धार्मिक संस्थानों में रिट अधिकारिता की सीमाएं क्या हैं?

Himanshu Mishra

19 Nov 2024 5:18 PM IST

  • धार्मिक संस्थानों में रिट अधिकारिता की सीमाएं क्या हैं?

    सुप्रीम कोर्ट ने हालिया फैसले में रिट अधिकारिता (Writ Jurisdiction) और धार्मिक संस्थानों की स्वायत्तता (Autonomy) के बीच जटिल संबंधों पर विचार किया।

    यह निर्णय धार्मिक न्यासों और मंदिरों के धर्मिक और लौकिक (Secular) मामलों में न्यायिक निगरानी की सीमा स्पष्ट करने पर केंद्रित था।

    यह मामला असम राज्य के अधिनियम (Assam State Acquisition of Lands Belonging to Religious or Charitable Institutions Act) की धारा 25ए (Section 25A) की व्याख्या और कामाख्या मंदिर के संदर्भ में धार्मिक स्वतंत्रता (Religious Freedom) के संवैधानिक सिद्धांतों पर आधारित था।

    रिट अधिकारिता (Writ Jurisdiction) की प्रासंगिकता (Applicability)

    कोर्ट ने यह पुनः स्पष्ट किया कि संविधान के अनुच्छेद 226 (Article 226) के अंतर्गत रिट अधिकारिता केवल सरकारी अधिकारियों (State Actors) या सार्वजनिक प्राधिकरणों तक सीमित नहीं है।

    इसे उन निजी संस्थानों (Private Entities) तक भी बढ़ाया जा सकता है जो सार्वजनिक कार्यों (Public Functions) को अंजाम दे रहे हैं, विशेष रूप से जब वे कार्य सार्वजनिक हित (Public Interest) को प्रभावित करते हों।

    हालांकि, यह विस्तार निरपेक्ष (Absolute) नहीं है और इसे संवैधानिक सिद्धांतों (Constitutional Principles) और विधायी मंशा (Legislative Intent) के अनुरूप होना चाहिए।

    इस मामले में, कामाख्या मंदिर और उसकी प्रबंधन इकाई (Management Body), कामाख्या देबत्तर बोर्ड (Kamakhya Debutter Board), के इस दायरे में आने पर विचार किया गया। निर्णय इस बात पर निर्भर था कि बोर्ड की गतिविधियों को सार्वजनिक कर्तव्यों (Public Duties) या मौलिक अधिकारों (Fundamental Rights) को प्रभावित करने वाले कार्यों के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है या नहीं।

    धारा 25ए (Section 25A) की विधायी व्याख्या (Statutory Interpretation)

    असम अधिनियम की धारा 25ए के तहत प्रबंधन समिति (Managing Committee) का गठन कुछ विशेष मामलों की निगरानी के लिए किया गया है, जैसे कि वार्षिकी (Annuities) के उपयोग और संस्थान के रखरखाव (Maintenance) की पुष्टि।

    कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह प्रावधान समिति की भूमिका को वित्तीय निगरानी (Financial Oversight) तक सीमित करता है और इसे मंदिर के धार्मिक या लौकिक प्रबंधन (Secular Governance) तक विस्तारित नहीं करता। इस व्याख्या ने यह सिद्धांत बनाए रखा कि धार्मिक संस्थान अपने आंतरिक मामलों के प्रबंधन में स्वायत्त बने रहते हैं, जब तक कि कानून द्वारा स्पष्ट रूप से ऐसा न किया गया हो।

    महत्वपूर्ण फैसले (Landmark Judgments) का संदर्भ

    कोर्ट ने अपने निर्णय को मजबूती देने के लिए कई कानूनी उदाहरणों का सहारा लिया:

    1. धार्मिक प्रबंधन में प्रथाओं का महत्व (Customary Practices in Religious Governance)

    न्यायिक फैसलों (Judicial Precedents) में यह बार-बार कहा गया है कि प्रथाएं (Customs) धार्मिक संस्थानों का आधार होती हैं। कोर्ट ने इसे पुनः स्पष्ट किया कि लंबे समय से चली आ रही प्रथा, जिसमें बोरदेउरी (Bordeuris) द्वारा डोलोई (Dolois) का चुनाव किया जाता है, को केवल संवैधानिक या विधायी आदेश (Legislative Mandate) के आधार पर बदला जा सकता है।

    2. धार्मिक मामलों में न्यायिक संयम (Judicial Restraint in Religious Matters)

    कोर्ट ने यह दोहराया कि न्यायपालिका को धार्मिक प्रथाओं में हस्तक्षेप करते समय सावधानी बरतनी चाहिए। अनुच्छेद 25 और 26 (Articles 25 and 26) जैसे संवैधानिक प्रावधान धार्मिक संप्रदायों (Religious Denominations) की स्वायत्तता की रक्षा करते हैं।

    3. पारंपरिक ट्रस्टियों की भूमिका (Role of Customary Trustees)

    ऐतिहासिक फैसलों ने लगातार धार्मिक ट्रस्टियों के अधिकारों को मान्यता दी है। कोर्ट ने यह रेखांकित किया कि बोरदेउरी और उनके चुने हुए प्रतिनिधि, डोलोई, कामाख्या मंदिर के प्रबंधन की एक अभिन्न (Integral) इकाई हैं।

    संबोधित प्रमुख मुद्दे (Key Issues Addressed)

    कोर्ट ने तीन प्रमुख पहलुओं पर विचार किया:

    1. धारा 25ए नियमों की वैधता (Validity of Section 25A Rules)

    धारा 25ए के तहत बनाए गए नियमों को कुछ समूहों, जैसे बोरदेउरी परिवार की महिलाओं और नानन देवलया (Nanan Devalaya) के पुरोहितों (Deories), को मंदिर प्रबंधन में भाग लेने से बाहर रखने के लिए चुनौती दी गई। कोर्ट ने इस चुनौती को खारिज करते हुए कहा कि ये नियम विधायी मंशा के अनुरूप हैं और पारंपरिक ट्रस्टियों के अधिकारों को बनाए रखते हैं।

    2. मंदिर चुनावों में लैंगिक भेदभाव (Gender Discrimination in Temple Elections)

    मंदिर चुनावों में महिलाओं को मतदान और चुनाव लड़ने से रोकने के आरोपों को अलग मुद्दा बताया गया, जिसके लिए व्यापक साक्ष्य (Comprehensive Evidence) की आवश्यकता है।

    3. कामाख्या देबत्तर बोर्ड की स्वायत्तता (Autonomy of Kamakhya Debutter Board)

    कोर्ट ने पाया कि बोर्ड को मंदिर की प्रथाओं को बदलने का कोई वैध अधिकार नहीं था और बोरदेउरी और डोलोई के अधिकार प्राथमिक थे।

    धार्मिक स्वतंत्रता और राज्य निगरानी (State Oversight) का संतुलन

    यह निर्णय धार्मिक स्वतंत्रता और पारदर्शिता (Transparency) के लिए राज्य निगरानी के बीच संतुलन को रेखांकित करता है। कोर्ट ने धार्मिक संस्थानों की स्वायत्तता बनाए रखते हुए सीमित सरकारी हस्तक्षेप (Limited State Intervention) का समर्थन किया।

    यह निर्णय धार्मिक संस्थानों में रिट अधिकारिता की सीमा को स्पष्ट करता है। प्रथाओं की पवित्रता (Sanctity) को बनाए रखते हुए राज्य की सीमित निगरानी सुनिश्चित करके, कोर्ट ने धार्मिक स्वतंत्रता और न्यायिक संयम के संवैधानिक सिद्धांतों को फिर से मजबूत किया। यह फैसला कानून, धर्म और सार्वजनिक हित (Public Interest) के बीच संतुलन साधने के लिए एक मजबूत मार्गदर्शिका प्रदान करता है।

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