घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 भाग 7: पीड़ित द्वारा मजिस्ट्रेट को परिवाद
Shadab Salim
15 Feb 2022 10:00 AM IST
घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 ( The Protection Of Women From Domestic Violence Act, 2005) की धारा 12 पीड़ित महिला को और उसके साथ अन्य लोगों को मजिस्ट्रेट को परिवाद करने का अधिकार देती है। इससे पूर्व के आलेख में धारा 12 से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्यों को प्रस्तुत किया गया था। यह धारा अत्यंत विस्तृत धारा है तथा एक ही आलेख में इसका उल्लेख कर पाना संभव नहीं है। इस आलेख के अंतर्गत मजिस्ट्रेट को परिवाद से संबंधित अन्य विवेचना प्रस्तुत की जा रही है।
धारा 12 के अधीन आवेदन को प्ररूप-11 में दाखिल करना अपेक्षित होता है
घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण नियमावली, 2006 के नियम 6 के उपनियम (1) के अनुसार अधिनियम की धारा 12 के अधीन आवेदन को प्ररूप-11 में दाखिल करना अपेक्षित होता है। उक्त प्ररूप एक सम्पूर्ण प्ररूप है जिसमें व्यथित व्यक्ति को धारा 17 धारा 22 के अधीन प्रावधानित अनुतोषों के विशिष्ट संदर्भ के साथ दावाकृत अनुतोष की विशिष्ट प्रकृति को विनिर्मित करने की अपेक्षा हेतु सम्पूर्ण प्ररूप दिया गया है।
धारा 12 के अधीन अनुतोष के लिए आवेदन की पोषणीयता यह सत्य है कि अधिनियम, भूतलक्षी नहीं है। तथापि याची अधिनियम के अधीन भविष्यलक्षी अनुतोष की वांछा कर रहा न कि भूतलक्षी परिणामतः यह नहीं कहा जा सकता है कि अधिनियम की धारा 12 के अधीन प्रत्यर्थी द्वारा दाखिल आवेदन पोषणीय नहीं है।
तलाकशुदा पत्नी द्वारा धारा 12 के अधीन अनुतोष के लिए आवेदन
अभिव्यक्ति "जो साझी गृहस्थी में एक साथ रहते हैं या किसी समय एक साथ रह चुके हैं" प्रदर्शित करती है कि पक्षकारगण अर्थात् व्यथित व्यक्ति एवं प्रत्यर्थी के बीच विद्यमान नातेदारी, अधिनियम की धारा 12 के अधीन अनुतोष चाहने के लिए आवेदन दाखिल करने के लिए, अनिवार्य नहीं है। इस दृष्टि से तलाकशुदा महिला द्वारा आवेदन पोषणीय है।
धारा 12 के अधीन आवेदन का संशोधन
यह स्पष्ट है कि घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 के प्रावधान मुख्य रूप से, घरेलू हिंसा आदि के कारण प्रभावित महिला को अनुतोष प्रदान के लिए विनिर्मित किया गया है। प्रत्यर्थी ऐसे मामलों में अभियुक्त नहीं होता जब तक वह अधिनियम के प्रावधानों के अधीन न्यायालय द्वारा पारित आदेश का उल्लंघन कारित नहीं करता है।
अधिनियम की धारा 31 के अधीन किसी आदेश के उल्लंघन के बाद ही प्रत्यर्थी को अभियुक्त की तरह व्यवहत किया जा सकता है। दूसरे शब्दों में अधिनियम के अधीन प्रक्रिया अर्थ-सिविल प्रकृति की होती है एवं ऐसी प्रक्रिया में न्यायालय को आवेदन एवं लिखित कथन में संशोधन को अनुमन्य करने की शक्ति होगी।
आवेदन का प्रारूप
घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण नियमावली, 2006 का प्रारूप 11 धारा 12 की उपधारा (1) के अधीन आवेदन के प्रारूप को अन्तर्विष्ट करता है। प्रारूप अपेक्षित करता है कि अनुतोषों की प्रकृति आवेदन में अन्तर्विष्ट की जाएगी। नियम 6 का उपनियम (5) प्रावधानित करता है कि धारा 12 के अधीन आवेदन एवं पारित आदेश उसी रीति में प्रवृत्त किये जाएंगे जैसे वे दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 125 के अधीन प्रवृत्त किये जाते हैं।
मजिस्ट्रेट के समक्ष कौन आवेदन कर सकता है
धारा 12 (1) के अधीन निम्न के द्वारा मजिस्ट्रेट को आवेदन किया जा सकता है
(i) व्यथित व्यक्ति; या
(ii) संरक्षण अधिकारी या
(iii) व्यथित व्यक्ति की ओर से किसी अन्य व्यक्ति।
धारा 12 के अधीन आवेदन को विचारित करने के लिए कोई सिविल न्यायालय या परिवार न्यायालय क्षेत्राधिकार नहीं रखती है केवल मजिस्ट्रेट घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12 के अधीन याचिका को विचारित करने की प्राधिकार से युक्त होता है, धारा 12 के अधीन आवेदन को विचारित करने का क्षेत्राधिकार किसी सिविल न्यायालय या परिवार न्यायालय को नहीं होता है।
परिणामतः यह न्यायालय मजिस्ट्रेट के समक्ष विचाराधीन धारा 12 के अधीन याचिका को परिवार न्यायालय में अन्तरित करने का निर्देश नहीं दे सकती एवं इस प्रकार परिवार न्यायालय को धारा 12 के अधीन ऐसे आवेदन विचार करने के क्षेत्राधिकार प्रदान करने जैसा होगा अन्तरण की प्रार्थना को इस प्रकार नहीं स्वीकृत किया जा सकता।
आवेदन का संज्ञान के लिए परिसीमा
एक मामले में कहा गया है कि अपराध कारित होना तब समझा जाता है, जब "प्रत्यर्थी" कार्यवाही में पारित किए गये आदेशों का अनुपालन करने में भंग कारित करता है और उस स्थिति में धारा 469 का प्रावधान प्रयोजनीय होता है।
यह अभिनिर्धारित किया गया कि दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 468 का प्रावधान प्रवर्तन में केवल तब आता है, जब अधिनियम की धारा 12 की कार्यवाही के अधीन पारित किए गये आदेशों का "प्रत्यर्थी" के द्वारा भंग कारित किया जाता है।
शिकायत
यदि कोई शिकायत किसी महिला द्वारा घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम, 2005 का 43 के अधीन अपराध को परिवार की किसी सदस्य द्वारा कारित किये जाने के लिए अभिकथित की जाती है तो मामले को गम्भीरता से लेना चाहिए। पुलिस बिना समुचित सत्यापन एवं अन्वेषण के यह रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं कर सकती है कि कोई मामला नहीं बनता है।
अन्वेषण एजेन्सी को न केवल परिवार के सदस्यों बल्कि पड़ोसियों, मित्रों एवं अन्य से भी जांच पड़ताल करनी चाहिए। ऐसी जांच के बाद ही अन्वेषण एजेन्सी निश्चित राय बना सकती है एवं रिपोर्ट प्रस्तुत कर सकती है परन्तु अधिनियम के प्रावधानों के अधीन "किसी अपराध का संज्ञान" लेना है या नहीं इसका विनिश्यक न्यायालय लेगी।
शब्द "शिकायत" को सीमित अर्थ दिये जाने की आवश्यकता नहीं होती है- यह सत्य है कि अधिनियम की धारा 2 (ध) के परन्तुक के अधीन शब्द "शिकायत" का प्रयोग किया गया है और अधिनियम की धारा 12 की उपधारा (1) के अधीन व्यथित व्यक्ति को "आवेदन" दाखिल करने की अनुमति दी गई है।
तथापि, शब्द शिकायत को घरेलू हिंसा की शिकायत करने वाली महिला के लिए इसे सामान्य अर्थों में प्रयोग किया गया है एवं न कि किसी आपराधिक अपराध के परिवाद के अर्थों में नियम के अधीन अर्थात् घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण नियम, 2006 के अधीन पद शिकायत नियम 2 (ख) में परिभाषित है जिसका तात्पर्य संरक्षण अधिकारों से किए गए किसी मौखिक या लिखित शिकायत से है।
इस प्रकार अधिनियम की धारा 2 के खण्ड (घ) के परन्तुक में प्रयुक्त शिकायत शब्द को सीमित अर्थ दिये जाने की आवश्यकता नहीं होतो एवं इसे परेलू हिंसा की शिकायत करने वाले व्यथित व्यक्ति द्वारा की गई किसी कार्यवाही या आवेदन के संदर्भ में समझा जाना चाहिए।
शिकायत की वैधता
के नरसिम्हन बनाम श्रीमती रोहिनी देवानाथन, 2010 के वाद में याची के विरुद्ध केवल यह आरोप है कि प्रथम अभियुक्त अर्थात् प्रत्यर्थी के पति के कहने पर यह याची से चेन्नई में मिली एवं यहाँ उसने गाली दिया जो कि याची के अनुसार भावनात्मक दुरुपयोग था धारा 2 (च) या 2 (ध) के अनुसार जब याची एवं प्रत्यर्थी एक हो गृहस्थी में कभी नहीं रहे तो उसके विरुद्ध आरोप लगाने का प्रश्न हो नहीं उठता। इसके अलावा, याची कनाडा में रह रहा था एवं जब वह भारत आया तो चेन्नई में रुका।
इन परिस्थितियों में प्रत्यर्थी के विरुद्ध निश्चित आरोप लगाना स्वयं में घरेलू हिंसा की कोटि का नहीं होगा एवं इस बात का कोई सबूत नहीं है कि याची एवं प्रत्यर्थी किसी समय एक साथ रहे थे या एक साथ रह रहे थे। इन परिस्थितियों में, याची के विरुद्ध प्रारम्भ की गई प्रक्रिया एवं प्रतिवादी द्वारा दाखिल शिकायत भी कार्यवाही का दुरुपयोग है।
अधिनियम के अधीन कार्यवाही
अधिनियम के अधीन कार्यवाही को उक्त अधिनियम की धारा 12 (1) के अनुसार प्रारम्भ किया जा सकता है। कार्यवाही व्यथित व्यक्ति या संरक्षण अधिकारी या व्यथित व्यक्ति की ओर से किसी अन्य व्यक्ति द्वारा प्रारम्भ की जा सकती है। धारा 12 (1) के अधीन आवेदन को घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण नियम, 2006 के नियम 6 द्वारा विहित प्ररूप के अनुसार दाखिल किया जाना अपेक्षित होता है।
अधिनियम की धारा 12 की उपधारा (4) के अधीन आवेदन की प्राप्ति के बाद मजिस्ट्रेट से पहली सुनवाई को तिथि नियत करना एवं उक्त अधिनियम की धारा 13 के अनुसार नोटिस जारी करना अपेक्षित होता है। अधिनियम की धारा 12 (1) के अधीन आवेदन पर अधिनियम आदेशिका या समन या वारण्ट जारी करना अनुध्यात नहीं करती।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के अधीन आवेदन को शासित करने की प्रक्रिया अधिनियम की धारा 12 के अधीन आवेदन की कार्यवाही पर लागू होगी। संहिता के अध्याय 9 द्वारा अनुध्यात प्रक्रिया जो धारा 125 के अधीन आवेदनों को व्यवहत करती है, संहिता की धारा 126 की उपधारा (2) द्वारा संकेतिक रूप से संक्षिप्त प्रक्रिया होती है। धारा 128 भरण-पोषण के आदेश के प्रवर्तन के लिए प्रावधान करती है। इस प्रकार, मजिस्ट्रेट द्वारा अधिनियम के अधीन पारित आदेश संहिता की धारा 128 के अधीन यथाप्रावधानित रीति से प्रवर्तनीय होते हैं।
जांच शुरू करना
धारा 12 का परन्तुक अधिरोपित करता है कि व्यक्ति व्यक्ति के आवेदन पर कोई आदेश पारित करने से पहले, मजिस्ट्रेट संरक्षण अधिकारी से उसे प्राप्त की गई घरेलू घटना रिपोर्ट को विचारित करेगा। परन्तुक में अनुध्यात आदेश अन्तिम आदेश से सम्बन्धित होता है जो मजिस्ट्रेट अधिनियम की धारा 18 के अधीन पारित कर सकता है। संरक्षण आदेश जो मजिस्ट्रेट अधिनियम की धारा 18 के अधीन पारित कर सकता है, वह मात्र प्रथम दृष्ट्या इस संतुष्टि पर है कि घरेलू हिंसा घटित हुई है या घटित होने की सम्भावना है।
संरक्षण अधिकारी का घरेलू घटना रिपोर्ट को विचारित करने पर जोर देना अधिनियम की धारा 12 के अधीन जांच के आरम्भ के प्रक्रम पर लागू नहीं होगा। याचीगण का तर्क कि बिना घरेलू हिंसा रिपोर्ट को विचारित किए जाँच एकदन से शुरू करना अनुचित है, भ्रामक प्रतीत होता है एवं इस प्रकार, इसे अवधार्य नहीं किया जा सकता।
समन की तामील
यदि किसी मामले में समन की तामील पर अधिनियम की धारा 12 (1) के अधीन आवेदन में कोई प्रत्यर्थी मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रदर्शित कर सकता है कि उसे गलत तरीके से योजित किया गया है या कि उसके विरुद्ध अग्रसरित होने के लिए कोई आरोप नहीं है तो मजिस्ट्रेट कार्यवाही से ऐसे प्रत्यर्थी को निरसित करने एवं उसके विरुद्ध अग्रेतर कार्यवाही रोकने के लिए स्वतन्त्र होगा।
निश्चित रूप से ऐसी शक्ति को उचित सावधानी एवं सतर्कता से प्रयोग किए जाने की आवश्यकता होती है एवं जब तक यह स्वीकृत एवं अविवादित तथ्यों या स्वीकृत तथ्यों या विधि को प्रयोजन से संकेतिक न कर दिया जाये कि ऐसे प्रतिवादी के विरुद्ध कार्यवाही पोषणीय नहीं है तो ऐसी शक्ति का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए।
सुनवाई की तिथि
निश्चित रूप से, धारा 12 (4) के अधीन सुनवाई की पहली तिथि तीन दिन के भीतर की होनी चाहिए जिस दिनांक पर न्यायालय आदेश पारित करता है। परन्तु एक पक्षीय अन्तरिम आदेश लम्बे समय तक चल सकता है।
इसके अलावा ऐसे मामलों में ऐसे स्थान पर जहां पर प्रत्यर्थी है निर्भर करता है कि सुनवाई की पहली तिथि पर बाद की तारीख दो जाय एवं ऐसी स्थिति में भी अन्तरिम आदेश को अवधि लम्बी हो सकती है।
वैवाहिक गृह में मानसिक क्रूरता, शारीरिक प्रताड़ना, गाली देना एवं दुव्र्व्यवहार प्रस्तुत प्रकरण में, 2005 के अधिनियम की धारा 12 एवं 22 के अधीन याचिका में अभिकथित किया गया है कि वैवाहिक गृह में व्यथित व्यक्ति को प्रताड़ित करने के बाद भी याची/पति उसके पिता के घर पहुंचा, पीड़ित पक्ष को धमकाया एवं गाली दी जिसके लिए पीड़ित पक्ष ने खण्डवा पुलिस स्टेशन में लिखित शिकायत दर्ज किया था।
यह आरोपित किया गया कि 22/5/2002 को प्रत्यर्थी पीड़ित पक्ष के प्रति हिंसक एवं आक्रामक हो गया एवं उसे निर्दयता से पीटा। उक्त कार्यवाही खण्डवा न्यायालय में विचाराधीन है। याचिका में प्रत्यर्थी/पत्नी ने आरोपित किया कि वैवाहिक गृह में वह मानसिक क्रूरता, शारीरिक प्रताड़ना, गाली एवं दुव्र्व्यवहार की शिकार थी। अपने आवेदन में उसने कथित किया था कि वह अलग रहना चाहती है।
घरेलू घटना रिपोर्ट
संरक्षण अधिकारी या रजिस्ट्रीकृत सेवा प्रदाता की अधिसूचना के अभाव में मजिस्ट्रेट के लिए अधिनियम की धारा 12 के अधीन व्यथित व्यक्ति द्वारा किए गए आवेदन को निस्तारित करने से पहले घरेलू घटना रिपोर्ट प्राप्त करना सम्भव नहीं हो सकता।
यदि मजिस्ट्रेट यह उचित समझता है कि अधिनियम के विभिन्न उपबन्ध लागू हैं, तो मजिस्ट्रेट किसी रिपोर्ट या प्रतिकूल रिपोर्ट न होने के बावजूद आदेश पारित कर सकता है। इस प्रकार, केवल घरेलू घटना रिपोर्ट के विचारण के पश्चात् आवेदकों को नोटिस जारी करने की अपेक्षा नहीं की जाती
घरेलू घटना रिपोर्ट
शिकायत प्राप्त करने पर घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण नियम, 2006 के नियम 5 के अधीन घरेलू हिंसा की शिकायत की प्राप्ति पर संरक्षण अधिकारी घरेलू घटना रिपोर्ट तैयार करेगा एवं उसे मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत करेगा एवं उसकी प्रतियाँ सेवा प्रदाता को भेजेगा।
नियम 5 के उपनियम (2) के अधीन पीड़ित व्यक्ति के निवेदक पर सेवा प्रदाता घरेलू घटना रिपोर्ट अभिलिखित कर सकेगा एवं उसकी प्रति मजिस्ट्रेट को अग्रसारित करेगा एवं संरक्षण अधिकारी की, जिसके क्षेत्राधिकार में कथित घटना हुई है उसे इसकी प्रति अग्रसरित करेगा। धारा 12 के अधीन व्यथित व्यक्ति का आवेदन नियम 6 के अधीन प्रावधानित है। सेवा प्रदाता का पंजीकरण नियम 11 में प्रावधानित है।
घरेलू घटना रिपोर्ट का अभिलेखन
नियम 5 का उपनियम (1) प्रावधानित करता है कि घरेलू हिंसा की शिकायत की प्राप्ति पर संरक्षण अधिकारी प्रारूप में घरेलू पटना रिपोर्ट तैयार करेगा एवं उसे मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत करेगा नियम 5 का उपनियम (2) प्रावधानित करता है कि व्यथित व्यक्ति के निवेदन पर सेवा प्रदाता घरेलू घटना रिपोर्ट अभिलिखित कर सकता है एवं उसकी एक प्रति मजिस्ट्रेट एवं अन्य को अग्रसारित कर सकता है।
दूसरे शब्दों में, धारा 12 में उल्लिखित घरेलू घटना रिपोर्ट उत्पन्न होती है जब संरक्षण अधिकारी नियम 5 के उपनियम (1) के अधीन शिकायत प्राप्त करता है या जब नियम 5 के उपनियम (2) के अधीन सेवा प्रदाता से व्यथित व्यक्ति द्वारा प्रार्थना की जाती है।
धारा 12 यह कहीं भी प्रावधानित नहीं करती कि धारा 12 की उपधारा (1) के अधीन आवेदन की प्राप्ति पर मजिस्ट्रेट संरक्षण अधिकारी या सेवा प्रदाता को आवेदन भेजने एवं उनसे उनकी रिपोर्ट प्राप्त करने के दायित्वाधीन है। अधिनियम की धारा 12 का परन्तुक सीमित क्षेत्र में लागू होता है जहाँ नियम 5 के अधीन मजिस्ट्रेट को घरेलू पटना रिपोर्ट उपलब्ध होती है तब मजिस्ट्रेट आदेश पारित करने से पहले ऐसी घरेलू घटना रिपोर्ट का विचारण करेगा।
मजिस्ट्रेट नियम 5 के अधीन घरेलू घटना रिपोर्ट के अभाव में धारा 12 के अधीन प्रत्यर्थो (यहाँ याचीगण) को अभिलेख पर सामग्री के आधार पर परिवाद पर संज्ञान लेने एवं आदेशिका जारी करने से अनहं नहीं है। नियम 5 के अधीन घरेलू घटना रिपोर्ट के अभाव में अधिनियम की धारा 12 के अधीन परिवाद का संज्ञान लेने का मजिस्ट्रेट क्षेत्राधिकार रखता है।