Transfer Of Property Act में शर्त पूरी होने पर अंतरण

Shadab Salim

16 Jan 2025 4:09 AM

  • Transfer Of Property Act में शर्त पूरी होने पर अंतरण

    यह धारा पुरोभाव्य शर्त के अनुपालन के सम्बन्ध में प्रावधान प्रस्तुत करती है। चूँकि विधि की यह अवधारणा है कि सम्पत्ति यथाशीघ्र किसी न किसी व्यक्ति में निहित हो जाए। अतः यह धारा उपबन्धित करती है कि यदि शर्त पुरोभाव्य है तो हित को निहित होने के लिए शर्त का सारवान अनुपालन पर्याप्त होगा। यदि अन्तरक की इच्छा को पूर्णरूपेण प्रभावी बनाना सम्भव है तो उसे पूर्ण रूपेण प्रभावी बनाया जाना चाहिए, किन्तु यदि ऐसा करना सम्भव नहीं है तो जिस समीपस्थ सीमा तक सम्भव, युक्तियुक्त या समुचित हो, अन्तरक की इच्छा का अनुपालन होना चाहिए। अतः शर्त का अनुपालन शर्त पूर्ण होने के लिए पर्याप्त माना गया है।

    सारवान अनुपालन - शर्त का किसी सीमा तक पूर्ण किया जाना सारवान अनुपालन होगा, इस सम्बन्ध में कोई निश्चित सिद्धान्त नहीं विकसित हुआ है। बेनी चन्द बनाम इकरम अहमद के वाद में इस प्रश्न पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दो भिन्न मत व्यक्त किए थे। न्यायमूर्ति मुखर्जी ने यह मत व्यक्त किया था कि शर्त के अनुपालन हेतु जितने व्यक्तियों की सम्मति आवश्यक है उनमें से आधे से अधिक अथवा आधे को सम्मति आवश्यक होगी, किन्तु न्यायमूर्ति व्यास का मत था सारवान अनुपालन हेतु सांख्यकीय बहुलता आवश्यक नहीं है। इसके बजाय अन्तरक की इच्छा को ध्यान में रखकर यह निर्धारित करना अधिक उपयुक्त होगा कि शर्त का सारतः अनुपालन हुआ है। अथवा नहीं।

    जस्टिस मुखर्जी के मत को कथिंगटन बनाम इवैन्स के वाद से भी समर्थन प्राप्त होता है। इस वाद में यह मत भी व्यक्त किया गया था कि यदि एक निष्पादक अथवा न्यासी विरोध प्रकट करता है तो बहुमत की सम्मति महत्वपूर्ण होगा।

    कार्यकारी नियम के रूप में यह प्रतिपादित किया जा सकता है कि यदि अन्तरक की इच्छा की पूर्ति तथा सामोप्य (साइप्रस ) के रूप में क्रियान्वित की जा सकती है तो शर्त का अनुपालन सारतः मान लिया जाएगा। ऐसा करना वहाँ अधिक उपयुक्त होगा जहाँ अन्तरक की इच्छा परिणाम के प्रति अधिक थी बजाय साधन के।

    उदाहरणार्थ- अ ने अपनी सम्पत्ति का दान अपनी दो भतीजियों को इस शर्त के साथ किया कि वे उसकी मृत्यु के समय अमेरिका में होंगी। एक भतीजी अस्थायी रूप से तत्समय जर्मनी में थी। यह अभिनिर्णीत हुआ कि वह भतीजी भी दान में सम्मिलित है।

    रांजी बनाम गोविन्दा के वाद में क ने ख के पक्ष में एक विक्रय विलेख निष्पादित किया जिसमें शर्त यह थी कि ख के पिता कतिपय ऋणों का भुगतान करें। ख के पिता ने ऋण के एक अंश का भुगतान किया और शेष ऋण का भुगतान स्वयं ख ने किया। यह अभिनिर्णीत हुआ कि ख के पिता तथा स्वयं ख द्वारा ऋण का भुगतान शर्त के सारतः अनुपालन के तुल्य है।

    इसी प्रकार पोलक बनाम क्राफ्ट के वाद में अ ने अपनी व्यक्तिगत सम्पदा ब को इस शर्त के साथ दी कि वह स की सम्मति से विवाह करे। स ने एक सामान्य स्वीकृति ब को विवाह करने के लिए प्रदान कर दी। बाद में ब ने स के ज्ञान के बगैर विवाह कर लिया। यह अभिनिर्णीत हुआ कि शर्त का सारतः अनुपालन हो गया है।

    आवास की शर्त यदि किसी मकान अथवा स्थान में आवास के सम्बन्ध में शर्त लगायी गयी है तो ऐसी शर्त वैध होगी। ऐसी शर्त के अन्तर्गत साधारणतया स्थायी निवास के लिए शर्त होती है। किन्तु यदि शर्त में किसी विशिष्ट स्थिति का उल्लेख नहीं किया गया है, तो अस्थायी या कालिक निवास भी पर्याप्त होगा

    वैकल्पिक शर्त – यदि अन्तरक ने वैकल्पिक शर्त अधिरोपित किया है तो किसी भी एक शर्त का अनुपालन पर्याप्त होगा और उसका अनुपालन होते ही सम्पत्ति निहित हो जाएगी। उदाहरणार्थ अ ने ब को अपनी सम्पत्ति 18 वर्ष की आयु प्राप्त करने अथवा अपने माता-पिता की सम्मति से विवाह करने की शर्त के साथ अन्तरित किया। ब ने 17 वर्ष की आयु में अपनी माता की सम्मति से विवाह कर लिया। उसके पिता ने संसार त्याग दिया था। यह समझा जाएगा कि उसने शर्त पूर्ण कर दी है। और विवाह के उपरान्त सम्पत्ति उसमें निहित हो जाएगी।।

    शर्त पूर्ण करने का समय - यदि शर्त के अनुपालन के सम्बन्ध में कोई अवधि निर्धारित नहीं की गयी है तो अन्तरिती जब भी शर्त पूर्ण करेगा उसे सम्पत्ति में हित प्राप्त हो जाएगा। किन्तु इस प्रयोजन हेतु यदि कोई समय निर्धारित कर दिया गया है तो शर्त उस अवधि के पूर्ण होने तक पूरी हो जानी चाहिए। यदि शर्त का अनुपालन निर्धारित अवधि के बीतने के बाद किया जाता है, किन्तु युक्तियुक्त अवधि के भीतर तो अनुपालन अवैध होगा। जब शर्त सुस्पष्ट हो तो अनुपालन उसी के अनुसार होना चाहिए।

    भारतीय विधि के विपरीत इंग्लिश विधि का यह एक मान्य सिद्धान्त है कि यदि निर्धारित अवधि बीतने के बाद किन्तु युक्तियुक्त अवधि के अन्दर शर्त का अनुपालन कर दिया जाता है, तो ऐसे अनुपालन को पर्याप्त माना जाएगा, यदि पक्षकारों को उसी स्थिति में रखा जा सके जैसा की शर्त का यथावत अनुपालन होने पर हुआ होता

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