संघ बनाम राजेंद्र एन. शाह: 97वें संविधान संशोधन पर सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला

Himanshu Mishra

18 Sept 2024 6:19 PM IST

  • संघ बनाम राजेंद्र एन. शाह: 97वें संविधान संशोधन पर सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला

    संघ बनाम राजेंद्र एन. शाह मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 97वें संविधान संशोधन, 2011 की संवैधानिकता पर विचार किया। इस संशोधन के जरिए संविधान में भाग IXB जोड़ा गया, जो सहकारी समितियों (Cooperative Societies) से संबंधित था। मुख्य मुद्दा यह था कि क्या इस संशोधन ने राज्यों की सहकारी समितियों पर कानून बनाने की शक्ति को प्रभावित किया, और क्या इसे संविधान के अनुच्छेद 368(2) के तहत राज्यों की मंजूरी की आवश्यकता थी। जुलाई 2021 में सुप्रीम कोर्ट का फैसला इस बात पर महत्वपूर्ण था कि संघीय ढांचे (Federalism) में केंद्र और राज्य सरकारों की शक्तियों की सीमा क्या होनी चाहिए।

    97वें संविधान संशोधन का परिचय (Background of the 97th Constitutional Amendment)

    97वें संशोधन का उद्देश्य सहकारी समितियों को मजबूत बनाना और उनकी लोकतांत्रिक और स्वायत्त (Autonomous) कार्यप्रणाली को सुनिश्चित करना था। इस संशोधन के तहत संविधान के निर्देश सिद्धांतों (Directive Principles) में एक नया अनुच्छेद 43B जोड़ा गया और सहकारी समितियों के लिए विशेष रूप से भाग IXB को शामिल किया गया। यह बदलाव सहकारी समितियों के बेहतर प्रबंधन और कार्यकुशलता को बढ़ावा देने के लिए किए गए थे।

    यह संशोधन दिसंबर 2011 में संसद द्वारा पारित किया गया और जनवरी 2012 में राष्ट्रपति की स्वीकृति प्राप्त हुई। हालांकि, सहकारी समितियां संविधान की सातवीं अनुसूची (Seventh Schedule) के तहत राज्य सूची (State List) का विषय हैं। इसलिए सवाल उठा कि क्या इस संशोधन के लिए अनुच्छेद 368(2) के तहत राज्यों की मंजूरी आवश्यक थी, जैसा कि राज्य शक्तियों पर प्रभाव डालने वाले संशोधनों के लिए जरूरी होता है।

    मामले के तथ्य (Facts of the Case)

    यह मामला तब शुरू हुआ जब गुजरात हाईकोर्ट ने 97वें संशोधन के तहत जोड़े गए भाग IXB को असंवैधानिक (Ultra Vires) घोषित कर दिया। अदालत ने यह निर्णय दिया कि चूंकि सहकारी समितियां राज्य का विषय हैं, इसलिए इस संशोधन को आधे राज्यों की मंजूरी के बिना पारित नहीं किया जा सकता था। केंद्र सरकार ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, जिससे यह मामला सामने आया।

    केंद्र सरकार का तर्क था कि यह संशोधन उनकी संवैधानिक शक्तियों के तहत था, क्योंकि इसका उद्देश्य सहकारी समितियों की कार्यप्रणाली में सुधार लाना था। सरकार ने यह भी बताया कि कई राज्यों ने संशोधन के प्रावधानों के अनुसार अपने सहकारी कानूनों को भी अपडेट किया है।

    संविधान से जुड़े प्रमुख प्रावधान (Key Constitutional Provisions Involved)

    1. अनुच्छेद 368(2) – संविधान संशोधन की प्रक्रिया (Procedure for Amending the Constitution)

    अनुच्छेद 368(2) संविधान संशोधन की प्रक्रिया को निर्धारित करता है। इसके तहत, यदि कोई संशोधन संघ और राज्यों की शक्तियों के वितरण (Distribution of Powers) को प्रभावित करता है, तो उसे राज्य विधानसभाओं के आधे सदस्यों द्वारा मंजूरी मिलनी चाहिए।

    2. सातवीं अनुसूची – राज्य सूची, संघ सूची और समवर्ती सूची (Seventh Schedule – State List, Union List, and Concurrent List)

    संविधान की सातवीं अनुसूची में संघ और राज्यों के बीच विधायी शक्तियों का वितरण किया गया है। सहकारी समितियां राज्य सूची की प्रविष्टि 32 (Entry 32) में आती हैं, जिसका अर्थ है कि सहकारी समितियों पर कानून बनाने का अधिकार केवल राज्य विधानसभाओं के पास है।

    3. भाग IXB – सहकारी समितियां (Part IXB – Cooperative Societies)

    97वें संशोधन के जरिए भाग IXB को शामिल किया गया, जिसमें सहकारी समितियों के लोकतांत्रिक संचालन, नियमित चुनाव और पेशेवर प्रबंधन से संबंधित प्रावधान थे। यह एकरूपता (Uniformity) लाने का प्रयास था ताकि सभी राज्यों में सहकारी समितियों की कार्यप्रणाली सुधारी जा सके।

    याचिकाकर्ताओं के तर्क (Arguments by the Petitioners - Rajendra N. Shah)

    याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि सहकारी समितियां संविधान की राज्य सूची के अंतर्गत आती हैं और इसलिए केवल राज्य विधानसभाओं को इस पर कानून बनाने का अधिकार है। भाग IXB को शामिल कर केंद्र सरकार ने राज्यों की विधायी शक्तियों का अतिक्रमण (Encroachment) किया है। इसके अलावा, चूंकि यह संशोधन राज्यों की शक्तियों पर प्रभाव डालता है, इसे राज्य विधानसभाओं की मंजूरी के बिना पारित नहीं किया जा सकता था, जो कि अनुच्छेद 368(2) के तहत आवश्यक है।

    याचिकाकर्ताओं ने यह भी तर्क दिया कि यह संशोधन संघीय संरचना (Federal Structure) को कमजोर करता है और केंद्र व राज्य सरकारों के बीच सत्ता के संतुलन को बिगाड़ता है।

    केंद्र सरकार के तर्क (Arguments by the Union of India)

    केंद्र सरकार का तर्क था कि 97वें संशोधन ने संघ और राज्यों के बीच शक्तियों के वितरण को नहीं बदला है। सरकार ने कहा कि यह संशोधन केवल सहकारी समितियों की बेहतर कार्यप्रणाली को सुनिश्चित करने के लिए था, खासकर उन समितियों के लिए जो राज्य की सीमाओं से बाहर संचालित होती हैं।

    सरकार ने यह भी कहा कि संशोधन ने राज्यों की किसी शक्ति को नहीं छीना, बल्कि सहकारी समितियों के कामकाज में एक रूपरेखा प्रदान की। सरकार ने यह भी बताया कि कई राज्यों ने पहले से ही अपने कानूनों को 97वें संशोधन के अनुरूप कर लिया है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि इस संशोधन को व्यापक स्वीकृति प्राप्त है।

    सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण (Supreme Court's Analysis)

    सुप्रीम कोर्ट ने सहकारी समितियों पर कानून बनाने के लिए संघ की शक्ति का विश्लेषण किया। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि सहकारी समितियां स्पष्ट रूप से सातवीं अनुसूची की राज्य सूची में आती हैं, जिसका अर्थ है कि इस पर कानून बनाने का अधिकार केवल राज्यों के पास है।

    कोर्ट ने यह भी देखा कि अनुच्छेद 368(2) के तहत, यदि कोई संशोधन संघ और राज्यों के बीच शक्तियों के वितरण को प्रभावित करता है, तो उसे राज्य विधानसभाओं की मंजूरी की आवश्यकता होती है। चूंकि 97वें संशोधन ने सहकारी समितियों पर राज्यों की विधायी क्षमता को प्रभावित किया, इसलिए इसके लिए राज्य विधानसभाओं की मंजूरी आवश्यक थी।

    सुप्रीम कोर्ट का निर्णय (Judgment of the Supreme Court)

    सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए 97वें संशोधन के तहत शामिल भाग IXB को असंवैधानिक घोषित किया, जहां तक यह राज्य सहकारी समितियों पर लागू होता है। अदालत ने कहा कि चूंकि यह संशोधन राज्यों की सहकारी समितियों पर कानून बनाने की शक्तियों को प्रभावित करता है, इसलिए इसे राज्य विधानसभाओं की मंजूरी के बिना पारित नहीं किया जा सकता था।

    हालांकि, अदालत ने यह भी कहा कि जो प्रावधान मल्टी-स्टेट सहकारी समितियों (Multi-State Cooperative Societies) से संबंधित थे, वे वैध हैं। मल्टी-स्टेट सहकारी समितियां संघ सूची की प्रविष्टि 44 (Entry 44) के तहत आती हैं और इस पर केंद्र सरकार को कानून बनाने का अधिकार है। इसलिए, इन प्रावधानों के लिए राज्य मंजूरी की आवश्यकता नहीं थी।

    संघ बनाम राजेंद्र एन. शाह मामला संविधान में संघवाद (Federalism) के सिद्धांत की पुष्टि करता है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने स्पष्ट किया कि केंद्र सरकार राज्यों के विशिष्ट अधिकार क्षेत्रों में हस्तक्षेप नहीं कर सकती। अदालत ने राज्य सहकारी समितियों पर लागू भाग IXB को असंवैधानिक करार दिया, जिससे यह सुनिश्चित हुआ कि संघीय संरचना में राज्यों की विधायी शक्तियों की सुरक्षा हो।

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