अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 (SC ST Act) भाग :2 अधिनियम की धारा 3 से संबंधित प्रमुख बातें
Shadab Salim
17 Oct 2021 9:00 AM IST
अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 (Scheduled Caste and Scheduled Tribe (Prevention of Atrocities) Act, 1989) के अंतर्गत धारा 3 सर्वाधिक महत्वपूर्ण धारा है। यह धारा एक प्रकार से एक सहिंता के समान है। इस एक धारा में ही समस्त अधिनियम को समाहित तो नहीं किया गया है परंतु यह कहा जा सकता है कि इस एक धारा में 50 फ़ीसदी अधिनियम को समाहित कर दिया गया है।
इस धारा के अंतर्गत उन सभी अपराधों का उल्लेख किया गया है जो अत्याचार से संबंधित है। इस आलेख के अंतर्गत इस धारा को उसके मूल स्वरूप में प्रस्तुत किया जा रहा है तथा उससे संबंधित विशेष बातें तथा न्याय निर्णय का उल्लेख किया जा रहा है। इसके बाद अगले भागों में भी इस धारा से संबंधित विशेष बातों को प्रकाशित किया जाएगा।
अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 (SC ST Act) भाग :1 अधिनियम का परिचय
भारत के पार्लियामेंट ने इस अधिनियम में इस धारा के मूल स्वरूप को कुछ इस प्रकार प्रस्तुत किया है-
3. अत्याचार के अपराधों के लिए दंड-1[ (1) कोई भी व्यक्ति, जो अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का सदस्य नहीं है-
(क) अनुसूचति जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य के मुख में कोई अखाद्य या घृणाजनक पदार्थ रखता है या ऐसे सदस्य को ऐसे अखाद्य या घृणाजनक पदार्थ पीने या खाने के लिए मजबूत करेगा;
(ख) अनूसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य द्वारा दखलकृत परिसरों में या परिसरों के प्रवेश द्वार पर मल-मूत्र, मल, पशु-शव या कोई अन्य घृणा जनक पदार्थ इकट्ठा करेगा;
(ग) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को क्षति करने, अपमानित करने या क्षुब्ध करने के आशय से उसके पड़ोस में मल-मूत्र, कूड़ा, पशु-शव या कोई अन्य घृणाजनक पदार्थ इकट्ठा करेगा;
(घ) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को जूतों की माला पहनाएगा या नग्न या अर्धनग्न घुमाएगा;
(ङ) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्य पर बलपूर्वक ऐसा कोई कार्य करेगा जैसे व्यक्ति के कपड़े उतारना, बलपूर्वक सिर का मुण्डन करना, मूँछे हटाना, चेहरे या शरीर को पोतना या ऐसा कोई अन्य कार्य करना, जो मानव गरिमा के विरुद्ध है;
(च) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य के स्वामित्वाधीन या उसके कब्जे में या उसको आवंटित या किसी सक्षम अधिकारी द्वारा उसको आवंटित किये जाने के लिए अधिसूचित किसी भूमि को सदोष अधिभोग में लेगा या उस पर खेती करेगा या ऐसी भूमि को अन्तरित करा लेगा;
(छ) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्य को उसकी भूमि या परिसरों से सदोष बेकब्जा करेगा या किसी भूमि या परिसरों या जल या सिंचाई सुविधाओं पर वन अधिकारों सहित उसके अधिकारों के उपभोग में हस्तक्षेप करेगा या उसकी फसल को नष्ट करेगा या उसके उत्पाद को ले जायेगा; स्पष्टीकरण-खण्ड (च) और इस खण्ड के प्रयोजनों के लिए, "सदोष" पद में:-
निम्नलिखित सम्मिलित हैं
(अ) व्यक्ति की इच्छा के विरुद्धः
(आ) व्यक्ति की सहमति के बिना;
(३) व्यक्ति की सहमति से, जहाँ ऐसी सहमति, व्यक्ति या किसी ऐसे अन्य व्यक्ति को, जिसके व्यक्ति हितबद्ध है, मृत्यु या उपहति का भय दिखाकर, अभिप्राप्त की गई है; या
(ई) ऐसी भूमि के अभिलेखों को बनाना;
(ज) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को 'बेगार' करने के लिए या सरकार द्वारा लोक प्रयोजनों के लिए अधिरोपित किसी अनिवार्य सेवा से भिन्न अन्य प्रकार के बलात्श्रम या बंधुआ श्रम करने के लिए तैयार करेगा;
(झ) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को मानव या पशु-शवों की अंत्येष्टि या ले जाने या कब्रों को खोदने के लिए विवश करेगा;
(ञ) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्य को हाथ से सफाई करने के लिए तैयार करेगा या ऐसे प्रयोजन के लिए ऐसे सदस्य का नियोजन करेगा या नियोजन को अनुज्ञात करेगा;
(ट) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति की स्त्री को, किसी देवदासी के रूप में पूजा, मंदिर या किसी अन्य धार्मिक संस्थान को देवी, मूर्ति या पात्र के समर्पण को या वैसी ही किसी अन्य प्रथा को निष्पादित या संवर्धन करेगा या पूर्वोक्त कार्यों को अनुज्ञात करेगा;
(ठ) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्य को, निम्नलिखित के लिए मजबूर या अभित्रस्त या निवारित करेगा:-
(अ) मतदान न करने या किसी विशिष्ट अभ्यर्थी के लिए मतदान करने या विधि द्वारा उपबन्धित से भिन्न रीति से मतदान करने,
(आ) किसी अभ्यर्थी के रूप में नामनिर्देशन फाइल न करने या ऐसे नामनिर्देशन को प्रत्याहत करने; या
(इ) किसी निर्वाचन में अभ्यर्थी के रूप में अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्य के नामनिर्देशन का प्रस्ताव या समर्थन नहीं करेंगे;
(ड) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी ऐसे को, जो संविधान के भाग 9 के अधीन पंचायत या संविधान के भाग 9 क के अधीन नगरपालिका का सदस्य या अध्यक्ष या किसी अन्य पद का धारक है, उसके सामान्य कर्तव्यों या कृत्यों के पालन में मजबूर या अभित्रस्त या बाधित करेगा;
(ढ) मतदान के पश्चात्, अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को उपहति या घोर उपहति या हमला करेगा या सामाजिक या आर्थिक बहिष्कार अधिरोपित करेगा या अधिरोपित करने की धमकी देगा या किसी ऐसी लोक सेवा के उपलब्ध फायदों से, निवारित करेगा, जो उसको प्राप्त हैं;
(ण) किसी विशिष्ट अभ्यर्थी के लिए मतदान करने या उसको मतदान नहीं करने या विधि द्वारा उपबन्धित रोति से मतदान करने के लिए अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य के विरुद्ध इस अधिनियम के अधीन कोई अपराध करेगा;
(त) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य के विरुद्ध मिथ्या, द्वेषपूर्ण या तंग करने वाला वाद या दाण्डिक या अन्य विधिक कार्यवाहियाँ संस्थित करेगा;
(घ) किसी लोक सेवक को कोई मिथ्या या तुच्छ सूचना देगा जिससे ऐसा लोक सेवक अपनी विधिपूर्ण शक्ति का प्रयोग अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को क्षति करने या क्षुब्ध करने के लिए करेगा;
(द) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को अवमानित करने के आशय करेगा; लोक दृष्टि में आने वाले किसी स्थान पर रमानित या अभित्रस्त
(ध) लोक दृष्टि में आने वाले किसी स्थान पर जाति के नाम से अनुसूचित अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को गाली जाति से गलौज करेगा;
(न) अनुसूचित जातियों या अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों द्वारा सामान्यतया धार्मिक मानी जाने वाली या अति श्रद्धा से ज्ञात किसी वस्तु को नष्ट करेगा, हानि पहुँचाएगा या अपवित्र करेगा; स्पष्टीकरण- इस खण्ड के प्रयोजनों के लिए "वस्तु" पद से अभिप्रेत है और इसके अन्तर्गत मूर्ति, फोटो और रंगचित्र है;
(प) अनुसूचित जातियों या अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों के विरुद्ध शत्रुता, घृणा या वैमनस्य की भावनाओं की या तो लिखित या मौखिक शब्दों द्वारा या चिह्नों द्वारा या दृश्य रूपण द्वारा या अन्यथा, अभिवृद्धि करेगा या अभिवृद्धि करने का प्रयत्न करेगा;
(फ) अनुसूचित जातियों या अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों द्वारा अति श्रद्धा से माने जाने वाले किसी दिवंगत व्यक्ति का या तो लिखित या मौखिक शब्दों द्वारा या किसी अन्य साधन से अनादर करेगा;
(ब)
(1) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति की किसी स्त्री को साशय, यह जानते हुए स्पर्श करेगा कि वह अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति से सम्बन्धित है, जबकि स्पर्श करने का ऐसा कार्य, लैंगिक प्रकृति का है और प्राप्तिकर्ता की सहमति के बिना है;
(ii) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति की किसी स्त्री के बारे में, यह जानते हुए कि वह अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति से सम्बन्धित है, लैंगिक प्रकृति के शब्दों, कार्यों या अंगविक्षेपों का उपयोग करेगा;
स्पष्टीकरण- उपखण्ड (1) के प्रयोजनों के लिए "सहमति" पद से कोई सुस्पष्ट स्वैच्छिक करार अभिप्रेत है, जब कोई व्यक्ति शब्दों, अंगविक्षेपों या अमौखिक संसूचना के किसी रूप में विनिर्दिष्ट कार्य में भागीदारी की रजामंदी को संसूचित करता है: परन्तु अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति की कोई स्त्री, जो लैंगिक प्रकृति के किसी कार्य में शारीरिक अवरोध नहीं करती है, केवल इस तथ्य के कारण लैंगिक क्रियाकलाप में सहमति के रूप में नहीं माना जायेगा : परन्तु यह और कि स्त्री का लैंगिक इतिहास, अपराधी के साथ लैंगिक इतिहास सहित, सहमति विवक्षित नहीं करता है या अपराध को कम नहीं करता है;
(भ) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्य द्वारा सामान्यतः उपयोग किये जाने वाले किसी स्रोत, जलाशय या किसी अन्य स्रोत के जल को दूषित या गंदा करेगा जिससे वह ऐसे प्रयोजन के लिए कम उपयुक्त हो जाये जिसके लिए वह साधारणतया उपयोग किया जाता है;
(म) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को लोक समागम के किसी स्थान से गुजरने के किसी रूढ़िजन्य अधिकार से इन्कार करेगा या ऐसे सदस्य को लोक समागम के ऐसे स्थान का उपयोग करने या उस पर पहुँच रखने से निवारित करने के लिए बाधा पहुँचाएगा जिसमें जनता या उसके किसी अन्य वर्ग के सदस्यों को उपयोग करने और पहुँच रखने का अधिकार है;
(य) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को उसका गृह, ग्राम या निवास का अन्य स्थान छोड़ने के लिए मजबूर करेगा या मजबूर करवाएगा : परन्तु इस खण्ड को कोई बात किसी लोक कर्तव्य के निर्वहन में की गई किसी कार्रवाई को लागू नहीं होगी;
(यक) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्य को निम्नलिखित के सम्बन्ध में किसी रीति से बाधित या निवारित करेगा
(अ) किसी क्षेत्र के सम्मिलित सम्पत्ति संसाधनों का या अन्य व्यक्तियों के साथ समान रूप से कब्रिस्तान या श्मशान भूमि का उपयोग करना या किसी नदी, सरिता, झरना, कुंआ, तालाब, कुण्ड, नल या अन्य जलीय स्थान या कोई स्नान घाट, कोई सार्वजनिक परिवहन, कोई सड़क या मार्ग का उपयोग करना;
(आ) साइकिल या मोटर साइकिल आरोहण या सवारी करना या सार्वजनिक स्थानों में जूते या नये कपड़े पहनना या विवाह की शोभा यात्रा निकालना या विवाह की शोभा यात्रा के दौरान घोड़े या किसी अन्य यान पर आरोहण करना;
(इ) जनता या समान धर्म के अन्य व्यक्तियों के लिए खुले किसी पूजा स्थल में प्रविष्ट करना या जाटरस सहित किसी धार्मिक, सामाजिक या सांस्कृतिक शोभा यात्रा में भाग लेना या उसको निकालना;
(ई) किसी शैक्षणिक संस्था, अस्पताल, औषधालय, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र, दुकान या लोक मनोरंजन या किसी अन्य लोक स्थान प्रविष्ट होने या जनता के लिए खुले किसी स्थान में सार्वजनिक उपयोग के लिए अभिप्रेत कोई उपकरण या वस्तुएँ या
(उ) किसी वृत्तिक में व्यवसाय करना या किसी ऐसी उपजीविका, व्यापार, कारबार या किसी नौकरी में नियोजन करना, जिसमें जनता या उसके किसी वर्ग के अन्य लोगों को उपयोग करने या उस तक पहुँच का अधिकार
(यख) जादू-टोना करने या डाइन होने के अभिकथन पर अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्य को शारीरिक हानि पहुंचाएगा या मानसिक यंत्रणा देगा; या (यग) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी व्यक्ति या कुटुम्ब या उसके किसी समूह का सामाजिक या आर्थिक बहिष्कार करेगा या उसको धमकी देगा।
वह, कारावास से, जिसकी अवधि छह मास से कम की नहीं होगी, किन्तु जो पाँच वर्ष तक की हो सकेगी, और जुर्माने से, दण्डनीय होगा।]
(2) कोई भी व्यक्ति, जो अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का सदस्य नहीं है
(1) मिथ्या साक्ष्य देगा या गढ़ेगा जिससे उसका आशय अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी ऐसे सदस्य को किसी अपराध के लिए जो तत्समय प्रवृत्त विधि द्वारा मृत्युदंड से दंडनीय है, दोषसिद्ध कराना है या वह यह जानता है कि इससे उसका दोषसिद्ध होना संभाव्य है, वह आजीवन कारावास से और जुर्माने से दंडनीय होगा; और यदि अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी निर्दोष सदस्य को ऐसे मिथ्या या गढ़े हुए साक्ष्य के फलस्वरूप दोषसिद्ध किया जाता है और फांसी दी जाती है तो वह व्यक्ति, जो ऐसा मिथ्या साक्ष्य देता या गढ़ता है, मृत्यु दंड से दंडनीय होगा;
(ii) मिथ्या साक्ष्य देगा या गढ़ेगा जिससे उसका आशय अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को ऐसे अपराध के लिए जो मृत्यु दण्ड से दण्डनीय नहीं है किन्तु सात वर्ष या उससे अधिक की अवधि के कारावास से दण्डनीय है, दोषसिद्ध कराना है या वह यह जानता है कि उससे उसका दोषसिद्ध होना संभाव्य है, वह कारावास से, जिसकी अवधि छह मास से कम की नहीं होगी किन्तु जो सात वर्ष या उससे अधिक की हो सकेगी और जुर्माने से, दण्डनीय होगा;
(iii) अग्नि या किसी विस्फोटक पदार्थ द्वारा रिष्टि करेगा जिससे उसका आशय अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य की किसो सम्पत्ति को नुकसान पहुंचाना है या वह यह जानता है कि उससे ऐसा होना संभाव्य है वह कारावास से, जिसकी अवधि छह मास से कम की नहीं होगी किन्तु जो सात वर्ष तक की हो सकेगी और जुर्माने से, दण्डनीय होगा;
(iv) अग्नि या किसी विस्फोटक पदार्थ द्वारा रिष्टि करेगा जिससे उसका आशय किसी ऐसे भवन को जो अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य द्वारा साधारणत: पूजा के स्थान के रूप में या मानव आवास के स्थान के रूप में या सम्पत्ति की अभिरक्षा के लिए किसी स्थान के रूप में उपयोग किया जाता है, नष्ट करता है या वह यह जानता है कि उससे ऐसा होना संभाव्य है, वह आजीवन कारावास से और जुर्माने से, दण्डनीय होगा;
(v) भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) के अधीन दस वर्ष या उससे अधिक की अवधि के कारावास से दण्डनीय कोई अपराध [ किसी व्यक्ति या सम्पत्ति के विरुद्ध यह जानते हुए करेगा कि ऐसा व्यक्ति अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का सदस्य है या ऐसी सम्पत्ति ऐसे सदस्य को है] वह आजीवन कारावास से, और जुर्माने से, दण्डनीय होगा;
2[ (v-क) अनुसूची में विनिर्दिष्ट कोई अपराध किसी व्यक्ति या सम्पत्ति के विरुद्ध यह जानते हुए करेगा कि ऐसा व्यक्ति अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का सदस्य है या वह सम्पत्ति ऐसे सदस्य की है, वह ऐसे अपराधों के लिए भारतीय दण्ड संहिता के अधीन यथा विनिर्दिष्ट दण्ड से दण्डनीय होगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।]
(vi) यह जानते हुए या यह विश्वास करने का कारण रखते हुए कि इस अध्याय के अधीन कोई अपराध किया गया है, वह अपराध किये जाने के किसी साक्ष्य को, अपराधी को विधिक दण्ड से बचाने के आशय से गायब करेगा या उस आशय से अपराध के बारे में कोई ऐसी जानकारी देगा जो वह जानता है या विश्वास करता है कि वह मिथ्या है, वह उस अपराध के लिए उपबन्धित दण्ड से दण्डनीय होगा; या
(vii) लोक सेवक होते हुए इस धारा के अधीन कोई अपराध करेगा, वह कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष से कम की नहीं होगी किन्तु जो उस अपराध के लिए उपबन्धित दण्ड तक हो सकेगी, दण्डनीय होगा।
निर्दोषिता की उपधारणा :-
निर्दोषिता की उपधारणा मानव अधिकार है। निःसंदेह कतिपय परिस्थितियों में अभियुक्त पर सबूत का भार अधिरोपित करना अनुज्ञेय हो सकता है, परन्तु दोषी होने की इस तरह से उपधारणा नहीं हो सकती है, जिससे कि किसी व्यक्ति को किसी स्वतन्त्र फोरम अथवा न्यायालय के समक्ष अवसर के बिना उसकी स्वतन्त्रता से वंचित किया जा सके। निर्दोष नागरिकों को ऐसे अभियुक्त के रूप में कहा जाता है, जो विधायिका के द्वारा आशयित न हो। विधायिका को अत्याचार अधिनियम का प्रयोग ब्लैकमेल करने के उपकरण अथवा वैयक्तिक वैमनस्य पूरा करने के उपकरण के रूप में प्रयोग करने के लिए आशयित कभी नहीं थी। अधिनियम लोक सेवकों को उनके सद्भावपूर्वक कर्तव्यों को सम्पन्न करने से भयभीत करने के लिए भी आशयित नहीं है। इस प्रकार जब तक अग्रिम जमानत को वास्तविक मामलों तक ही सीमित तथा ऐसे मामलों, जहाँ प्रथम दृष्टया मामला नहीं बनता है, के लिए अप्रयोज्यनीय बनाने के लिए नहीं होता है, तब तक निर्दोष नागरिकों को कोई संरक्षण उपलब्ध नहीं होगा। इस प्रकार, अग्रिम जमानत के अपवर्जन को ऐसे मामलों तक सीमित करना संविधान के अनुच्छेद 21 के अधीन प्राण और स्वतन्त्रता के मौलिक अधिकार के संरक्षण के लिए आवश्यक है।
इस धारा का विस्तार: -
वर्तमान मामले में, अभिलेख पर यह दर्शाने के लिए साक्ष्य नहीं है कि घटना अपीलार्थी के द्वारा इस आधार पर कारित की गयी थी कि पीड़ित व्यक्ति अनुसूचित जाति से सम्बन्धित है। यह तथ्य कि पीड़ित व्यक्ति अनुसूचित जाति से सम्बन्धित है, स्वयं द्वारा मामले को अ० जा०/अ० जन० अधिनियम की धारा 3 (2) (v) की परिधि के भीतर लाने के लिए पर्याप्त नहीं है।
बिमल गोरई बनाम स्टेट आफ वेस्ट बंगाल, 2012 क्रि० ला० ज० 200 (कल०) के मामले में कहा गया है कि अ० जा० अ० जन० अधिनियम की धारा 3 के लिए बहुत विशेषित वाक्य "अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों का सदस्य न होते हुए" है, जो उक्त अधिनियम के दाण्डिक परिणामों की परिधि से अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों को अपवर्जित करती है और यह साबित करने के लिए उक्त अधिनियम के अधीन दण्डनीय अपराध से किसी व्यक्ति को अभियोजित करने के लिए अभियोजन को फंसाती है कि सम्बद्ध अभियुक्त अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों के समुदाय से सम्बन्धित नहीं है। अभियुक्त को वहाँ दोषसिद्ध नहीं किया जा सकता है, जहाँ धारा 313, द० प्र० सं० के अधीन परीक्षा के दौरान उसके द्वारा ऐसा कुछ भी प्रस्तुत नहीं किया गया है कि वह अनुसूचित जातियों अथवा अनुसूचित जनजातियों का सदस्य न होते हुए पीड़ित महिला के विरुद्ध धारा 376, भा० दं० सं० के अधीन अपराध कारित किया था।
प्रयोज्यता:-
यह सत्य है कि अवर न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित करते हुए आदेश पारित किया कि अ० जा०/ अ० जन० अधिनियम की धारा 3 और 4 केवल इस आधार पर लागू होती है कि परिवादीगण को मन्दिर में पूजा करने हेतु प्रवेश करने के लिए अनुज्ञात नहीं किया गया था, परन्तु यह आवश्यक तत्व अधिनियम की धारा 3 के किसी भी खण्ड में विद्यमान होना प्रतीत नहीं होता है। जब तक अधिनियम की धारा 3 के अधीन प्रगणित खण्ड आकर्षित नहीं होते हैं, तब तक धारा 3 लागू नहीं होगी।
जहाँ अनुसूचित जाति के सदस्य की मृत्यु कारित की गयी थी, जो इस आधार पर कारित नहीं की गई थी कि मृतक अनुसूचित जाति का सदस्य था, इसलिए मात्र यह तथ्य कि मृतक अनुसूचित जाति का सदस्य था, सामान्यत: अ० जा०/ अ० जन० अधिनियम, 1989 के प्रावधानों को आकर्षित नहीं करेगा। अभियुक्त की दोषसिद्धि उचित नहीं थी।
पालिका श्रीनिवास कुमार बनाम स्टेट आफ आन्ध्र प्रदेश, 2006 क्रि० ला० ज० (एन० ओ० सी०) 5361 जहाँ परिवादिनी ईसाई, न कि अनुसूचित जाति की सदस्य थी, जिसे दस्तावेजी साक्ष्य के आधार पर साबित किया गया था, इसलिए अ० जा०/ अ० जन० अधिनियम के प्रावधान आकर्षित नहीं होते थे। में परिवादिनी के अनुसार अभियुक्त उसके घर में घुस गया और उसे भद्दी भाषा में डांटा, जो सार्वजनिक स्थान नहीं था। अभियुक्त उन्मोचित किये जाने के लिए हकदार है।
अधिनियम की धारा 3 - वैधता- के० सी० वसन्त कुमार बनाम स्टेट ऑफ कर्नाटक, ए० आई० आर० 1985 एस० सी० 1495 के मामले में उच्चतम न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया कि:
"यदि गरीबी कारण हो, जाति सामाजिक पिछड़ेपन का प्राथमिक संकेतक हो, जिससे कि किसी व्यक्ति की जाति के संदर्भ में सामाजिक पिछड़ापन आसानी से पहचाने जाने योग्य हो सके। इसलिए यह दुखद रूप से तथा दमनात्मक रूप से हमारे देश में जाति में इतना गहराई से जमा हुआ है कि यह धर्म के अवरोध को भी आर-पार काट दिया है। जाति प्रणाली ने अन्य धर्मों तथा गैरसंवेदी हिन्दू क्रियाकलापों में, जिसके लिए जाति का व्यवहार अभिशाप होना चाहिए, हस्तक्षेप किया है और आज हम यह पाते हैं कि अन्य धार्मिक विश्वासों के अनुयायी तथा गैर संवेदी हिन्दू कभी-कभी जाति प्रणाली के पालन के लिए इतना कठोर हो जाते हैं, जैसे कि वे रूढ़िवादी हिन्दू हों।"
सर्वोच्च न्यायालय विगत दशकों से सामाजिक संरचना में कोई परिवर्तन नहीं पाता है, जिससे कि मामले पर भिन्न विचार अपनाया जा सके। विद्वान न्यायाधीश का उक्त संप्रेक्षण इस बात का पूर्ण उत्तर है कि मुस्लिमों तथा ईसाईयों को, जो जाति प्रणाली में विश्वास नहीं करते हैं, अधिनियम की धारा 3 की परिधि के भीतर नहीं लाया जाना चाहिए।
दोषमुक्ति:- सुन्दर लाल बनाम स्टेट ऑफ मध्य प्रदेश, 2012 क्रि० लॉ० ज० (एन० ओ० सी०) 391 (एम० पी०)। यह अभिक्थन किया गया था कि अभियुक्त ने परिवादी को उसे 'चमार'कह करके तब अपमानित किया, जब वह साइकिल की दुकान के सामने खड़ा था। अभियुक्त तथा परिवादी के बीच कुछ विभागीय कार्य के कारण पहले से दुश्मनी थी। इस तथ्य के बावजूद किसी स्वतंत्र साक्षी की परीक्षा नहीं की गयी कि घटना व्यस्त बाजार में घटी थी। परिवादी तथा उसके मित्र, जो हितबद्ध साक्षी भी था, का अभिसाक्ष्य स्वतंत्र साक्षी के द्वारा संपुष्ट नहीं था। अभियुक्त दोषमुक्ति का हकदार था।
दोषमुक्ति और दण्डादेश:- सी० टी० रवीन्द्रन बनाम स्टेट आफ केरल, 2011 क्रि० लॉ० ज० 1408 (केरल) के इस वाद में पूर्णतः इस निष्कर्ष पर पहुँचने के लिए कोई साक्ष्य नहीं है कि अपीलार्थी के विरुद्ध अभिकथित भारतीय दण्ड संहिता के अधीन अपराध इस कारण से कारित किया गया था कि वह अनुसूचित जाति का सदस्य है, इसलिए अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 की धारा 3 (2) (v) के अधीन अपराध के लिए दोषसिद्धि तथा दण्डादेश संधार्य नहीं है और अपास्त किये जाने के लिए दायी है।अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 (SC ST Act) भाग :2 अधिनियम की धारा 3 से संबंधित प्रमुख बातें