लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 भाग 25: बालक की चिकित्सीय परीक्षा

Shadab Salim

26 July 2022 4:30 AM GMT

  • लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 भाग 25: बालक की चिकित्सीय परीक्षा

    लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (The Protection Of Children From Sexual Offences Act, 2012) की धारा 27 पीड़ित बालक के मेडिकल एक्समिनेशन के संबंध में उल्लेख करती है। इस धारा में चिकित्सा परीक्षा के संबंध रीति का निर्धारण किया गया है। हालांकि किसी भी आपराधिक मामले में जो शरीर से संबंधित अपराध होता है उसमे मेडिकल परीक्षा होती है लेकिन पॉक्सो अधिनियम एक विशेष अधिनियम है इसलिए इस अधिनियम में पीड़ित बालक के हितार्थ विशेष प्रावधान किए गए हैं। इस आलेख में इस धारा 27 पर विवेचना प्रस्तुत की जा रही है।

    यह अधिनियम में प्रस्तुत धारा का मूल रूप है

    धारा 27

    बालक की चिकित्सीय परीक्षा (1) उस बालक की चिकित्सीय परीक्षा, जिसकी बाबत इस अधिनियम के अधीन कोई अपराध किया गया है, इस बात के होते हुए भी कि इस अधिनियम के अधीन अपराध के लिए कोई प्रथम सूचना रिपोर्ट या परिवाद रजिस्ट्रीकृत नहीं किया गया है, दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) की धारा 164 क के अनुसार संचालित की जाएगी।

    (2) यदि पीड़ित कोई बालिका है तो चिकित्सीय परीक्षा किसी महिला डॉक्टर द्वारा की जाएगी।

    (3) चिकित्सीय परीक्षा बालक के माता-पिता या किसी ऐसे अन्य व्यक्ति की उपस्थिति में की जाएगी जिसमें बालक भरोसा या विश्वास रखता हो।

    (4) जहां उपधारा (3) में निर्दिष्ट बालक के माता-पिता या ऐसा अन्य व्यक्ति बालक की चिकित्सा जांच के दौरान किसी कारण से उपस्थित नहीं हो सकता है तो चिकित्सा जांच, चिकित्सा संस्था के प्रमुख द्वारा नामनिर्दिष्ट किसी महिला की उपस्थिति में की जाएगी।

    चिकित्सीय जांच उद्देश्य और प्रयोजन-

    बलात्संग के मामले का सफलतापूर्वक प्रतिवाद करने में चिकित्सीय जांच बहुत निर्णायक होती है। यह पीड़िता के लिए उसके साथ अपराध कारित करने के पश्चात् यथासंभव शीघ्र स्वयं की चिकित्सीय जांच कराने के लिए बहुत मार्मिक होती है। अधिकांश बलात्संग के मामलों में स्वयं पीड़ित व्यक्ति की अपेक्षा कोई अन्य साक्षी नहीं होता है और अधिकांशतः संपुष्टिकारी कारक चिकित्सीय रिपोर्ट होती है।

    चिकित्सीय जांच के उद्देश्य ये हैं-

    (1) उन शारीरिक चिन्हों की जांच करना, जो पीड़िता के द्वारा प्रदान किए गये इतिहास को संपुष्ट करेंगे।

    (2) प्रयोगशाला जांच के लिए सभी साक्ष्य को खोजना, एकत्र करना और खोजे गये साक्ष्य को संरक्षित करना, और

    (3) पीड़िता का किसी क्षति के लिए तथा यौनिक रोग अथवा गर्भावस्था के विरुद्ध उपचार करना और स्थायी मनोवैज्ञानिक क्षति का निवारण अथवा परित्राण अभिकथित अपराध के स्थल की जांच की जा सकती है. यदि यह वांछनीय प्रतीत होता हो।

    पुलिस को चिकित्सीय जांच के पहले पीड़िता को कपड़े न बदलने, स्नान न करने अथवा सौन्दर्यपरक सामग्री का प्रयोग न करने के लिए सलाह देनी चाहिए। उन महिलाओं, जो समागम किया करती है, के अधिकांश मामलों में भी जननांग की क्षतियों का अभाव होता है। परन्तु ये चिकित्सीय जांच के समय प्रकट होते हैं।

    इसलिए अभिकथित बलात्संग के सभी मामलों में चिकित्सीय जांच आबद्धकारी होती है। परिवादी (पीड़िता) के लिए जोर देना अन्वेषण अधिकारी का कर्तव्य होता है। इसके साथ ही साथ उसे यह स्पष्ट करना है कि जांच का निष्कर्ष उसके विरुद्ध हो सकता है। पीड़िता स्वयं की जांच कराने से इन्कार कर सकती है परन्तु ऐसी स्थिति में उसके विरुद्ध उपधारणा की जा सकेगी।

    पीड़िता के द्वारा ऐसी इन्कारी को अन्वेषण अथवा चिकित्सा अधिकारी के द्वारा लिखित में लिया जाना है। यद्यपि सामान्यतः बलात्संग से भिन्न प्रकृति की व्यवस्था के विरुद्ध लैंगिक समागम के अपराध हमारे देश में असामान्य नहीं हैं। इन मामलों में एक समूह के अपवाद के साथ दोनों पक्षकारों, अर्थात् सक्रिय और निष्क्रिय अभिकर्ताओं को समान रूप में विधितः दायी अभिनिर्धारित किया जाता है। अपवाद युवा लड़को पर प्रथम प्रयत्न के मामलों के समूह का है. जिनका कभी-कभी उस प्रयोजन के लिए व्यपहरण और अपहरण किया जाता है।

    चूंकि बलात्संग का अपराध एकांतता में कारित किया जाता है और बलात्संग का प्रत्यक्ष साक्ष्य दुर्लभ रूप में उपलब्ध होता है, इसलिए परिवादी के अभिसाक्ष्य की संपुष्टि की चिकित्सीय साक्ष्य से ईप्सा की जाती है। बलात्संग का आरोप लगाना बहुत आसान है और उसका खण्डन करना बहुत कठिन है तथा अभियुक्त की सामान्य निष्पक्षता में न्यायालय परिवादीगण की कहानी की संपुष्टि पर जोर देते हैं। कभी-कभी बलात्संग को स्पष्ट रूप में साबित अथवा स्वीकार किया जाता है और प्रश्न यह होता है कि क्या अभियुक्त ने बलात्संग कारित किया था।

    अन्य समयों पर अभियुक्त और परिवादी के सहचर्य को स्वीकार किया जाता है और प्रश्न यह होता है कि क्या बलात्संग कारित किया गया था। जहाँ पर बलात्संग से इन्कार किया जाता है, वहां पर संपुष्टि का प्रकार परिवादिनी के गुप्तांग पर क्षति, उसके शरीर के अन्य भागों पर क्षति, जो संघर्ष में हो सकती है, उसके कपड़ों पर अथवा अभियुक्त के कपड़ों पर अथवा उस स्थान पर, जहाँ पर अपराध कारित किया गया हो, वीर्य के धब्बों को दर्शाते हुए चिकित्सीय साक्ष्य को देखना है।

    सरकारी अस्पताल के डॉक्टर के द्वारा बलात्संग की पीड़िता की चिकित्सीय जांच करने की इन्कारी, जब तक उसे पुलिस के द्वारा निर्दिष्ट न किया गया हो, को अनुचित होना अभिनिर्धारित किया गया है, क्योंकि यह महत्वपूर्ण साक्ष्य को नष्ट कर सकता है। बलात्संग के मामले में महिला डॉक्टर का साक्ष्य बहुत तात्विक होता है। इसलिए उस डॉक्टर, जिसने अभियोक्त्री की जांच किया था, की अपरीक्षा अभियोजन के लिए घातक थी।

    प्रत्यक्ष तथा परिस्थितिजन्य साक्ष्य का परीक्षण चिकित्सीय साक्ष्य में किया जाना है-

    चूंकि चिकित्सीय साक्ष्य दाण्डिक मामलों में अधिक महत्वपूर्ण होता है, इसलिए सभी दाण्डिक मामलों में प्रत्यक्ष और परिस्थितिजन्य साक्ष्य की सत्यता का परीक्षण डॉक्टर के द्वारा प्रदान किए गये चिकित्सीय साक्ष्य के प्रकाश में किया जाना है।

    ऐसे मामलों में, जिनमें चिकित्सीय ज्ञान प्रविष्ट होता है. चिकित्सीय व्यक्ति से सदैव उस समय भी प्रश्न पूछा जाना चाहिए जब समस्या का समाधान मानवीय ज्ञान की सीमाओं के परे होना प्रतीत होता है, जैसे जब अपराध कारित करने के समय से लम्बा समयान्तराल बीत गया हो। इस प्रकार लाइमन किसी व्यक्ति की लाश से उसे इस प्रकार बहुत गहन रूप में विघटित अवस्था से सम्बन्धित करता है कि वह काली और हरी हो गयी थी, हृदय की स्थिति के द्वारा यह निर्धारित करना संभाव्य था कि मृत्यु मिरगी के आघात के कारण थी अथवा यह कि इसके परिणामस्वरूप व्यक्ति की नैसर्गिक मृत्यु हो जानी चाहिए थी।

    उसी प्रोफेसर ने यह रिपोर्ट दिया है कि किंग डागोबर्ट की अस्थियां, जिन्हें उसकी मृत्यु के पश्चात् 1200 वर्ष तक सेन्ट डेनिस में कब्र से खोद करके बाहर निकाला गया था. इस प्रकार से भली-भांति संरक्षित किया गया था कि उसके शरीर पर कारित हिंसा के प्रत्येक चिन्ह का संप्रेक्षण करना संभाव्य था।

    मृतक की मस्तिष्क की अवस्था से सम्बन्धित लेखक के द्वारा अभिव्यक्त किए गये विचार से सम्बन्धित उसकी प्रतिपरीक्षा में अभियुक्त के द्वारा डॉक्टर से पूछे गये किसी प्रश्न के अभाव में चिकित्सा विधिशास्त्र की पुस्तकों में किए गये संप्रेक्षण पर कोई विश्वास व्यक्त नहीं किया जा सकता है। जब कभी चिकित्सा विधिशास्त्र के लेखकों के द्वारा अपनाए गये विशेष विचार को संक्षेपित किया गया हो, तब उसे यह निर्धारित करने के लिए डॉक्टर से प्रश्न पूछा जाना चाहिए कि विशेषज्ञों के द्वारा अपनाए गये विचार कैसे विशेष मामले के तथ्य में लागू होते हैं।

    इस प्रकार क्षतियों के बारे में, रासायनिक विश्लेषण के साथ क्षतिग्रस्त व्यक्ति के बारे में और ऐसी जांच में सम्बद्ध व्यक्तियों के कथनों के बारे में चिकित्सीय रिपोर्टों को शामिल करने वाला चिकित्सीय साक्ष्य सर्वाधिक महत्वपूर्ण होता है और उसका प्रयोग आपराधिक क्रियाकलापों को जानने के साथ ही साथ विधिक विधिशास्त्र को स्वयं अपना अनुक्रम अपनाने के लिए पथ प्रशस्त करने हेतु किया गया है।

    जब तक पूर्ण रूप से युवा लड़की अथवा वयस्क महिला पेय पदार्थ अथवा ओषधि अथवा गहरी निंद्रा अथवा बीमारी के अधीन न हो, तब तक उसे मैथुन हमले का प्रतिरोध करने के लिए समर्थ होना चाहिए। हमें लैंगिक सम्पर्क अथवा प्रवेशन को उपेक्षित करने के लिए संघर्ष के साक्ष्य को प्राप्त करने की अपेक्षा करनी चाहिए और हम उसके अभाव में अभिकथित हमले की वास्तविक प्रकृति के बारे में भली-भांति अनिश्चितता महसूस कर सकते हैं।

    बलात्संग के मिथ्या अभियोग को कभी-कभी हिंसा के चिन्हों के द्वारा पूर्ण रूप में अपर्याप्त अथवा उसके अभाव होने को प्रदर्शित किया जा सकता है। बाहों अथवा गर्दन पर खरोंचों को संघर्ष का कुछ साक्ष्य गठित करने के लिए समझा जा सकता है, और अंगुली के नाखून के प्रभाव भी महत्वपूर्ण होते है जांघों तथा घुटनों के अन्दर की तरफ चोट अथवा खरोंच पैरों को बलपूर्वक पकड़ने के प्रयत्नों के दौरान अधिरोपित किया जा सकता है तथा पीठ की जांच करने के लिए भी सावधानी बरती जानी चाहिए, क्योंकि पीड़िता को दीवार अथवा फर्श के विरुद्ध जकड़ा जा सकता है। इनका विवरण विस्तारपूर्वक और यदि संभाव्य हो, तो इसके बारे में कथन करना महत्वपूर्ण होता है कि ये कितने ताजे हैं। खरोंचों का समय, जैसा कि खण्ड 1 में इंगित किया गया है. सूक्ष्मदर्शी के अभाव में कुछ अनिश्चितता का विषय हो सकता है।

    संघर्ष का सशक्त संपुष्टिकारी साक्ष्य बाहों अथवा चेहरे के आस-पास और संभाव्यतः उसके लिंग के आस-पास समान चिन्हों अथवा चोटों अथवा खरोंचों के लिए अभियुक्त की जांच से प्राप्त किया जा सकता है, हालांकि यह कम संभाव्य होता है।

    हालांकि अधिकांशतः लिंग को क्षति असंभाव्य होती है, फिर भी कोई व्यक्ति लैंगिक हमले के दौरान अपने चेहरे को खरोंचने अथवा काटने के लिए अनुज्ञात कर सकता है। कपड़े पर महिला के बाल, यौनिक निस्त्राव अथवा रक्त और हालांकि यह कम महत्वपूर्ण होता है, वीर्य के धब्बे कुछ सम्पर्क के चिन्ह धारित कर सकते हैं।

    मयूर पानाभाई शाह बनाम गुजरात राज्य एआईआर 1983 एस सी 66 के मामले में कहा गया है कि यह उपधारणा की जा सकती है कि डॉक्टर सदैव सच्चाई की साक्षी होती है। इसलिए डॉक्टर के साक्ष्य का मूल्यांकन किसी अन्य साक्षी की तरह किया जाना है।

    बलात्संग के मामलों में चिकित्सीय साक्ष्य की विधिक पवित्रता

    बलात्संग के मामलों में चिकित्सीय साक्ष्य का प्रयोग निम्नलिखित के लिए किया जा सकता है-

    (1) पीड़िता और अभियुक्त के शरीर पर प्रतिरोध का चिन्ह, यदि कोई हो,

    (2) पीड़िता और अभियुक्त के जननांगों पर हिंसा के चिन्ह,

    (3) पीड़िता या अभियुक्त के कपड़ों पर रक्त अथवा वीर्य (अथवा अन्य तरल पदार्थ मूत्र अथवा मल पदार्थ) के धब्बे,

    (4) योनि में वीर्य / रक्त की उपस्थित अथवा अनुपस्थिति,

    (5) योनिच्छद का विघटन, यदि आवश्यक हो,

    (6) बलात्संग कारित करने की अभियुक्त की क्षमता,

    (7) प्रवेशन के संकेत,

    (8) किसी यौनिक रोग के संक्रमण के संकेत को निर्धारित करना।

    Next Story