया था तो मृत्यु के उपरान्त सम्पत्ति में हित विफल हो जाएगा। दूसरे शब्दों में निहित हित वंशानुगत अधिकार है जबकि Contingent Interest नहीं।
निहित हित अन्तरण की तिथि से प्रभावी होता है यद्यपि उपभोग का अधिकार कुछ समय के लिए स्थगित हो सकता है। Contingent Interest घटना के घटित होने अथवा असम्भव होने, जैसी भी स्थिति हो, की तिथि से प्रभावी होता है।
निहित तथा समाश्रित दोनों ही प्रकार के हित अन्तरणीय होते हैं। निहित हित की स्थिति में अन्तरिती को वर्तमान अधिकार प्राप्त होता है जब कि Contingent Interest में घटना पर निर्भर अधिकार प्राप्त होता है।
निहित हित डिक्री के निष्पादन में कुर्क किया जा सकता है और बेचा जा सकता है जबकि Contingent Interest न तो कुर्क किया जा सकता है और न ही बेचा जा सकता न है।