पशुओं के साथ यौन संबंध से जुड़े अपराध के बारे में क्या कहता है भारतीय कानून?

Himanshu Mishra

30 May 2025 6:19 PM IST

  • पशुओं के साथ यौन संबंध से जुड़े अपराध के बारे में क्या कहता है भारतीय कानून?

    भारत में पशु संबंध (Bestiality) न केवल एक नैतिक (Morality) अपराध माना जाता है, बल्कि पशु कल्याण (Welfare) और सामाजिक मूल्यों के प्रतिकूल (Contrary) भी है। 1 जुलाई 2024 तक यह अपराध मुख्यतः भारतीय दंड संहिता, 1860 (Indian Penal Code) की Section 377 के तहत दंडनीय (Punishable) था, परंतु Bharatiya Nyaya Sanhita, 2023 (BNS) के लागू होने के साथ इस व्यवस्था में मौलिक परिवर्तन आए हैं।

    इस लेख में हम विस्तार से समझेंगे कि IPC के तहत bestiality को कैसे अपराध माना गया, सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के landmark judgments ने इस विषय को कैसे सशक्त किया, BNS में हुए बदलावों ने इसे कैसे प्रभावित किया, और Prevention of Cruelty to Animals Act, 1960 के तहत अब क्या प्रावधान उपलब्ध हैं।

    भारतीय दंड संहिता, 1860 के तहत प्रावधान (Provisions under Indian Penal Code, 1860)

    IPC की Section 377 ने “प्राकृतिक क्रम (Order of Nature) के खिलाफ कार्नल इंटर्सोर्स (Carnal Intercourse)” को दंडनीय अपराध घोषित किया था। इस प्रावधान के अंतर्गत bestiality, अल्पसंख्यक (Minor) के साथ यौन संबंध, और गैर-सहमति (Non-consensual) संबंध सभी एक ही श्रेणी में आते थे। इसके तहत दोषी को आजीवन कारावास (Life Imprisonment) तक की सजा और जुर्माना हो सकता था।

    2018 में Navtej Singh Johar v. Union of India के निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने सहमति (Consent) आधारित वयस्कों के यौन संबंधों को IPC की Section 377 से बाहर रखा, परंतु यह स्पष्ट किया कि गैर-सहमति, अल्पसंख्यक, और bestiality अपराध की श्रेणी में बने रहेंगे । इस निर्णय ने यह सुनिश्चित किया कि पशु के साथ यौन शोषण (Exploitation) अभी भी “प्राकृतिक क्रम के विरुद्ध अपराध” माना जाएगा ।

    सुप्रीम कोर्ट के Landmark फैसले (Landmark Judgments Reaffirming Criminality of Bestiality)

    Animal Welfare Board of India v. A. Nagaraja के निर्णय में कोर्ट ने कहा कि पशुओं को भय, पीड़ा, या असुविधा से मुक्त रखने का अधिकार संविधान (Constitution) से जुड़ा हुआ है। इस फैसले ने पशु कल्याण के सिद्धांतों को मौलिक अधिकारों के समकक्ष (Equivalent) माना।

    Navtej Singh Johar के फैसले में भी सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि Section 377 को “नॉन-कंसेंसुअल यौन कृत्यों, अल्पसंख्यकों तथा bestiality पर लागू रहना चाहिए” । इन निर्णयों ने स्पष्ट किया कि समाज और न्यायपालिका दोनों यौन शोषण को कभी स्वीकार नहीं करेंगे।

    Bharatiya Nyaya Sanhita, 2023 में बदलाव (Changes under Bharatiya Nyaya Sanhita, 2023)

    1 जुलाई 2024 से IPC की Section 377 को पूरी तरह से हटा दिया गया और BNS में “असामान्य” (Unnatural) यौन अपराधों का कोई समकक्ष प्रावधान नहीं रखा गया । इस बदलाव ने bestiality को मुख्य दंड संहिता से बाहर कर दिया, जिससे एक विधायी (Legislative) शून्य (Gap) उत्पन्न हो गया।

    इस शून्य के कारण अपराध दर्ज करना और सजा दिलवाना मुश्किल हो गया है। केस स्टडी के तौर पर नागपुर में जून 2025 में एक व्यक्ति घोड़ी के साथ यौन दुराचार (Abuse) के CCTV फुटेज में पकड़ा गया, पर पुलिस ने BNS की चोरी (Theft) धाराओं और Prevention of Cruelty to Animals Act, 1960 की Section 11(1)(a) के तहत मामला दर्ज किया । यह स्थिति दर्शाती है कि मुख्य दंड संहिता से bestiality के बाहर होने पर कानून प्रवर्तन (Law Enforcement) के सामने कितनी असुविधा आती है।

    पशु क्रूरता अधिनियम, 1960 के तहत प्रावधान (Provisions under Prevention of Cruelty to Animals Act, 1960)

    Prevention of Cruelty to Animals Act की Section 11(1)(a) में कहा गया है कि “किसी भी पशु (Animal) पर पिटाई, लात मारना, अत्यधिक बोझ (Overloading) डालना, यातना (Torture), या किसी अन्य तरह की क्रूरता (Cruelty) करना” अपराध है। इसमें दोषी को जेल और जुर्माना दोनों मिल सकते हैं।

    यह प्रावधान bestiality के मामलों में प्रयोग जरूर किया जाता है, लेकिन इसकी भाषा अत्यंत सामान्य (General) है और यौन दुराचार की गंभीरता (Gravity) को पर्याप्त रूप से नहीं रेखांकित (Highlight) करती। इसलिए सजा अक्सर अपर्याप्त (Insufficient) रह जाती है और यह अन्य यौन अपराधों के साथ धुंधला (Blurred) हो जाता है।

    अंतरराष्ट्रीय उदाहरण और सुधार के सुझाव (International Examples and Recommendations)

    अन्य देशों में bestiality को एक विशिष्ट यौन अपराध (Sexual Offence) माना जाता है। उदाहरण के लिए, यूके की Sexual Offences Act 2003 में स्पष्ट रूप से पशु के साथ यौन संबंध (Sexual Activity with Animals) अपराध घोषित है, जिससे अदालत उचित दंड (Punishment) निर्धारित करती है।

    भारत में भी विशेषज्ञ (Experts) और पशु अधिकार कार्यकर्ता (Animal Rights Advocates) एक समर्पित (Dedicated) bestiality धाराओं को BNS में जोड़ने की मांग कर रहे हैं। इससे कानून प्रवर्तन (Enforcement) आसान होगा और अभियुक्तों को पर्याप्त दंड मिलेगा, जो पशु कल्याण समझौतों (Welfare Norms) और अंतरराष्ट्रीय मानदंडों (Norms) के अनुकूल होगा ।

    विधायिका द्वारा सुधार की आवश्यकता (Need for Legislative Reform)

    सुप्रीम कोर्ट ने कई बार कहा है कि दंड संहिता में शून्य को दूर करने के लिए संसद (Parliament) को कदम उठाना चाहिए, लेकिन यह विधायिकीय (Legislative) मसला है, न्यायपालिकीय (Judicial) नहीं ।

    कई याचिकाओं में अदालत से BNS में bestiality की धाराओं को जोड़ने का अनुरोध किया गया, पर कोर्ट ने यह कहकर रिजेक्ट किया कि यह संसद का काम है। विशेषज्ञों का सुझाव है कि एक स्पष्ट परिभाषा (Definition) और सजा (Penalty) वाले प्रावधान से यह अपराध कानून की मुख्य धारा में आएगा और पशुओं के अधिकारों की बेहतर रक्षा होगी।

    कानूनी प्रवर्तन और अभियोजन पर प्रभाव (Impact on Enforcement and Prosecution)

    जब तक BNS में संशोधन नहीं होता, पुलिस और अभियोजन पक्ष Prevention of Cruelty to Animals Act पर ही निर्भर रहेंगे। इस अप्रत्यक्ष (Indirect) रास्ते से अक्सर अभियुक्त बच निकलते हैं या कम सजा पाते हैं। एनजीओ (NGO) और कानूनी सहायता (Legal Aid) समूहों की सलाह है कि हर मामले में Section 11(1)(a) को हाईलाइट करें और अधिकतम दंड की मांग करें।

    वहीं बचाव पक्ष (Defense) इन सामान्य धाराओं को चुनौती दे सकता है, जिससे मामला लंबित हो या रिहाई (Acquittal) हो सकती है। यह दंड संहिता में स्पष्ट धाराओं की कमी का प्रत्यक्ष (Direct) परिणाम है।

    भारतीय दंड संहिता से Section 377 हटने के बाद bestiality एक विधायी शून्य के बीच छोड़ दिया गया है। Prevention of Cruelty to Animals Act के सामान्य प्रावधान इसे तो दंडनीय बनाते हैं, परंतु यौन शोषण की गंभीरता को पर्याप्त रूप से संबोधित नहीं करते।

    सुप्रीम कोर्ट के निर्णयAnimal Welfare Board से लेकर Navtej Singh Johar तक इस बात पर एकमत (Consensus) हैं कि पशु के साथ यौन संबंध एक घोर अपराध हैं और इसे सख्ती से दंडित (Strictly Punished) किया जाना चाहिए। संसद को चाहिए कि वह BNS में एक स्पष्ट, standalone धारा जोड़कर bestiality को फिर से एक समर्पित अपराध के रूप में निर्धारित करे। तब तक, पशु और समाज दोनों के लिए यह अधिकारिक (Official) शून्य एक चिंताजनक चुनौती बनी रहेगी।

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